हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
उत्तर :हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
धर्म संगत यह है कि क़ुर्बानी, क़ुर्बानी करने वाले के स्थान पर होनी चाहिए। जिस तरह कि यह धर्म संगत है कि क़ुर्बानी करनेवाला अपने क़ुर्बानी के जानवर को स्वयं ज़बह करे और उससे खाए।क़ुर्बानी का उद्देश्य मात्र गोश्त नहीं है, बल्कि उसका मक़सद इस धर्मकाण्ड और धार्मिक कृत्य का प्रदर्शन करना है।
शैख सालेह अल-फौज़ान हफिज़हुल्लाह ने फरमाया :
‘‘नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम क़ुर्बानी और अक़ीक़ा के जानवर को मदीना में अपने घर में ज़बह करते थे, उन्हें मक्का नहीं भेजते थे, हालाँकि वह मदीना से बेहतर है, और उसमें ऐसे गरीब लोग थे जो हो सकता है मदीना के गरीबों से अधिक ज़रूरतमंद रहे हों।इसके बावजूद आप ने उस स्थान की पाबंदी की जिसके अंदर अल्लाह ने इबादत की अदायगी करना निर्धारित किया है।चुनाँचे आप ने हज्ज की क़ुर्बानी के जानवर (हदी) को मदीना मे नहीं ज़बह किया, और न तो अक़ीक़ा और क़ुर्बानी के जानवर को मक्का भेजा, बल्कि हर प्रकार के जानवर को उसके उस स्थान पर ज़बह किया जिसमें उसे ज़बह करना धर्मसंगत है। ''और सबसे श्रेष्ठ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का तरीक़ा है, और सबसे बुरा मामला नयी अविष्कार कर ली गई चीज़ें (नवाचार) हैं, और हर बिदअत (नवाचार) पथभ्रष्टता है।’’
‘‘अल-मुन्तक़ा मिन फतावा अल-फौज़ान’’ (10/50) से साप्त हुआ।
यही मूल सिद्धांत है : कि क़ुर्बानी करनेवाला अपने उस स्थान में क़ुर्बानी करे जिसमें वह उपस्थिति है, और किसी को अपनी ओर से किसी दूसरे देश में वकील न बनाए।
किंतू . . यदि क़ुर्बानी करनेवाला एक देश में है, और उसका परिवार किसी दूसरे देश में है, तो अगर वह दो जानवर ज़बीहा पेश कर सकता है, एक अपने देश में, और दूसरा अपने परिवार के पास, तो यही सर्वश्रेष्ठ है। यदि वह इसमें सक्षम नहीं है तो उसके लिए कोई आपत्ति की बात नहीं है कि वह अपने परिवार के पास पैसे भेज दे ताकि वे उसकी ओर से अपने देश में क़ुर्बानी करें।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया :
वह व्यक्ति जो अपने देश से दूर इस देश में आया है, और उसके वहाँ बाल बच्चे हैं, और वे लोग यहाँ से अधिक ज़रूरतमंद हैं, क्या उसके लिए बेहतर यह है कि वह अपने क़ुर्बानी के जानवर को यहाँ ज़बह करे या उन्हें पैसे भेज दे ताकि वे इसकी ओर से क़ुर्बानी करें?और आप, अल्लाह आपको तौफीक़ प्रदान करे, कुछ मुसलमान देशों में सख्त ज़रूरत को जानते है।
तो उन्हों ने उत्तर दिया : मैं इस स्थिति में यह उचित समझता हूँ कि वह यहाँ और वहाँ दोनों जगह क़ुर्बानी करे। अगर वह इसमें सक्षम नहीं है तो वहाँ क़ुर्बानी करे ताकि उसके घर वाले इन शुभ दिनों में क़ुर्बानी से लाभान्वित हो सकें।’’
''अल्लिक़ा अश्शहरी'' (1/440) से समाप्त हुआ।
तथा उनसे यह भी प्रश्न किया गया कि :
हम इस देश के नहीं हैं, और आपके ऊपर यह बात रहस्य नहीं है कि हमारे घर वाले कुर्बानी और उसके गोश्त तथा चमड़े से लाभ उठाने के सबसे अधिक ज़रूरतमंद हैं, और आमतौर पर वे गरीबी से पीड़ित होते हैं, तो क्या हमारे लिए संभव है कि हम उनके पास क़ुर्बानी के जानवर की क़ीमत भेज दें और किसी को अपनी ओर से प्रतिनिधित्व करने के लिए वकील बना दें, जबकि ज्ञात रहे कि इसका मक़सद इस धार्मिक कृत्य (अनुष्ठान) का प्रदर्शन करना है?
तो उन्हों ने उत्तर दिया :
''यदि इन्सान किसी देश में है और उसके घर-परिवार वाले दूसरे देश में हैं, तो उसके ऊपर कोई आपत्ति की बात नहीं है कि वह किसी को वकील बना दे जो उसके परिवार वालों के पास उसकी ओर से क़ुर्बानी करे ताकि उसके परिवार वाले क़ुर्बानी से खुशी का अनुभव करें और उससे लाभ उठा सकें ; क्योंकि अगर उसने परदेश में क़ुर्बानी की, तो कु़र्बानी के गोश्त को कौन खाएगा? संभावित है कि वह किसी को न पाए जिसे दान कर सके। इसलिए हम उचित समझते हैं कि जिसके घर-परिवार वाले हैं वह क़ुर्बानी के जानवर की क़ीमत को अपने घर वालों के पास भेज दे और वे लोग वहाँ क़ुर्बानी करें।’’
अल्लिक़ा अश्शहरी’’ (2/306) से समाप्त हुआ।