हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
इस ज़मीन के बारे में जब आपने व्यापार की सुदृढ़ नीयत नहीं की है, तो उसमें ज़कात नहीं है, क्योंकि मूल सिद्धांत यह है कि वह अधिग्रहण के लिए है, इसलिए वह सुदृढ़ नीयत के द्वारा ही व्यापार के लिए हो सकती है, रही बात अनिश्चितता की तो उसमें ज़कात अनिवार्य नहीं है।
तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया कि : एक आदीम के पास एक ज़मीन है और उसके बारे में उसकी नीयत विभिन्न है, वह नहीं जानता कि उसे बेच दे या उस पर निर्माण करे, या किराये पर दे दे या उसमें निवास करे, तो क्या साल गुज़रने पर वह ज़कात निकालेगा ॽ
तो उन्हों ने उत्तर दे : “इस ज़मीन में मूलतः ज़कात अनिवार्य नहीं है जब तक कि उसकी इस चीज़ की सुदृढ़ नीयत नहीं है कि वह व्यापार का सामान है, इसलिए उसमें ज़कात नहीं है क्योंकि वह सुनिश्चित नहीं है, और अनिश्चितता के साथ चाहे वह एक प्रतिशत ही क्यों न हो, उसमें ज़कात नहीं है।”
“मजमूओ फतावा इब्ने उसैमीन” (18/232).
तथा उन्हों ने यह भी कहा : “यदि आदमी अनिश्चित हो, वह कहता हो, अल्लाह की क़सम, मुझे नहीं पता कि मैं उसमें व्यापार करूँ या उसे बाक़ी रखूँ , उदाहरण के तौर पर उसके पास एक ज़मीन है और वह कहता है : मैं नहीं जानता कि उसका व्यापार करूँ या उसे बाक़ी रखूँ या उस पर कोई भवन निर्माण कर लूँ , तो क्या इसमें ज़कात है या नहीं है ॽ
इसका उत्तर यह है कि : इसमें ज़कात नहीं है ; क्योंकि मूल सद्धिांत ज़कात का अनिवार्य न होना है यहाँ तक कि व्यापार की इच्छा के लिए नीयत खालिस हो जाए।”
“अल्लिक़ा अश्शहरी” (मासिक बैठक) (5/3) से समाप्त हुआ।
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।
इस्लाम प्रश्न और उत्तर