रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
हिन्दी

जिस व्यक्ति को किसी ने गोद ले लिया हो और उसे स्वयं से संबंधित कर लिया हो तो वह क्या करे और क्या उस हराम निसबत -संबंध- से उसका निकाह करना सही है ?

160909

प्रकाशन की तिथि : 18-02-2012

दृश्य : 4421

प्रश्न

मेरी एक सहेली एक ऐसे युवक से शादी करना चाहती है जिसके माता पिता की पिछले वर्ष मृत्यु हो गई, और यह युवक उन दोनों का गोद लिया हुआ बेटा था, उसको गोद लेने वाले बाप ने उसका नाम रखा।

उसने अपने वास्तविक माता पिता को पाने की बहुत कोशिश की ; किंतु कोई फायदा नहीं हुआ ;  क्योंकि वह अब इकतीस वर्ष का है।

मेरा प्रश्न यह है कि : यदि उसका लक़ब या उसके परिवार का नाम उसको गोद लेने वाले बाप के अधीन है तो क्या उस नाम से उसका निकाह सही है ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

गोद लेने का निषेधक़ुरआन व सुन्नतऔर विद्वानों कीसर्वसहमति के साथप्रमाणित है, अतः किसीके लिए जाइज़ नहींहै कि वह अपने बापके अलावा किसीअन्य की ओर मंसूबहो। तथा जो व्यक्ति- उदाहरण के तौरपर – किसी अनाथ कीदेखरेख का ज़िम्मेदारहै उसके लिए जाइज़नहीं है कि वह उसेअपनी तरफ और अपनेक़बीले की तरफ मंसूबकरे, बल्किउसके ऊपर अनिवार्यहै कि वह उसे उसकेबाप की ओर मंसूबकरे। यदि उसकेबाप का पता न हो,तो उसे अपनी तरफभाईचारा या दोस्तीव वफादारी के तौरपर मंसूब करे (औरवह गठबंधन की सरपरस्तीहै, गुलामी सेआज़ादी की सरपरस्तीनहीं है), और यह ऐसीचीज़ है जिस पर पारिवारिकनियमों (पर्सनलला) के क्षेत्रमें अमल नही कियाजाता है।

इस युग में आदमीको प्रमाण पत्रकी आवश्यकता होतीहै ताकि वह अपनेजीवन में एक शिक्षार्थी,एक कार्यकर्ताऔर वैवाहिक रूपसे चल सके। तथाउस आदमी की स्थितिमें जिसे गोद लियागया है जिसके बापका पता नहीं हैकि उसकी ओर उसेसंबंधित किया जाये: तो राज्य को चाहिएकि उसे एक (काल्पनिक)मुरक्कब नाम कीओर मंसूब करे,किसी विशेषव्यक्ति या किसीखास क़बीले (जनजाति)से संबंधित न करे।

तथा गोद लिए गयेव्यक्ति को चाहिएकि अपने माता पिताको तलाश करने काइच्छुक बने,क्योंकि इस परशरई अहकाम और मनोवैज्ञानिकप्रभाव निप्कर्षितहोते हैं।

तथा जिन बातोंका वर्णन हो चुकाउनके बारे मेंतर्कसहित और विद्वानोंके कथनों के साथअधिक जानकारी केलिए : प्रशन संख्या(126003), (5201),और (10010) के उत्तरदेखें।

दूसरा :

गोद लिए गए व्यक्तिकी शादी के सहीहोने का उसके नामको सही करने सेकोई संबंध नहींहै ; क्योंकिनिकाह की शर्तेंजिन पर उसका सहीहोना निर्भर करताहै वे : पति और पत्नीका निर्धारण,पत्नी के सरपरस्त– ज़िम्मेदार – कीतरफ से ईजाब औरपति की तरफ से स्वीकृति,पत्नी की सहमति,और गवाहों की उपस्थितिया निकाह का एलान,तथा रूकावटों कीअनुपस्थितिहैं।

और शादी के इच्छुकआदमी के नाम काउस आदमी से संबंधितहोना जिसने उसेगोद लिया है शादीकी शर्तों मेंसे किसी शर्त सेनहीं टकराता है,क्योंकिशादी के अंदर केवलयह निर्धारित करनाहै कि यह वही विशिष्टव्यक्ति है,उसके बाप के नामया उसके खानदानके नाम की परवाहकिए बिना,बल्कि यहाँ तककि यदि वह शादीके बाद अपना नामबदल दे, तोइस से शादी पर कोईप्रभाव नही पड़ेगा,क्योंकिशादी में अपेक्षितवह व्यक्ति हैजिसका नाम लियागया है, उसका नामनहीं है।

तथा – महत्व के लिए- प्रश्न यंख्या(104588) का उत्तर देखें,उसके अंदर ‘‘पति पत्नीके निर्धारण”के शर्त की व्याख्याहै, औरउसके अंदर फर्ज़ीनाम के शादी कीप्रामाणिकता कोप्रभावित न करनेका वर्णन है।

यहाँ हम उस व्यक्तिको सचेत करना उचितसमझते हैं जिसने- गलती से या जानबूझकरया अज्ञानता में- किसी व्यक्तिको सरकारी कागज़ातमें अपनी ओर मंसूबकर लिया है, वह राज्यके यहाँ इसको शुद्धकरा ले ; ताकि गोदलिए गए व्यक्तिकी निस्बत को बदलदे ; क्योंकिइसके न होने परऐसे अहकाम निष्कर्षितहोते हैं जो मीरासऔर महरमियत वगैरहसे संबंधित हैं।यदि वह ऐसा करनेकी ताक़त नहीं रखताहै तो गोद लिए गएव्यक्ति को चाहिएकि वह स्वयं अपनीस्थिति का सुधारकर ले, वह शरई अदालतके पास जाए ताकिवह सरकारी विभागोंको संबोधित करकेउसकी स्थिति कासुधार करे और उसकेलिए ऐसा दस्तावेज़निकालने को कहेजिसमें उसका मुरक्कबनाम हो, जिसमेंवह किसी विशेषव्यक्ति की ओरमंसूब न हो,और संभवहै कि पहला नामवैध नामों मेंकोई भी नाम हो औरदूसरा नाम और उसकेबाद वाला नाम ऐसाहो जिसके द्वाराअल्लाह की इबादतहोती है, जैसे – अब्दुल्लाह,अब्दुलकरीम।

शैख अब्दुल अज़ीज़बिन बाज़ रहिमहुल्लाह-अल्लाह उन परदया करे – नेफरमाया :

“औरउसका शरई नामोंमे से कोई नाम रखेजैसे – अब्दुल्लाहबिन अब्दुल्लाह,अब्दुल्लाहबिन अब्दुल्लतीफ,अब्दुल्लाहबिन अब्दुल करीम,सभी लोगअल्लाह के बंदेहैं, ताकिस्कूलों में उसेहानि न पहुँचे,तथा उसेकमी, संकोचऔर हानि न पहुंचे।उद्देश्य यह हैकि : उसका अल्लाहकी इबादत वालानाम रखे, जैसे – अब्दुल्लाहबिन अब्दुल करीम,अब्दुल्लाहबिन अब्दुल्लतीफ,अब्दुल्लाहबिन अब्दुल मलिक,और इसकेसमान अन्य नाम,और यही -इनशा अल्लाह- सहीहोने के अधिक निकटहै, याउसका ऐसा नाम रखेजो महिलाओं औरपुरूषों दोनोंके लिए योग्य हो,यह भी अधिकसुरक्षित हो सकताहै ; क्योंकिउसे उसकी माँ कीओर मंसूब कियाजायेगा, यदि उसका ऐसा नामरख दिया जो पुरूषोंऔर महिलाओं दोनोंके लिए उचित हैजैसे कि कहे : अब्दुल्लाहबिन अतिय्या बिनअतिय्यतुल्लाह,अब्दुल्लाहबिन हिबतुल्लाह, क्योंकि‘‘हिबतुल्लाह”, ‘‘अतिय्यतुल्लाह”पुरूषों और महिलाओंदोनों के लिए उचितहै।”

“फतावानूरून अलद-दर्ब”(कैसिट न. 83) से समाप्तहुआ।

यदि उसके लिए सरकारीकागज़ात में ऐसाकरना दुर्लभ होजाए, तोकम से कम जो चीज़उसके ऊपर अनिवार्यहै वह यह है कि वहअपने दैनिक जीवनमें इसे लागू करे,इस प्रकार कि वहअपने संबंधियोंऔर आस पास के लोगोंके बीच अपने नसब(वंशज) की वास्तविकताको प्रकाशित करदे, ताकिउसका नसब किसीदूारे के नसब सेन मिल जाए,तथा महारिम(वे औरतेंजिनसे उसकाविवाह हरामहै) और मीरास औरइसी तरह अन्य अहकामउसके उपर और उसकेआस पास के लोगोंपर संदिग्ध न होजाएं, चुनांचेअवास्तविक नसबके आधार पर वह याउसके बेटे ऐसेव्यक्ति से मिलजाएं जिनसे उनकामिलना वैध नहींहै, औरवह उस व्यक्तिका वारिस बन जाएजिसने उसे गोदलिया है, या वास्तविक नसबसे उसके रिश्तेदारउस व्यक्ति केवारिस बन जायें, इसकेअलावा अन्य अहकामजो उस गलत नसब परनिष्कर्षित होतेहैं।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर