शनिवार 20 जुमादा-2 1446 - 21 दिसंबर 2024
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दाहिने मोज़े से पहले बाएं मोज़े पर मसह करने का हुक्म

प्रश्न

प्रश्न : मैं ने आपकी साइट पर दोनों मोज़ों पर मसह करने से संबंधित एक फत्वा पढ़ा है, जिसमें उल्लेख किया गया है कि दोनों मोज़ों पर उसी तरह एक साथ मसह करना ज़रूरी है जिस तरह कि दोनों कानों का मसह किया जाता है। प्रश्न यह है कि : क्या दोनों मोज़ों पर एक साथ मसह करना अनिवार्य और ज़रूरी है, या कि वह सर्वश्रेष्ठ है? और क्या दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और इसी तरह बाएं पैर पर बाएं हाथ से मसह करना ज़रूरी है? ज्ञात रहे कि मेरे लिए अपने कार्य के स्थान पर, जगह गंदा होने के कारण मोज़े पहन हुए ज़मीन (फर्श) पर खड़ा होना दुलर्भ है। अतः मैं हर पैर पर अकेले मसह करता हूँ ; अर्थात मैं अपने बाएं पैर खड़ा होता हूँ और दाहिने पैर पर मसह करता हूँ, इसी तरह बाएं पैर के साथ करता हँ।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

मोज़ों पर मसह करने के विषय में सुन्नत यह है कि दोनों मोज़ों पर एक साथ मसह किया जाए, और ऐसा करना अनिवार्य नहीं है।

तथा कुछ विद्वान इस बात की ओर गए हैं कि वह दाहिने पैर पर पहले मसह करेगा, लेकिन सही पहला कथन है।

मर्दावी ''अल-इंसाफ'' (1/185) में फरमाते हैं : ‘‘मसह का मस्नून तरीक़ा यह है कि : वह अपने दोनों हाथों को उंगुलियाँ खुली हुई अपने पैर की उंगुलियों के किनारे पर रखे, फिर उन दोनों को अपनी पिंडलियों तक एक बार गुज़ारे, दाहिने और बाएं दोनों के साथ ऐसा करे। तथा 'अत-तल्खीस' और 'अल-बुलगह' में फरमाया : दाहिने पैर पर पहले मसह करना सुन्नत है। तथा बैहक़ी ने रिवायत किया है कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने दोनों मोज़ों पर एक बार मसह किया गोया कि मैं मोज़ों पर आपकी उंगुलियाँ देख रहा हूँ। इस हदीस का प्रत्यक्ष मतलब यह हुआ कि : आप ने किसी एक को दूसरे से पहले नहीं किया। परंतु वह जिस तरह भी मसह कर ले उसके लिए पर्याप्त होगा।'' समाप्त हुआ।

उनका कथन : ''वह जिस तरह भी मसह कर ले, उसके लिए पर्याप्त होगा।'' से पता चलता है कि आप ने जो यह उल्लेख किया है कि आप पहले दाहिने पैर पर मसह करते हैं, फिर बाएं पर मसह करते हैं, उससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता है ; वह- मात्र - सर्वश्रेष्ठ के विरूद्ध है, यदि ऐसा करना उसके लिए आसान है।

तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया : ''अर्थात जिस जगह का मसह किया जाएगा वह मोज़े का ऊपरी हिस्सा है। चुनांचे वह केवल अपने हाथ को पैर की उंगुलियों के पास से पिंडली तक गुज़ारेगा। और मसह दोनों हाथों से दोनों पैरों पर एकसाथ किया जायेगा। यानी दाहिने हाथ से दाहिने पैर पर मसह करे, और बाएं हाथ से बाएं पैर पर एक ही क्षण (समय) में मसह करे, जिस तरह कि दोनों कानों का मसह किया जाता है। इसलिए कि सुन्नत (हदीस) का प्रत्यक्ष अर्थ यही है। क्योंकि मुगीरह बिन शोअबा रज़ियल्लाहु अन्हु का कथन है : ''तो आप ने उन दोनों पर मसह किया।'' उन्हों ने यह नहीं कहा कि दाहिने पैर से शुरू किया, बल्कि उन्होंने कहा कि : उन दोनों पर मसह किया। तो सुन्नत का प्रत्यक्ष अर्थ यही है। हाँ, अगर मान लिया जाए कि वह अपने एक हाथ से काम नहीं करता है, तो वह बाएं से पहले दाहिने से (मसह) शुरू करेगा। बहुत से लोग अपने दोनों हाथों से दाहिने पैर पर मसह करते हैं और अपने दोनों हाथों से बाएं पैर पर मसह करते हैं। मेरे ज्ञान के अनुसार इस का कोई आधारा नहीं है। . . . और जिस तरीक़े से भी उसने मोज़े के ऊपरी हिस्सा पर मसह कर लिया, तो यह उसके लिए काफी होगा, लेकिन हमारी यह बात सबसे बेहतर (रूप) के बारे में है।'' किताब ‘‘फतावा अल-मर्अतिल मुस्लिमा'' (1/250) से समाप्त हुआ।

तथा यदि दाहिने पैर पर बाएं हाथ से मसह कर ले तो कोई हानि की बात नहीं है, परंतु सुन्नत यही है कि दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और बाएं पैर पर बाएं हाथ से मसह करे, सिवाय इसके कि उसके किसी एक हाथ में कोई बीमारी हो जो उसे उसके इस्तेमाल से रोक रही हो।

''कश्शाफुल क़िनाअ'' (1/119) में फरमाया : '' दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से, और बाएं पैर पर बाएं हाथ से मसह करना सुन्नत है ; मुगीरह रज़ियल्लाहु अन्हु की पिछली हदीस के कारण।''समाप्त हुआ।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर