हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
जिस व्यक्ति ने रोज़ा की अनिवार्यता को नकारते हुए उसे छोड़ दिया,तो वह सर्व सहमति के साथ काफिर है। और जिस व्यक्ति ने सुस्ती और लापरवाही करते हुए रोज़ा छोड़ दिया तो कुछ विद्वान उसे काफिर ठहराने की तरफ गये हैं,किन्तु शुद्ध बात यह है कि वह काफिर नहीं है। लेकिन इस्लाम के एक ऐसे स्तंभ को जिसके अनिवार्य होने पर सर्वसहमति है,छोड़ने के कारण वह बहुत बड़े खतरे से दो चार है। और शासक की ओर से ऐसी सज़ा और कार्रवाई का पात्र है जो उसे इस बुराई से रोकने वाली है। तथा उस पर अपने छोड़े हुए रोज़ों की क़ज़ा करना और अल्लाह सर्वशक्तिमान से तौबा करना अनिवार्य है।
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।