गुरुवार 20 जुमादा-1 1446 - 21 नवंबर 2024
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उसने अपने भाइयों की हत्या कर दी क्योंकि वे अपने बाप से विरासत में मिली भूमि में नशीले पदार्थ की खेती करना चाहते थे।

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प्रकाशन की तिथि : 15-12-2023

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प्रश्न

 

प्रश्न: हमारे मोहल्ले में तीन युवतियाँ रहती थीं जिनके माता पिता का निधन हो चुका था। मोहल्ले में सभी लोग उनसे प्यार करते थे क्योंकि वे अनाथ थीं और वे अच्छे व्यवहार वाली थीं। पिछले सप्ताह उनमें से दो ने दीहात (बादिया) में अपने भाइयों की ज़ियारत के लिए जाने का फैसला किया जहाँ उनके बाप की भूमि थी। तक़्दीर (भाग्य) की चाहत यह हुई कि उन दोनों की ज़ियारत एक ऐसे समय पर हुई जब दो भाइयों के बीच भूमि के मुद्दे पर मतभेद पैदा हो गया था। एक भाई उस भूमि पर चरस की खेती करना चाहता था। जबकि दूसरा भाई जो सबसे बड़ा था वह इससे इनकार करता था। यहाँ पर पहल भाई भूमि में अपना हक़ मांगने लगा। गवाहों के बयान के अनुसार दोनों युवतियों ने उसका पक्ष किया। जिसके कारण बड़े भाई का गुस्सा अपनी अति को पहुँच गया। वह उठा और - अल्लाह की पनाह - अपने तीनों भाई-बहनों की हत्या कर दी।

यहाँ पर मेरा प्रश्न यह है कि :
यहाँ पर हत्या करने वाले का और जिसकी हत्या की गई है क्या हुक्म है ?
जबकि ज्ञात रहे कि हत्या किए गए लोग अपनी भूमि में निषिद्ध चीज़ की खेती करना चाहते थे जबकि वे नमाज़ - रोज़ा करने वाले मुसलमान थे। क्या यहाँ पर हत्या किया गया व्यक्ति शहीद है ?
यदि ऐसी बात है, तो क्या वह क़ब्र की अज़ाब से बच जायेगा ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

प्रश्न संख्या (129214) के उत्तर में यह बीत चुका है कि हर वह मुसलमान जिस पर अत्याचार करते हुए क़त्ल कर दिया गया है उसके लिए आखिरत में शहीद होने का सवाब है। लेकिन इस हुक्म (नियम) के इस स्थिति पर लागू होने का मामला ग़ौरतलब है। क्योंकि अत्याचार से क़त्ल किया गया वह व्यक्ति जिसके लिए शहीद होने का अज्र व सवाब है : यह वह व्यक्ति है जो विशुद्ध रूप से अत्याचार से पीड़ित (मज़लूम) हो। उस पर अत्याचार करते हुए क़त्ल किया गया हो। जैसे - चोरों, बागियों, डाकुओं के द्वारा क़त्ल किया गया व्यक्ति, या जो अपने नफ्स, या अपने धन, या अपनी जान, या अपने धर्म, या अपने परिवार की रक्षा करते हुए क़त्ल किया गया व्यक्ति, और इसी तरह के लोग जैसाकि ऊपर संकेत किए गए प्रश्न के उत्तर में उल्लेख किया गया है।

जहाँ तक इन तीनों क़त्ल किए गए लोगों की बात है - जैसाकि प्रश्न करने वाले ने वर्णन किया है - तो इनके अंदर दो चीज़ें पाई जाती हैं :

पहली: यह कि उन पर अत्याचार करते हुए क़त्ल किया गया है, उन्हें ऐसे व्यक्ति ने क़त्ल किया है जिसके लिए उन्हें क़त्ल करना जायज़ नहीं है, तथा उसने उनकी तरफ से किसी ऐसे काम की जांच नहीं की थी जिस पर वे इस बात के हक़दार हो गए हों कि कोई उन्हें क़त्ल करे, चाहे वह इमाम (शासक) हो कोई अन्य हो; क्योंकि मात्र अवज्ञा की इच्छा पर कोई दण्ड या ताज़ीर निष्कर्षित नहीं होता है। बल्कि यहाँ पर ज़्यादा से ज़्यादा यह है कि मुसलमान शासक उसे इससे रोक दे, और इस क़त्ल करनेवाले व्यक्ति के लिए ज़्यादा से ज़्यादा यह था कि वह उन्हें उनका हक़ दे देता और उन्हें उस पर सक्षम कर देता; फिर जब उसे पता चलता कि वे उसमें निषिद्ध चीज़ चरस की खेती करना चाहते हैं तो यथा संभव उन्हें इससे रोकने की कोशिश करता, उनके ऊपर शासक का सहयोग लेता ताकि वे उसे इस काम से रोक दें।

दूसरी बात यह है कि : उन्हों ने हराम काम की इच्छा की और अपनी भूमि को उसमें हराम काम करने लिए लेने का प्रयास किए, और इस तरह के लोगों को उनकी भूमि या उनके धन पर सक्षम नहीं बनाया जायेगा, क्योंकि वे नासमझ हैं, बल्कि उन्हें उसमें निषिद्ध व्यवहार करने से रोक दिया जायेगा।

इसका निष्कर्ष यह है कि :

दुनिया के अंदर इस मुद्दे में निर्णय लेने का मामला : शरई न्यायालय के हाथ में है।

रही बात आखिरत (परलोक) की : तो उनका मामला अल्लाह के हवाले है, और आशा है कि अल्लाह तआला उनकी बुरी नीयत (इच्छा) का, उस हत्या को परायश्चित बना दे जिसके वे योग्य नहीं थे, और न ही उन्हों ने कोई ऐसा काम किया था जो उसका कारण बन जाए।

धर्म संगत यह है कि : उनके लिए दुआ की जाए और उनके लिए भलाई और क्षमा की उम्मीद लगाई जाए।

बुखारी ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''जिसके पास अपने भाई के प्रति उसकी आबरू या किसी अन्य चीज़ से संबंधित कोई अत्याचार हो, तो वह आज ही उससे निपटारा और समाधान कर ले, इससे पहले कि कोई दिनार और दिरहम (पैसे-कोड़ी) का मामला समाप्त हो जाए। यादि उसके पास कोई नेक कार्य है तो उसके अत्याचार की मात्रा में उससे ले लिया जायेगा, और यदि उसके पास नेकियाँ नहीं हैं तो उसके विपक्षी की बुराईयाँ लेकर उसके ऊपर लाद दी जायेंगी।''

चेतावनी :

यह कहना जायज़ नहीं है कि : ''तक़दीर (भाग्य) ने चाहा'' या ''तक़दीर की चाहत हुई'', क्योंकि तक़दीर (भाग्यों) की कोई मशीयत या चाहत नहीं होती है, बल्कि मशीयत व चाहत तो मात्र अल्लाह सर्वशक्तिमान की है, और सभी मामलों का व्यवस्थापक व संचालक अल्लाह ही है। अतः या तो यह कहा जाए कि : अल्लाह ने इस तरह मुक़द्दरकिया। या यह कहा जाए कि : अल्लाह की मशीयत ने इस तरह चाहा।

और अल्लाह तआला की सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर