रविवार 20 ज़ुलक़ादा 1446 - 18 मई 2025
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सूदी बैंक और इस्लामिक बैंक के बीच अंतर

प्रश्न

यदि इस्लामी बैंक ब्याज प्रणाली का उपयोग नहीं करते हैं, तो उन्हें क्या लाभ होता है और ऐसी स्थिति में उनका क्या हित हैॽ क्या वे सेवा के बदले जो शुल्क लेते हैं उसे सूद-ब्याज के समान माना जाएगा? वे कौन से लेन-देन हैं जिन्हें इस्लाम सूद-ब्याज मानता है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

वाणिज्यिक बैंक मुनाफा प्राप्त करने की जिस प्रणाली पर निर्भर होते हैं वह एक निषिद्ध सूदी प्रणाली है, जो ब्याज पर उधार देने और उधार लेने पर आधारित है। बैंक अपने ग्राहक को सूद पर उधार देता है, और बैंक में पैसा जमा करने वाला ग्राहक वह पैसा ब्याज के बदले में बैंक को ऋण देता है। ब्याज पर उधार देना ही ‘रिबा’ (सूद या ब्याज) कहलाता है, जिसके निषिद्ध (हराम) होने पर सर्वसम्मति है। इसके लिए प्रश्न संख्या (110112) का उत्तर देखें।

जबकि इस्लामी बैंक अनुमेय लेन-देन, जैसे बिक्री, खरीद, मुज़ारबा (मुनाफा साझेदारी), साझेदारी और धन के वैध निवेश के अन्य रूपों पर निर्भर करते हैं। इसके अलावा, वे स्थानान्तरण (हवाला) के लिए चार्ज किए गए शुल्क, तथा विनिमय दरों और मुद्रा विनिमय से भी लाभ लेते हैं।

यह सूदी लेनदेन और वैध लेनदेन के बीच अंतर का एक सरल उदाहरण है, तथा यह भी कि बैंक को इन दोनों में से किसी एक लेनदेन को करने पर किस प्रकार लाभ होता है :

यदि कोई ग्राहक अपने धन से मुनाफा कमाना चाहता है और उसे बढ़ाना चाहता है, फिर वह अपना धन सूद वाले बैंक के बचत खाते में जमा करता है, तो सूदी बैंक उसे एक ज्ञात व्याज देता है, साथ ही मूल पूंजी की गारंटी भी देता है। वास्तव में, यह एक सूदी ऋण है, ग्राहक द्वारा बैंक को ऋण दिया गया है। बैंक का लाभ इस प्रकार होता है कि वह जमा किए गए धन से लाभ प्राप्त करता है, वह उस धन को दूसरे ग्राहक को उधार देता है जिसके बदले में उससे ब्याज लेता है। इस तरह, बैंक उधार लेता है और उधार देता है, तथा अंतर से लाभ उठाता है।

जहाँ तक ​​इस्लामिक बैंक का प्रश्न है, तो इसके निवेश के तरीकों में से एक यह है कि बैंक ग्राहक से पैसा लेकर किसी वैध व्यवसाय में, या कोई आवासीय परियोजना स्थापित करने या इसी तरह के अन्य काम में लगाता है, इस शर्त पर कि वह ग्राहक को प्राप्त होने वाले मुनाफे का कुछ प्रतिशत देगा, जबकि मुज़ारबा करने वाले के रूप में बैंक को भी कुछ प्रतिशत मिलेगा। बैंक का हित (फायदा) परियोजना के लाभ से प्राप्त होने वाले प्रतिशत में है, और यह उस प्रतिशत से कहीं अधिक हो सकता है जो सूदी बैंक निषिद्ध वस्तु से कमाता है। लेकिन मुज़ारबा में जोखिम का तत्व शामिल होता है (यानी लाभ या घाटा दोनों की संभावना होती है), साथ ही एक लाभदायक परियोजना को चुनने, उसे शुरू करने तथा उसके फल मिलने तक उस पर काम करने में मेहनत करनी पड़ती है।

इस उदाहरण में एक सूदी बैंक और एक इस्लामी बैंक के बीच का अंतर, एक हराम सूदी ऋण और एक अनुमेय मुज़ारबा के बीच का अंतर है, जिसमें ग्राहक अपना पैसा खो सकता है, क्योंकि उसमें मूल पूंजी की कोई गारंटी नहीं होती है, लेकिन अगर वह लाभ कमाता है, तो वह एक वैध (हलाल) धन कमाता है।

कहने का उद्देश्य यह है कि : इस्लामी बैंक के पास लाभ कमाने के बहुत-से वैध तरीके हैं, और यही कारण है कि ये बैंक बढ़ने और फलने-फूलने लगे हैं। बल्कि, कुछ गैर-मुस्लिम देश इस्लामी बैंकिंग प्रणाली को लागू करने का प्रयास कर रहे हैं, क्योंकि इससे लाभ मिलता है और ब्याज प्रणाली की बुराइयों से बचा जा सकता है, जो बर्बादी और नुकसान का कारण है।

अधिक लाभ के लिए प्रश्न संख्या : (113852) का उत्तर देखें।

दूसरी बात :

ब्याज पर आधारित लेन-देन बहुत-से हैं, जैसे : सूद पर उधार देना और लेना, मुद्राओं का एक दूसरे के साथ आदान-प्रदान (एक मुद्रा को दूसरी मुद्रा से बेचना), जबकि एक या दोनों विनिमय स्थगित हों, अंतर (कमी-बेशी) के साथ या उधार पर सोने का सोने के साथ विनिमय करना। तथा कुछ ऐसे मामले जो मूल रूप से सूदी ऋण की श्रेणी में आते हैं, जैसे वाणिज्यिक पत्रों पर छूट, बचत खाता, रिटर्न या पुरस्कार वाले निवेश प्रमाणपत्र, तथा किस्तों पर बेचने या क्रेडिट कार्ड से निकासी करने पर विलंब शुल्क। आप इन मामलों को वेबसाइट पर देख सकते हैं।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर