शनिवार 20 शव्वाल 1446 - 19 अप्रैल 2025
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इस्लाम में बच्चों के अधिकार

प्रश्न

पत्नी और बच्चों के पुरुष पर क्या अधिकार हैं?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

  • पत्नी के अधिकार :

हमने प्रश्न संख्या (10680) के उत्तर में इन अधिकारों का विस्तार से वर्णन किया है।

  • बच्चों के अधिकार :

अल्लाह ने बच्चों को उनके माता-पिता पर वैसे ही अधिकार दिए हैं, जैसे माता-पिता के अपने बच्चों पर अधिकार होते हैं।

इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्होंने कहा : "अल्लाह ने उन्हें अबरार (नेक) कहा है क्योंकि उन्होंने अपने पिता और बच्चों के साथ नेक व्यवहार किया। जिस तरह तुम्हारे पिता का तुम पर अधिकार है, उसी तरह तुम्हारे बच्चे का भी तुम पर अधिकार है।" “अल-अदब अल-मुफ़रद” (94)

अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम) ने अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस में फरमाया : “...और आपके बच्चे का आप पर अधिकार है।” मुस्लिम (हदीस संख्या : 1159)।

बच्चों के अपने माता-पिता पर कुछ अधिकार ऐसे हैं जो बच्चे के जन्म से पहले ही होते हैं, जिनमें से कुछ ये हैं :

  1. नेक पत्नी का चयन ताकि वह एक नेक माँ बने :

अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हैं कि आपने फरमाया : "एक महिला से चार कारणों से शादी की जाती है : उसका धन, उसका वंश, उसकी सुंदरता और उसका धर्म। इसलिए तुम उस महिला से शादी करो जो धार्मिक हो, तुम्हारे हाथ धूल में सनें।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 4802) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1466) ने रिवायत किया है।

शैख़ अब्दुल-ग़नी देहलवी कहते हैं : “ऐसी महिलाओं को चुनें जो धार्मिक, सदाचारी और कुलीन वंश की हों, ताकि महिला व्यभिचार की संतान से न हो, क्योंकि (अगर कोई महिला नाजायज वंश की है तो) यह बुराई उसके बच्चों में आ सकती है। अल्लाह तआला ने फरमाया :

الزاني لا ينكح إلا زانية أو مشركة والزانية لا ينكحها إلا زان أو مشرك

“व्यभिचारी – पुरुष - केवल व्यभिचारिणी या मुशरिक – महिला - से विवाह करता है; और व्यभिचारिणी – महिला – से कोई व्यभिचारी या मुशरिक – मर्द - ही विवाह करता है।” [सूरतुन-नूर 24:3] दरअसल, इस्लाम ने समानता के लिए और शर्मिंदगी से बचने के लिए उपयुक्त वर की तलाश करने का आदेश दिया है।” “शर्ह सुनन इब्न माजा” (1/141)

जन्म के बाद बच्चों के अधिकार :

1- बच्चे के जन्म के समय उसके लिए तहनीक करना सुन्नत है :

अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित कि उन्होंने कहा : अबू तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु का बेटा बीमार था। अबू तलहा बाहर गए हुए थे और बच्चा मर गया। जब अबू तलहा वापस आए, तो उन्होंने कहा : मेरे बेटे को क्या हुआॽ उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा (उनकी पत्नी) ने कहा : वह पहले से ज़्यादा शांत है। फिर वह उनके लिए रात का खाना लेकर आईं और उन्होंने खाना खाया। फिर उन्होंने उनके साथ वैवाहिक संबंध बनाया। जब वह फारिग हुए तो उनकी पत्नी ने कहा : उन्होंने बच्चे को दफना दिया। जब सुबह हुई, तो अबू तलहा अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) के पास आए और आपको इस घटना के बारे में बताया। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : “क्या कल रात तुम्हारा वैवाहिक संबंध हुआ था?” उन्होंने कहा : हाँ। आपने कहा : अल्लाहुम्मा बारिक लहुमा “ऐ अल्लाह, उन दोनों को बरकत प्रदान कर।” फिर वह कहती हैं कि बाद में मैंने एक लड़के को जन्म दिया, तो अबू तलहा ने मुझसे कहा : "इसे तब तक अपने पास रखो जब तक तुम इसे रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास न ले जाओ।" वह उसे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास ले गए और मैंने उनके साथ कुछ खजूर भेजे। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने बच्चे को ले लिया और कहा : क्या इसके साथ कुछ हैॽ उन्होंने कहा : हाँ, कुछ खजूरें हैं।" नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उन्हें लिया और चबाया, फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने मुँह से कुछ चबाई हुई खजूर लेकर बच्चे के मुँह में डाल दिया और इससे उसका तहनीक किया और उसका नाम अब्दुल्लाह रखा।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5153, मुस्लिम (हदीस संख्या : 2144)

नववी ने कहा :

“विद्वान इस बात पर एकमत हैं कि बच्चे के जन्म के समय खजूर से उसका तहनीक करना मुस्तहब (वांछनीय) है। अगर यह संभव न हो, तो खजूर के समान और उससे मिलती-जुलती कोई मीठी चीज़ इस्तेमाल करनी चाहिए। तहनीक करने वाला खजूर को ख़ूब चबाए यहाँ तक कि वह तरल हो जाए ताकि उन्हें निगला जा सके। फिर वह नवजात शिशु का मुँह खोलकर उसमें चबाई हुई खजूर डाल दे ताकि उसका कुछ हिस्सा उसके पेट में चला जाए।” (शर्ह अन्-नववी अला मुस्लिम, 14/122-123).

2-बच्चे का एक अच्छा नाम रखना, जैसे ‘अब्दुल्लाह’ या ‘अब्दुर्रहमान’।

नाफे’ ने इब्न उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : “अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : “अल्लाह के निकट तुम्हारे सबसे प्यारे नाम अब्दुल्लाह और अब्दुर्रहमान हैं।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 2132) ने रिवायत किया है।

बच्चे का नाम पैगंबरों के नाम पर रखना मुस्तहब है :

अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा : “अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : “आज रात मेरे यहाँ एक बच्चा पैदा हुआ और मैंने उसका नाम अपने पिता इबराहीम के नाम पर रखा।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 2315) ने रिवायत किया है।

सातवें दिन बच्चे का नाम रखना मुस्तहब है, लेकिन पिछली हदीस के अनुसार, उसके जन्म के दिन उसका नाम रखने में कोई हर्ज नहीं है।

समुरह बिन जुनदुब रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : “हर बच्चा अपने अक़ीक़ा के बदले में गिरवी रखा हुआ है। उसके जन्म के सातवें दिन उसका अक़ीक़ा किया जाए, उसका नाम रखा जाए और उसका सिर मुंडा दिया जाए।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2838) ने रिवायत किया है और शैख अलबानी ने “सहीहुल-जामे’” (4541) में सहीह कहा है।

इब्नुल-क़य्यिम ने कहा :

“चूँकि नामकरण वास्तव में नामित चीज़ का परिचय कराना है। क्योंकि यदि वह पाया जाए और उसका नाम अज्ञात हो, तो उसके पास कुछ भी नहीं है जिसके द्वारा उसका परिचय कराया जा सके। इसलिए उसके जन्म के दिन उसका परिचय कराना (नाम रखना) जायज़ है। तथा उसका परिचय कराने (नामकरण) में तीन दिन तक देरी करना जायज़ है, तथा उसकी ओर से अक़ीक़ा करने के दिन तक भी जायज़ है, तथा उसके पहले और उसके बाद में भी यह जायज़ है। वास्तव में, इसके संबंध में मामले में विस्तार है। “तोहफ़तुल-मौलूद” (पृष्ठ : 111)

3-सातवें दिन बच्चे का सिर मुँडाना और बालों के वज़न के बराबर चाँदी दान करना सुन्नत है।

अली बिन अबी तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : “अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने हसन की ओर से एक बकरी का अक़ीक़ा किया और फरमाया : “ऐ फ़ातिमा, इसका सिर मुंडाओ और इसके बालों के वज़न के बराबर चाँदी दान करो।” इसलिए उन्होंने उसका वज़न किया, तो उसका वज़न एक दिरहम या दिरहम का कुछ हिस्सा था।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 1519) ने रिवायत किया है और शैख अलबानी ने “सहीह अत-तिर्मिज़ी” (हदीस संख्या : 1226) में हसन कहा है।

4-पिता के लिए अक़ीक़ा करना मुस्तहब है, जैसा कि ऊपर उद्धृत हदीस में उल्लेख किया गया है, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “हर बच्चा अपने अक़ीक़ा के बदले में गिरवी रखा हुआ है।”

लड़के की ओर से दो भेड़-बकरी और लड़की की ओर से एक भेड़-बकरी को ज़बह किया जाएगा।

आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम) ने उन्हें लड़के की ओर से दो समकक्ष भेड़-बकरियाँ और लड़की की ओर से एक भेड़-बकरी ज़बह करने का आदेश दिया।” (तिर्मिज़ी, हदीस संख्या : 1513, सहीह अत-तिर्मिज़ी, हदीस संख्या : 1221, अबू दाऊद, हदीस संख्या : 2834, नसाई, हदीस संख्या : 4212, इब्ने माजा, हदीस संख्या : 3163).

5- खतना करना :

अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : "फ़ितरत (प्राकृतिक अवस्था) पाँच चीज़ें हैं, या पाँच चीज़ें फ़ितरत का हिस्सा हैं : खतना, जघन के बाल मूंडना, बगल के बाल उखाड़ना, नाखून काटना और मूंछें तराशना।" इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5550) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 257) ने रिवायत किया है।

-शिक्षा के संबंध में बच्चे के अधिकार :

अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : “तुममें से हर एक व्यक्ति संरक्षक और ज़िम्मेदार है और तुममें से हर एक व्यक्ति से उसकी प्रजा के बारे में पूछा जाएगा। अतः वह शासक जो सभी लोगों पर नियुक्त किया गया है वह संरक्षक है और उससे उसकी प्रजा के बारे में पूछा जाएगा। आदमी अपने परिवार का संरक्षक है और उससे उनके बारे में पूछा जाएगा। एक औरत अपने पति के घर और उसके बच्चों की संरक्षक है और उससे उनके बारे में पूछा जाएगा। तथा एक गुलाम अपने मालिक की संपत्ति का संरक्षक है और उससे उसके बारे में पूछा जाएगा। सावधान रहो, तुममें से हर एक व्यक्ति संरक्षक है और तुममें से हर एक व्यक्ति से उसकी प्रजा (उसके अधीन लोगों) के बारे में पूछा जाएगा।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 2416) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1829) ने रिवायत किया है।

इसलिए माता-पिता को अपने बच्चों को धार्मिक कर्तव्यों और शरीयत के अन्य वांछनीय गुणों में मार्गदर्शन देने तथा सांसारिक मामलों को सिखाने का ध्यान रखना चाहिए, जिन पर उनकी आजीविका निर्भर करती है।

आदमी को सबसे पहले अपने बच्चों को सबसे महत्वपूर्ण और फिर महत्वपूर्ण बातें सिखानी चाहिए। अतः वह उन्हें पहले शिर्क (बहुदेववाद) और बिदअत (नवाचार) से मुक्त सही अक़ीदा पर शिक्षित करे। फिर वह उन्हें इबादत के कार्यों, विशेष रूप से नमाज़ की शिक्षा दे। फिर वह उन्हें अच्छे नैतिक मूल्यों और शिष्टाचार, तथा हर सद्गुण और अच्छाई पर प्रशिक्षित करे।

अल्लाह तआला ने फरमाया :

وَإِذْ قَالَ لُقْمَانُ لابْنِهِ وَهُوَ يَعِظُهُ يَا بُنَيَّ لَا تُشْرِكْ بِاللَّهِ إِنَّ الشِّرْكَ لَظُلْمٌ عَظِيمٌ

لقمان: 13

“तथा (याद करो) जब लुक़मान ने अपने बेटे से कहा, जबकि वह उसे समझा रहा था : ऐ मेरे बेटे! अल्लाह के साथ किसी को साझी न ठहराना। निःसंदेह शिर्क (अल्लाह के साथ साझी बनाना) महा अत्याचार है।” [सूरत लुक़मान : 13]

अब्दुल-मलिक बिन अर-रबी’ बिन सब्रा ने अपने पिता से रिवायत किया कि उन्होंने उनके दादा से रिवायत किया कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : "जब बच्चा सात साल का हो जाए तो उसे नमाज़ पढ़ना सिखाओ और अगर वह दस साल का हो जाए तो उसे (नमाज़ छोड़ने पर) मारो।" इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 407), अबू दाऊद (हदीस संख्या : 494) ने रिवायत किया है और शैख अलबानी ने “सहीह अल-जामे” (हदीस संख्या : 4025) में इसे सहीह कहा है।

अल-रुबैये’ बिन्त मुअव्विज़ से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आशूरा की सुबह अंसार की बस्तियों में यह संदेश भेजा : जिसने आज सुबह इफ़्तार की हालत में की है (यानी कुछ खाया या पिया है), तो वह दिन के बाक़ी हिस्से का रोज़ा पूरा करे (कुछ न खाए-पिए), और जिसने आज रोज़े की हालत में सुबह की है, वह अपना रोज़ा पूरा करे। वह कहती हैं : हम उसके बाद यह रोज़ा रखते थे, और हम अपने बच्चों को भी रोज़ा रखवाते थे और उनके लिए ऊन के खिलौने बनाते थे। अगर उनमें से कोई खाने के लिए रोता था, तो हम उसे वह खिलौना दे देते थे यहाँ तक कि रोज़ा खोलने का समय हो जाता।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1859) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1136) ने रिवायत किया है।

साइब बिन यज़ीद से वर्णित है कि उन्होंने कहा : "जब मैं सात साल का था, तो मुझे अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ हज्ज कराया गया।” “सहीहुल-बुखारी” (हदीस संख्या : 1759)

- शिष्टाचार और नैतिक गुणों की शिक्षा :

हर पिता और माता को अपने बेटों ओर बेटियों को प्रशंसनीय गुणों और उच्च शिष्टाचार की शिक्षा देनी चाहिए, चाहे उनका शिष्टाचार अल्लाह या उसके नबी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ हो, या उनका शिष्टाचार उनके क़ुरआन और उनकी उम्मत (विश्वासियों के वैश्विक समुदाय) के साथ तथा हर उस व्यक्ति के साथ हो जिसे वे जानते हैं और जिनका उस पर कोई अधिकार है। अतः वे अपने मिलने-जुलने वालों, अपने पड़ोसियों और अपने दोस्तों के साथ बुरा व्यवहार न करें।

इमाम नववी रहिमहुल्लाह कहते हैं :

“पिता को अपने बच्चे को अनुशासित करना चाहिए और उसे धार्मिक कर्तव्यों के बारे में वे बातें सिखाना चाहिए जिनकी उसे आवश्यकता होती है। यह शिक्षा देना पिता और सभी अभिभावकों पर बच्चे और बच्ची के बालिग़ (वयस्क) होने से पहले अनिवार्य है। इमाम शाफेई और उनके साथियों ने स्पष्टता के साथ यह बात कही है। इमाम शाफेई और उनके साथियों ने कहा : अगर पिता नहीं है तो यह शिक्षा माँओं पर भी अनिवार्य है, क्योंकि यह बच्चे के पालन-पोषण का हिस्सा है और इसमें उनकी भूमिका होती है। इस शिक्षा का पारिश्रमिक (फीस) बच्चे के अपने धन से लिया जाएगा। अगर बच्चे के पास कोई धन नहीं है तो जो उस पर खर्च करने के लिए बाध्य है, वह उसकी शिक्षा पर खर्च करेगा, क्योंकि यह उन चीज़ों में से एक है जिनकी उसे आवश्यकता है। और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक जानता है।”

“शर्हुन-नववी अला सहीह मुस्लिम” ( 8/44)

पिता को चाहिए कि वह बच्चों को हर चीज़ में शिष्टाचार (संस्कार) अपनाने पर प्रशिक्षित करे, जैसे- खाने-पीने, कपड़ा पहनने, सोने, घर से बाहर निकलने, घर में प्रवेश करने, वाहनों पर सवार होने आदि और उनके हर काम में। तथा वह उनमें पुरुषों के प्रशंसनीय गुण, जैसे त्याग के प्रति प्रेम, दूसरों को प्राथमिकता देना, दूसरों की मदद करना, वीरता और उदारता आदि पैदा करे और उन्हें कायरता, कंजूसी, अशिष्टता, सम्मानजनक चीजों से पीछे रहने (महत्वाकांक्षा की कमी) आदि जैसे दुर्गुणों से दूर रखे।

अल-मुनावी ने कहा : “जिस तरह आपके माता-पिता का आप पर अधिकार है, उसी तरह आपके बच्चे का भी आप पर अधिकार है, यानी कई अधिकार हैं, जैसे उन्हें व्यक्तिगत रूप से अनिवार्य कर्तव्य सिखाना, उन्हें इस्लामी शिष्टाचार के साथ अनुशासित करना, कोई चीज़ देने में उनके बीच न्याय करना, चाहे वह अनुदान हो, या उपहार हो, या वक़्फ़ हो या कोई और दान हो। अगर वह बिना किसी कारण के (किसी को) वरीयता देता है, तो यह कुछ विद्वानों के अनुसार अमान्य है और कुछ विद्वानों ने इसे मकरूह (नापसंद) कहा है।”

“फ़ैज़ुल-क़दीर” (2/574)

अतः उसे अपने बेटों और बेटियों को हर उस चीज़ से बचाना चाहिए जो उन्हें आग के क़रीब ले जाए। अल्लाह तआला ने फरमाया :

يا أيها الذين آمنوا قوا أنفسكم وأهليكم نارا وقودها الناس والحجارة عليها ملائكة غلاظ شداد لا يعصون الله ما أمرهم ويفعلون ما يؤمرون

التحريم:6

“ऐ ईमान वालों! अपने आप को और अपने घरवालों को उस आग (जहन्नम) से बचाओ जिसका ईंधन इनसान और पत्थर हैं, जिस पर सख्त और कठोर फ़रिश्ते नियुक्त हैं, जो अल्लाह की ओर से मिले आदेशों की अवहेलना नहीं करते, बल्कि वही करते हैं जो उन्हें आदेश दिया जाता है।” [सूरतुत-तहरीम : 6]

अल्लामा क़ुरतुबी ने कहा :

“हसन ने इस आयत में इसे यह कहकर व्यक्त किया : “वह उन्हें आदेश देगा और उन्हें मना करेगा।” कुछ विद्वानों ने कहा : जब अल्लाह ने फरमाया : “अपने आपको बचाओ।” तो इसमें बच्चे भी शामिल हो गए। क्योंकि बच्चा उसका हिस्सा है, जैसा कि वे अल्लाह तआला के इस कथन में शामिल हैं :

  ولا على أنفسكم أن تأكلوا من بيوتكم .

“और न स्वयं तुमपर कोई दोष है कि तुम अपने घरों से खाओ।” [सूरतुन्-नूर : 61] अतः यहाँ उनका उल्लेख अलग से नहीं किया गया जैसा कि बाकी सभी रिश्तेदारों का किया गया है। इसलिए वह उसे सिखाएगा कि क्या हलाल (वैध) है और क्या हराम (अवैध) है, तथा वह उसे पापों और अपराधों से दूर रखेगा और इसके अलावा अन्य नियमों की शिक्षा देगा।”

“तफ़सीर अल-कुरतुबी” (18/194-195)

खर्च :

यह पिता का अपने बच्चों के प्रति एक कर्तव्य है। अतः उसके लिए इसमें लापरवाही बरतना या इसकी उपेक्षा करना जायज़ नहीं है, बल्कि उसके लिए इस कर्तव्य को सबसे पूर्ण रूप से पूरा करना अनिवार्य है :

अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : “किसी व्यक्ति के पापी होने के लिए इतना पर्याप्त है कि वह उन लोगों की उपेक्षा करे जिन पर खर्च करना उसकी ज़िम्मेदारी है।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1692) ने रिवायत किया है और शैख अलबानी ने “सहीह अल-जामे” ( 4481) में इसे हसन कहा है।

इसी प्रकार, सबसे बड़े और सबसे महत्वपूर्ण अधिकारों में से एक विशेष रूप से लड़कियों की अच्छी परवरिश और देखभाल करना है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस नेक कार्य के लिए प्रोत्साहित किया है।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नी आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि उन्होंने कहा : एक महिला दो बेटियों के साथ मेरे पास आई और मुझसे कुछ (खाने के लिए) मांगने लगी, लेकिन उसे मेरे पास एक खजूर के अलावा कुछ नहीं मिला। मैंने उसे वह खजूर दे दी और उसने उसे अपनी दोनों बेटियों में बाँट दिया, फिर वह उठकर चली गई। उसके बाद नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अंदर आए तो मैंने जो कुछ हुआ था आपसे उसका उल्लेख किया। आपने फरमाया : “जो कोई भी इन लड़कियों में से किसी का प्रभारी बना, फिर उनके साथ अच्छा व्यवहार किया, तो वे उसके लिए आग से सुरक्षा कवच होंगी।" इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5649) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2629) ने रिवायत किया है।

इसी तरह एक और महत्वपूर्ण बात : जो बच्चों के अधिकारों में से एक है जिसका ध्यान रखा जाना चाहिए, वह बच्चों के बीच न्याय करने का अधिकार है। इस अधिकार का उल्लेख नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहीह (प्रामाणिक) हदीस में किया है : "अल्लाह से डरो और अपने बच्चों के बीच न्याय करो।" इसे बुखारी (हदीस संख्या : 2447) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1623) ने रिवायत किया है। अतः महिलाओं को पुरुषों पर वरीयता देना जायज़ नहीं है, ठीक उसी तरह जैसे पुरुषों को महिलाओं पर वरीयता देना जायज़ नहीं है। अगर पिता इस गलती में पड़ जाता है और अपने कुछ बच्चों को दूसरों पर वरीयता देता है और उनके बीच न्याय नहीं करता है, तो इसके कारण कई बुराइयाँ उत्पन्न होंगी :

जिनमें से एक वह है जिसका नुकसान स्वयं पिता को होता है। क्योंकि उसने जिन बच्चों को वंचित रखा है, वे उसके प्रति घृणा और आक्रोश के साथ बड़े होते हैं। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुस्लिम द्वारा वर्णित हदीस (संख्या : 1623) में इस अर्थ की ओर संकेत किया है, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नोमान के पिता से कहा : “क्या आप चाहते हैं कि वे आपके साथ समान रूप से सद्व्यवहार करेंॽ” उन्होंने कहा : "हाँ।" जिसका मतलब यह है कि : यदि आप चाहते हैं कि वे सभी आपके साथ समान रूप से सद्व्यवहार करें, तो आप उपहार देने में उनके बीच न्याय करें।”

इसमें शामिल बुराइयों में से : भाइयों का आपस में एक-दूसरे के प्रति नफरत और उनके बीच शत्रुता और घृणा की आग बोना भी है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर