हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
उत्तरः
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
क़ुर्बानी इबादतों में से एक इबादत है जिसके प्रति शरीयत ने रूचि दिलाई है, इसके बारे में पुरूष और स्त्री तथा विवाहिता और अविवाहिता के बीच कोई अंतर नहीं किया है। क़ुर्बानी के बारे में वर्णित नुसूस का सामान्य अर्थ इसी बात को इंगित करता है, बिना किसी चीज़ को विशिष्ट किए और बिना किसी प्रतिबंध के।
यदि महिला के पास आर्थिक शक्ति है, तो उसके लिए अपनी ओर से और अपने घर वालों की ओर से अपने धन से क़ुर्बानी करना सुन्नत है, विशेषकर यदि घर का मालिक इस अनुष्टान को अंजाम देने से मना कर दे।
इब्ने हज़्म रहिमहुल्लाह ‘‘अल-मुहल्ला’’ (6/37) में फरमाते हैं : ‘‘क़ुर्बानी जिस तरह मुक़ीम (निवासी) के लिए है उसी तरह मुसाफिर के लिए भी है, दोनों में कोई अंतर नहीं है। इसी तरह महिला के लिए भी है। क्योंकि अल्लाह तआला का कथन हैः ( وَافْعَلُوا الْخَيْرَ) ‘‘और भलाई करो।’’ [सूरतुल हज्ज :88] और क़ुर्बानी करना भलाई का काम है। और हमने जिन लोगों का उल्लेख किया है उनमें से हर एक भलाई करने का ज़रूरतमंद है और उसके लिए ऐसा करना वांछित है। तथा इसलिए कि हमने क़ुर्बानी के बारे में अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन उल्लेख किया है और आप अलैहिस्सलाम ने शहरवासी से देहाती को, या मुक़ीम (ग़ैर-यात्री) से मुसाफिर (यात्री) को, या महिला से पुरूष को विशिष्ट नहीं किया है। अतः उसमें से किसी चीज़ को विशिष्ट करना बातिल (अमान्य) है, जायज़ नहीं है।’’ संक्षेप के साथ समाप्त हुआ।
तथा ‘‘अल-मौसूअतुल फिक़्हिय्या’’ (5/81) में आया हैः ‘‘पुरूष होना वाजिब या सुन्नत होने की शर्तों में से नहीं है, तो जिस तरह वह पुरूषों के लिए अनिवार्य है उसी तरह स्त्रियों के लिए भी अनिवार्य है, क्योंकि अनिवार्यता या सुन्नियत के प्रमाण सभी को शामिल हैं।’’ संक्षेप के साथ समाप्त हुआ।
इस आधार परः यदि घर का मुखिया (मालिक) इस अनुष्ठान को अदा करने से मना कर दे, तो पत्नी के लिए जायज़ है कि वह स्वयं इसको अंजाम दे या किसी दूसरे आदमी के माध्यम से जिसे वह उसे खरीदने और अपनी ओर से उसे ज़बह करने के लिए नियुक्त कर दे, चाहे उसके पति को इसका ज्ञान हो या उसे इसका ज्ञान न हो, चाहे उसकी अनुमति से हो या उसकी अनुमति के बिना हो, क्योंकि क़ुर्बानी करना सभी के हक़ में सुन्नत है। अतः यदि घर का मालिक क़ुर्बानी करने से मना कर दे, तो पत्नी क़ुर्बानी कर सकती है। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (ऐ लोगो, हर घर वाले पर हर साल एक क़ुर्बानी अनिवार्य है ..)। इसे अहमद (हदीस संख्याः 17216), अबू दाऊद (हदीस संख्याः 2788) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने ‘सहीह अबू दाऊद’ में इसे हसन कहा है।
खतीब शर्बीनी रहिमहुल्लाह ने किताब ‘अल-उद्दह’ के लेखक से उनका यह कथन उल्लेख किया हैः ‘‘यदि घर वाले अनेक हैं तो यह किफायत (पर्याप्त) के तौर पर सुन्नत है, अगर घर वालों में से किसी एक ने उसे कर दिया तो सभी की तरफ़ से काफी हो जाएगी। नहीं तो प्रति व्यक्ति के हक़ में सुन्नत रहेगी।’’
‘‘मुग़्नी अल-मुहताज’’ (6/123) से समाप्त हुआ।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।