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उस आदमी का हुक्म जो क़ुर्बानी करता है जबकि वह नमाज़ का छोड़ने वाला है

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प्रकाशन की तिथि : 03-10-2014

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प्रश्न

उस आदमी का क्या हुक्म है जो क़ुर्बानी करता है जबकि वह नमाज़ नहीं पढ़ता है। क्या यह सही है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

प्रश्न संख्या (5208) और (9400) के उत्तर में यह बीत चुका है कि नमाज़ छोड़ना धर्म से निष्कासित करने वाला कुफ्र है। इस आधार पर : नमाज़ छोड़ने वाला जो भी काम करता है वह उसे लाभ नहीं देता है और न ही उससे स्वीकार किया जाता है।

शैख सालेह अल-फौज़ान हफिज़हुल्लाह फरमाते हैं :

''जहाँ तक नमाज़ छोड़ने के साथ रोज़ा रखने का मामला है तो वह न लाभ पहुँचाता है न फायदा देता है और नमाज़ छोड़ने के साथ वह सही भी नही होता है, भले ही इन्सान कितना भी दूसरी नेकियाँ कर डाले, परन्तु वे उसे लाभ नहीं देंगे जबकि वह नमाज़ छोड़ने वाला है ; क्योंकि जो आदमी नमाज़ नहीं पढ़ता है वह काफिर है, और काफिर का कोई अमल क़बूल नहीं होता है। अतः नमाज़ छोड़ने के साथ रोज़े का कोई लाभ नहीं है।'' अंत

''अल-मुन्तक़ा मिन फतावा अल-फौज़ान'' (39/16).

तैथ शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

''जो आदमी रोज़ा रखता है और नमाज़ नहीं पढ़ता है, उसका रोज़ा क़बूल नहीं होगा। क्योंकि वह मुर्तद्द काफिर (अधर्मी) है। तथा उसकी न ज़कात कबूल होगी और न सद्क़ा और न ही कोई अन्य नेक अमल, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :

وَمَا مَنَعَهُمْ أَنْ تُقْبَلَ مِنْهُمْ نَفَقَاتُهُمْ إِلاَّ أَنَّهُمْ كَفَرُوا بِاللَّهِ وَبِرَسُولِهِ وَلا يَأْتُونَ الصَّلاةَ إِلاَّ وَهُمْ كُسَالَى وَلا يُنفِقُونَ إِلاَّ وَهُمْ كَارِهُونَ [التوبة :54]

उनके ख़र्च के स्वीकार न होने में इसके अतिरिक्त और कोई चीज़ बाधक नहीं कि उन्होंने अल्लाह औऱ उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया। और नमाज़ के लिए बड़े आलस से आते हैं, और अनिच्छापूर्वक ही ख़र्च करते हैं।'' (सूरतुत तौबाः 54)

जब व्यय (खर्च) करना जो कि दूसरों के साथ उपकार व भलाई करना है, काफिर से स्वीकार नहीं किया जायेगा, तो सीमित इबादत जो कि उसके करने वाले से आगे नहीं बढ़ती है वह तो और भी नहीं क़बूल की जायेगी। इस आधार पर जो व्यक्ति रोज़ा रखता है और नमाज़ नहीं पढ़ता है वह काफिर (नास्तिक) है, इससे अल्लाह की पनाह, और उसका रोज़ा बातिल (व्यर्थ) है, इसी तरह उसके सभी सत्कर्म उससे स्वीकार नहीं किए जायेंगे।'' अंत हुआ

''फतावा नूरून अलद-दर्ब'' लि-इब्ने उसैमीन (124/32).

अतः यदि नमाज़ छोड़ने वाला क़ुर्बानी करना चाहता है तो उसे चाहिए कि सबसे पहले अल्लाह के समक्ष अपने नमाज़ छोड़ने से तौबा और पश्चाताप करे। यदि उसने ऐसा नहीं किया और जिस चीज़ पर वह है उसी पर जमा और अटल रहा, तो उसे उस क़ुर्बानी पर सवाब नहीं मिलेगा और वह उससे स्वीकार नहीं की जायेगी। और अगर उसने स्वयं (अपने हाथ) उसे ज़बह किया है तो वह (जानवर) मुर्दार है, उसमें से खाना जायज़ नहीं है, क्योंकि मुर्तद्द (अधर्मी) का ज़बह किया हुआ जानवर मुर्दार और हराम होता है।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया : जो आदमी नमाज़ नहीं पढ़ता है यदि वह जानवर ज़बह करे तो उसका ज़बीहा नहीं खाया जायेगा ; क्योंकि वह हराम है, और अगर कोई यहूदी या ईसाई ज़बह करे तो उसका ज़बह किया हुआ जानवर हमारे लिए खाना जायज़ है, तो - अल्लाह की पनाह - उसका ज़बीहा यहूदियों और ईसाईयों के ज़बह किए हुए जानवर से भी अधिक दुष्ट है।''

''मजमूओ फतावा व रसाइल इब्न उसैमीन'' (12/45).

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर