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अल्लाह तआला के कथन ‘‘महीनों का आगे पीछा करना, नास्तिकता के अंदर वृद्धि है’’ का अर्थ

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प्रकाशन की तिथि : 24-11-2015

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प्रश्न

सूरतुत तौबा की आयत संख्या 37 में जिस ’’नसी’’ - महीनों को आगे पीछे करने- को हराम ठहराया गया है उसका क्या मतलब है? तथा इसके हराम किए जाने से पहले अरब द्वीप में जो हुर्मत वाले महीनों को विलंब करने की प्रथा थी वह किस प्रकार की थी?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

उत्तर :

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

अल्लाह तआला ने फरमाया :

إنما النَّسِيءُ زِيَادَةٌ فِي الْكُفْرِ يُضَلُّ بِهِ الَّذِينَ كَفَرُوا يُحِلُّونَهُ عَاماً وَيُحَرِّمُونَهُ عَاماً لِيُوَاطِئُوا عِدَّةَ مَا حَرَّمَ اللَّهُ فَيُحِلُّوا مَا حَرَّمَ اللَّهُ زُيِّنَ لَهُمْ سُوءُ أَعْمَالِهِمْ وَاللَّهُ لا يَهْدِي الْقَوْمَ الْكَافِرِينَ [التوبة : 37].

‘‘महीनों का आगे पीछा करना भी कुफ्र की वृद्धि है, इसके द्वारा वे लोग पथ भ्रष्ट किए जाते हैं जो नास्त्कि हैं। एक साल तो उसे हलाल ठहरा लेते हैं, और एक साल उसी को हुर्मत (सम्मान) वाला कर लेते हैं, ताकि अल्लाह ने जो महीने हराम ठहराए हैं, उसकी गिंती पूरी कर लें। फिर उसे हलाल ठहरा लें जिसे अल्लाह ने हराम किया है। उनके लिए उनके बुरे कार्य संवार कर पेश किए गए हैं, और अल्लाह तआला काफिरों का मार्गदर्शन नहीं करता।'' (सूरतुत तौबा : 36).

इस आयत में ‘‘विलंब’’ से क्या अभिप्राय है, इसके बारे में विद्वानों ने कई कथनों पर मतभेद किया है, उनमें सबसे प्रसिद्ध ये हैं :

प्रथम : वे लोग कुछ हुर्मत (सम्मान) वाले महीनों को उनके अलावा दूसरे महीनों से बदल दिया करते थे। और उनके बदले में इन महीनों को हराम ठहराते थे। तथा ज़रूरत पड़ने पर जिस हराम महीने को हलाल ठहराना चाहते थे उसे हलाल ठहरा लेते थे। परंतु वे चाँद के महीनों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं करते थे। चुनाँचे वे मुहर्रम के महीने को हलाल कर लेते थे, और उसमें लड़ाई को हलाल ठहरा लेते थे ; क्योंकि लगातार तीन हुर्मत वाले महीनों (ज़ुल-क़ादा, ज़ुल-हिज्जा, और मुहर्रम) की वजह से उनके ऊपर निषेद्ध की अवधि लंबी हो जाती थी। फिर वे उसकी जगह पर सफर के महीने को हराम ठहराते थे। गोया वे उसे उधार लेते थे फिर उसे पूरा करते थे।

यह सबसे सही, सबसे प्रसिद्ध और आयत के अर्थ के सबसे अधिक अनुकूल है। जैसा कि सलफ (पूर्वजों) के एक समूह ने इसे स्पष्ट रूप से वर्णन किया है। और इसी को इब्ने कसीर और उनके अलावा अन्य मुहक़्क़ेक़ीन (अन्वेषकों) ने चयन किया है। क्योंकि यह अल्लाह तआला के कथनः

يُحِلُّونَهُ عَامًا وَيُحَرِّمُونَهُ عَامًا

''वे एक साल तो उसे हलाल ठहरा लेते हैं, और एक साल उसी को हुर्मत (सम्मान) वाला कर लेते हैं।''

और अल्लाह के कथन

لِيُوَاطِئُوا عِدَّةَ مَا حَرَّمَ الله

''ताकि अल्लाह ने जो महीने हराम ठहराए हैं, उसकी गिंती पूरी कर लें।''

के अनुकूल है।

इसी रूप के द्वारा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने भी आयत के अंदर ‘नसी’ (विलंब) की व्याख्या की है।

दूसरा अर्थ : वे लोग एक साल सफर के साथ मुहर्रम को हलाल ठहराते थे और उन्हें सफरैन (दो सफर) का नाम देते थे। फिर अगले साल उन दोनों को हराम ठहराते थे और उन्हें मुहर्रमैन (दो मुहर्रम) का नाम देते थे। यह ''नसी'' के बारे में एक विचित्र रूप है। जैसाकि हाफिज़ इब्ने कसीर का कहना है।

तीसरा अर्थ : वे मुहर्रम के महीने को हलाल ठहराते थे, और ज़रूरत पड़ने पर सफर को भी हलाल ठहराए रहते थे और उसकी जगह रबीउल-अव्वल को कर देते थे। इमाम अहमद ने इस कथन का खण्डन किया है।

रही बात उस ‘नसी’ (विलंब) की जो अरब द्वीप में पाई जाती थी और इस्लाम ने उसका समय पाया और उसे हराम ठहराया, तो इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह उसके बारे में फरमाते हैं : इमाम मुहम्मद बिन इसहाक़ ने इस पर अपनी पुस्तक ‘‘अस्सीरह’’ में अच्छी और लाभप्रद बात की है, चुनाँचे वह कहते हैं : सबसे पहले जिसने अरबों पर महीनों को आगे पीछे किया, चुनाँचे अल्लाह के हराम किए हुए महीनों में से कुछ को हलाला ठहरा लिया, और अल्लाह सर्वशक्तिमान के हलाल किए हुए महीनों में से कुछ को हराम ठहरा दिया वह ‘‘क़लम्मस’’ था, और वह: हुज़ैफा बिन अब्द मुदरिका फुक़ैम बिन अदी बिन आमिर बिन सअलबा बिन अल-हारिस बिन मालिक बिन किनाना बिन ख़ुज़ैमा बिन मुदरिका बिन इलयास बिन मुज़र बिन नज़ार बिन मअद बिन अदनान है। फिर उसके बाद उसके बेटे अब्बाद, फिर अब्बाद के बाद उसके बेटे क़लअ बिन अब्बाद, फिर उसके बेटे उमैया बिन क़लअ, फिर उसके बेटे औफ़ बिन उमैया, फिर उसके बेटे अबू सुमामा जुनादा बिन औफ़ ने इस काम को जारी रखा। और यह उनमें सबसे अंतिम व्यक्ति था और जब इस्लाम का आगमन हुआ तो इसी का ज़माना था। चुनांचे हज्ज से फारिग होने के बाद अरब के लोग उसके पास एकत्रित होते थे और वह उन्हें भाषण देता, और रजब, ज़ुल-क़ादा, और ज़ुल-हिज्जा के महीनों को हराम क़रार देता, और एक साल मुहर्रम को हलाल ठहरा देता, और उसकी जगह पर सफर को हराम घोषित कर देता, तथा एक साल उसे हराम ही रहने देता, ताकि अल्लाह ने जो महीने हराम किए हैं उनकी गिंती पूरी कर ले। तो इस तरह वह अल्लाह के हराम किए हुए महीने को हलाल ठहरा लेता, और अल्लाह के हलाल किए हुए महीनों को हराम ठहरा देता।

उनका कवि उमैर बिन क़ैस जो जज़ल अत्तअआन से प्रसिद्ध था, इस पर गर्व करते हुए कहता था :

.मअद के सभी क़बीलों को पता है कि मेरी जाति लोगों में सबसे प्रतिष्ठित है क्योंकि वे अच्छे आचरण वाले हैं।

क्या हम ही मअद पर हलाल महीनों को आगे पीछे कर उन्हें हराम घोषित करने वाले नहीं हैं!

कौन है जो हमारे प्रतिशोध से बच निकला है और कौन है जिसे हम ने लगाम नहीं लगाया!

देखिए : ‘‘अल-अज़बुन नमीर मिन मजालिस अश्शंक़ीती फित्तफ्सीर’’ (5/439), ‘‘तफ्सीर इब्ने कसीर’’ (4/144), ''तफसीर तबरी'' (14/235).

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर