गुरुवार 20 जुमादा-1 1446 - 21 नवंबर 2024
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जिस ने मुसलमानों को बुरा-भला कहा और काफिरों की प्रशंसा की वह तबाही के कगार पर है।

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प्रकाशन की तिथि : 18-09-2020

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प्रश्न

उस आदमी का क्या हुक्म है जिसने मुसलमानों को बुरा-भला कहा और काफिरों की प्रशंसा की और वह कामना करता है कि उन्हीं में से हो जाए ॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

अल्लाह तआला ने अपने मोमिन (विश्वासी) बंदों को आपस में एक दूसरे से प्यार रखने और एक दूसरे से दोस्ती व वफादारी रखने का आदेश दिया है, जिस तरह कि उन्हें उनके दुश्मन से द्वेष रखने, अल्लाह के लिए उनसे दुश्मनी रखने का आदेश दिया है, और अल्लाह तआला ने इस बात को स्पष्ट किया है कि दोस्ती मोमिनों के बीच ही हो सकती है, और उनके तथा काफिरों के बीच दुश्मनी और उनसे बेज़ारी उनके दीन के सिद्धांतों में से और उनके दीन का पूरक है, और इस बारे में इतनी आयतें, हदीसें और सलफ (पूर्वजों) के कथन हैं जो न गिने जाने के क़रीब हैं।

उन्हीं में से अल्लाह तआला का यह फरमान है :

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لا تَتَّخِذُوا الْيَهُودَ وَالنَّصَارَى أَوْلِيَاءَ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاءُ بَعْضٍ وَمَنْ يَتَوَلَّهُمْ مِنْكُمْ فَإِنَّهُ مِنْهُمْ إِنَّ اللَّهَ لا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ

المائدة :51

“हे ईमानवालो! तुम यहूदियों और ईसाईयों को दोस्त न बनाओ, ये तो आपस में एक दूसरे के दोस्त हैं, तुम में से जो कोई भी इन से दोस्ती करे तो वह उन्हीं में से है, अल्लाह तआला ज़ालिमों को हिदायत नहीं देता।” (सूरतुल मायदा : 51).

तथा अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है :

إِنَّمَا وَلِيُّكُمُ اللَّهُ وَرَسُولُهُ وَالَّذِينَ آمَنُوا الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُمْ رَاكِعُونَ * وَمَنْ يَتَوَلَّ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَالَّذِينَ آمَنُوا فَإِنَّ حِزْبَ اللَّهِ هُمُ الْغَالِبُونَ * يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لا تَتَّخِذُوا الَّذِينَ اتَّخَذُوا دِينَكُمْ هُزُوًا وَلَعِبًا مِنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ مِنْ قَبْلِكُمْ وَالْكُفَّارَ أَوْلِيَاءَ وَاتَّقُوا اللَّهَ إِنْ كُنْتُمْ مُؤْمِنِينَ

المائدة : 55-57 

“(मुसलमानो)! तुम्हारा दोस्त तो केवल अल्लाह और उसका पैगंबर तथा वो लोग हैं जो ईमान लाए, जो नमाज़ क़ायम करते हैं और ज़कात अदा करते हैं और वे रूकूअ करने (झुकने) वाले (विनम्रता अपनाने वाले) हैं। और जो इंसान अल्लाह से और उसके पैगंबर और मुसलमानों से दोस्ती करेगा तो यक़ीन मानो कि अल्लाह का गिरोह ही गालिब आने वाला (प्रभुत्ता प्राप्त करने वाला) है। हे ईमान वालो, उन लोगों को दोस्त न बनाओ जो तुम्हारे दीन को हँसी-खेल बनाये हुए हैं, (चाहे) वे उन में से हों जो तुम से पहले किताब दिए गए या काफिर हों, अगर तुम ईमानवाले हो तो अल्लाह से डरते रहो।” (सूरतुल मायदा : 55-57).

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने स्पष्ट कर दिया है कि अल्लाह के लिए नफरत करना (द्वेष रखना) और अल्लाह के लिए महब्बत करना ईमान की कड़ियों में से है, चुनांचे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 4681) ने अबू उमामह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया है कि आप ने फरमाया : “जिसने अल्लाह के लिए महब्बत किया, अल्लाह के लिए द्वेष रखा, अल्लाह के लिए दिया और अल्लाह के लिए रोका तो उसने ईमान मुकम्मल कर लिया।” इसे अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद में सहीह कहा है।

अल्लामह अबुत तैयिब सिद्दीक़ बिन हसन अल-बुखारी रहिमहुल्लाह ने किताब “अल-इब्रह” (पृष्ठः 245) में फरमाया : “जहाँ तक उस आदमी का मामला है जो ईसाइयों की सराहना करता है, और कहता है कि वे न्याय वाले हैं, या वे न्याय को पसंद करते हैं, और बैठकों में उनकी अधिक प्रशंसा करता है, और मुसलमानों के लिए सुल्तान की चर्चा का अपमान करता है, और काफिरों की ओर इंसाफ, और अन्याय व अत्याचार न करने की निसबत करता है ; तो प्रशंसा करने वाले का हुक्म यह हैकि वह फासिक़, अवज्ञा करने वाला, बड़े गुनाह का मुरतकिब है, उसके ऊपर उससे तौबा करना और उस पर पछतावा करना अनिवार्य है ; यदि उसने उसकी तारीफ काफिरों के व्यक्तित्व की वजह से की है उनके अंदर पाये जानेवाले कुफ्र का एतिबार नहीं किया है। अगर उसने उनकी प्रशंसा कुफ्र के एतिबार से की है तो वह काफिर है ; क्योंकि उसने उस कुफ्र की प्रशंसा और सराहना की है जिसे सभी शरीयतों ने घृणित ठहराया है।”

तथा शैख अब्दुर्रहमान अल-बर्राक हफिज़हुल्लाह ने फरमाया :

“जिस व्यक्ति ने यह अक़ीदा रखा कि यहूद व नसारा एक सही दीन पर हैं तो वह काफिर है, यद्यपि वह इस्लाम के सभी प्रावधनों पर अमल करने वाला ही क्यों न हो, और वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ईश्दूतत्व (पैगंबरी) को सामान्यता झुठलाने वाला है।

इस आधार पर काफिरों के पसंदीदा आचार व नैतिकता को उनकी सराहना और प्रशंसा के तौर पर चर्चा करना, उन पर मोहित होना और उनका आदर व सम्मान करना हराम व निषिद्ध है, क्योंकि यह उनके बारे में अल्लाह के फैसले के विपरीत है।” अंत हुआ।

http://majles.alukah.net/showthread.php?t=15302

बल्कि इमाम नववी ने मुर्तद्द होने के शब्दों के अंतर्गत फरमाया :

“यदि बच्चों का शिक्षक कहे कि : यहूद मुसलमानों से बहुत अच्छे हैं ; क्योंकि वे अपने बच्चों के शिक्षकों के हुक़ूक़ को पूरा करते हैं, तो वह काफिर हो गया।” किताब “रौज़तुत तालिबीन” (10/69) से समाप्त हुआ।

अतः जब उसने मुसलमानों को बुरा भला कहने और काफिर की सराहना करने के साथ इस बात को भी मिला लिया कि उसने यह कामना की वह काफिरों में से होता, तो वह काफिर है, इस्लाम की मिल्लत से खारिज और निष्कासित है, उससे तौबा करवाया जायेगा और दीन की शिक्षा दी जायेगी, यदि उसने तौबा कर लिया तो ठीक, अन्यथा शासक उसे उसके मुर्तद हो जाने (स्वधर्म त्याग करने) की वजह से क़त्ल कर देगा।

तथा प्रश्न संख्या (6688) का उत्तर देखें।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर