हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
नक़ाबा पहनना एहराम की अवस्था में वर्जित चीज़ों में से है। और एक महिला एहराम में प्रवेश करने के बाद पराये पुरूषों के सामने अपने चेहरे को किसी कपड़े से ढक सकती है जिसे वहे अपने सिर के ऊपर से अपने चेहरे पर डाल लेगी, और वह नक़ाब पहनने के निषेध से भी बच जाएगी।
अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : एक आदमी ने खड़े होकर कहा : "ऐ अल्लाह के रसूल, आप हमें एहराम में कौन से कपड़े पहनने की आज्ञा देते हैं? तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "क़मीस (शर्ट), पैजामा (पैंट) और अमामा (पगड़ी) न पहनो ... तथा एहराम वाली महिला नक़ाब और दस्ताने नहीं पहनेगी।'' इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1741) ने रिवायत किया है।"
इब्ने क़ुदामा ने कहा :
इब्नुल-मुंज़िर ने कहा : यह तथ्य कि (एहराम की अवस्था में) बुर्का पहनना मकरूह (अनेच्छिक) है, सअद, इब्ने उमर, इब्ने अब्बास और आयशा रज़ियल्लाहु अन्हुम से प्रमाणित है। तथा हम किसी को भी नहीं जानते हैं जिसने इस दृष्टिकोण का विरोध किया है। बुखारी और अन्य लोगों ने बयान किया कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा: ''महिला को नक़ाब या दस्ताने नहीं पहनने चाहिए।'' लेकिन अगर उसके करीब से पुरुषों के गुज़रने की वजह से उसे अपना चेहरा ढकने की आवश्यकता पड़ती है, तो वह अपने वस्त्र का कुछ हिस्सा अपने सिर के ऊपर से अपने चेहरे पर डाल लेगी। यह उसमान और आयआश रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है। और यही अता, मालिक, सौरी, शाफ़ेई, इसहाक़ और मुहम्मद बिन अल-हसन का भी कहना है। हमें इस बारे में किसी विरोध का पता नहीं है। इसकी वजह यह है कि आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि उन्होंने कहा: ''क़ाफिले हमारे पास से गुज़रते थे, जबकि हम अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साथ एहराम में होते थे। जब वे हमारे बराबर में आते, तो हममें से एक महिला अपने जिलबाब को अपने सिर से अपने चेहरे पर डाल लेती थी, फिर जब वे हमारे पास से गुजर जाते (आगे बढ़ जाते) तो हम चेहरे को खोल लेते थे।'' इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1833) और अल-असरम ने रिवायत किया है।'' ''अल-मुगनी'' (3/154), और आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस को अल्लामा अल्बानी ने ''रिसालत जिलबाब अल-मर्अह'' में सहीह कहा है।
एहराम की अवस्था में वर्जित चीज़ों में से कोई चीज़ जानबूझकर किसी कारणवश कर लेने सेः फिद्या अनिवार्य होता है, और वह या तो तीन दिनों के रोज़े रखना, या हरम के गरीबों में से छह गरीबों को भोजन कराना, या हरम में एक बकरी ज़बह करना है। तथा उसके उस निषेध को एक वैध कारण से करने की वजह से उसपर कोई पाप नहीं है। ऐसा लगता है कि आपकी स्थिति भी इसी अध्याय से है, क्योंकि आप ने उल्लेख किया है कि आपको नक़ाब पहनने की ज़रूरत पुरूषों की अधिकता की वजह से पड़ी। इसलिए आपके लिए ऊपर उल्लिखित फिद्या देना अनिवार्य है और आपके ऊपर कोई पाप नहीं है। ऐसा उस स्थिति में हैं जब आपका अपने प्रश्न में नक़ाब से अभिप्राय नक़ाब को पहनना है, न कि नक़ाब पहनने के नियमति तरीक़े के अलावा किसी अन्य प्रकार से चेहरे को ढकना है। लेकिन अगर ऐसा हुआ है कि आपने अपने चेहरे को नक़ाब के अलावा किसी और चीज़ से या उसके पहनने के नियमति तरीक़े के अलावा से ढक लिया है, तो आपको कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है और आपको इन शा अल्लाहु तआला पुरुषों की निगाहों से दूर रहने और पर्दा करने लिए इच्छुक होने पर अज्र व सवाब मिलेगा।
शैख इब्ने उसैमीन ने कहा :
अगर एरहाम की अवस्था में कोई व्यक्ति कोई ऐसी चीज़ करता है, जो एहराम की अवस्था में वर्जित (निषिद्ध) है, जैसे संभोग करना, या शिकार मारना, या इनके अलावा कोई अन्य निषेध, तो उसकी तीन स्थितियाँ हैं :
पहलीः वह भूल गया हो या हुक्म (नियम) से अनजान रहा हो, या उसे मजबूर किया गया हो या वह सो रहा था। तो ऐसी स्थिति में उसपर कुछ भी अनिवार्य नहीं है। न तो उस पर कोई पाप है और न कोई फ़िद्या अनिवार्य है और न ही उसकी वह इबादत (हज्ज या उम्रा) अमान्य होगी; क्योंकि अल्लाह तआला का ने फरमाया है :
رَبَّنَا لاَ تُؤَاخِذْنَآ إِن نَّسِينَآ أَوْ أَخْطَأْنَا رَبَّنَا وَلاَ تَحْمِلْ عَلَيْنَآ إِصْرًا كَمَا حَمَلْتَهُ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِنَا رَبَّنَا وَلاَ تُحَمِّلْنَا مَا لاَ طَاقَةَ لَنَا بِهِ وَاعْفُ عَنَّا وَاغْفِرْ لَنَا وَارْحَمْنَآ أَنتَ مَوْلَـنَا فَانْصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكَـفِرِينَ
البقرة: 286
"ऐ हमारे पालनहार, यदि हम भूल गए हों या गलती की हो तो हमारी पकड़ न करना। ऐ हमारे पालनहार, हम पर वह बोझ न डाल जो तूने हमसे पूर्व लोगों पर डाला था। ऐ हमारे पालनहार! हम पर वह भार न डाल जिसे उठाने की हम में शक्ति नहीं है। तथा हमें माफ़ कर दे और हमें क्षमा प्रदान कर और हम पर दया कर। तू ही हमारा संरक्षक हैं। अतः हमें अविश्वास करने वालों पर विजय प्रदान कर।'' (सूरतुल बक़रा : 286).
तथा अल्लाह का यह कथन भी हैः
وَلَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ فِيمَا أَخْطَأْتُمْ بِهِ وَلَكِنْ مَا تَعَمَّدَتْ قُلُوبُكُمْ وَكَانَ اللَّهُ غَفُوراً رَحِيماً
الأحزاب: 5
“और जो कुछ तुमने गलती की है उस विषय में तुम पर कोई पाप नहीं है, लेकिन पाप वह जिसे तुम्हारे दिलों ने जानबूझकर किया है। अल्लाह अत्यंत क्षमा करने वाला बड़ा दयालु है।” (सूरतुल अहज़ाब : ५).
दूसरीः वह कोई निषिद्ध कार्य जानबूझकर करे, लेकिन कोई वैध कारण हो जो इसे अनुमेय बनाता हो। तो इस स्थिति में उस पर वह चीज़ अनिवार्य है जो निषिद्ध कर्म करने की स्थिति में आवश्यक होती है (यानी फ़िद्या की अदायगी) और उसपर कोई पाप नहीं है, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान कहता है :
وَأَتِمُّوا الْحَجَّ وَالْعُمْرَةَ لِلَّهِ فَإِنْ أُحْصِرْتُمْ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِ وَلا تَحْلِقُوا رُؤُوسَكُمْ حَتَّى يَبْلُغَ الْهَدْيُ مَحِلَّهُ فَمَنْ كَانَ مِنْكُمْ مَرِيضاً أَوْ بِهِ أَذىً مِنْ رَأْسِهِ فَفِدْيَةٌ مِنْ صِيَامٍ أَوْ صَدَقَةٍ أَوْ نُسُكٍ
البقرة: 196
‘‘और अल्लाह के लिए हज्ज और उम्रा पूरा करो। अगर तुम रोक दिए जाओ तो जो भी हदी (क़ुर्बानी का जानवर) उपलब्ध है उसे ज़बह कर दो। और अपने सिर को न मुंडाओ यहाँ तक कि क़ुर्बानी का जानवर अपने स्थान को पहुँच जाए। और तुम में से जो बीमार हो या उसके सिर में तकलीफ हो (और इस कारण वह सिर मुंडा ले) तो रोज़े, या सद्क़ा या बलिदान के रूप में फिद्या दे।’’ (सूरतुल बक़रा : 196)
तीसरीः उसने निषिद्ध कार्य जानबूझकर बिना किसी वैध कारण के किया हो जो ऐसा करना अनुमेय बनाता हो। इस स्थिति में उसपर वही चीज़ें अनिवार्य हैं जो निषिद्ध कर्म करने की स्थिति में आवश्यक होती हैं (यानी फ़िद्या की अदायगी), लेकिन उस पर पाप है।
''मानसिकुल हज्ज वल उम्रा'' (पाँचवां अध्याय/ महज़ूरातुल एहराम)।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
इस्लाम प्रश्न और उत्तर