रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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रोज़ों की क़ज़ा को विलंब करने का कफ़्फ़ारा रिश्तेदारों को भुगतान करने का हुक्म

प्रश्न

मेरी एक विधवा खाला (मौसी) हैं जिनकी कोई आय स्रोत नहीं है। वह अकेली रहती हैं और अपने दो भाइयों से कुछ नक़दी सहायत प्राप्त करती हैं। इसी प्रकार मेरे एक मामू हैं जो एक कर्मचारी हैं वह जो वेतन पाते हैं वह उनके लिए प्र्याप्त नहीं होता है। उनके चार बेटे हैं, जिन में से दो विश्वविद्यालय में पढ़ रहे हैं। मेरा प्रश्न यह है कि : क्या (18 दिन के) रोज़ों की क़ज़ा को विलंब करने का कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) उन्हें देना जायज़ है? तथा उसका मूल्य और उसे निकाल कर उन्हें भुगतान करने का तरीक़ा क्या है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम:

जिसने रमज़ान के रोज़ों की क़ज़ा को विलंब कर दिया, उसका इसे विलंब करना दो हालतों से खाली नहीं होता है :

पहली हालत : उसका उन रोज़ों की क़ज़ा को विलंब करना किसी उज़्र की वजह से है, तो ऐसी स्थिति में उसके लिए केवल रोज़ों की क़ज़ा अनिवार्य है।

दूसरी हालत : वह रोज़ों की क़ज़ा को बिनी किसी उज़्र के विलंब कर दे, तो ऐसी स्थिति में उसके लिए रोज़ों की क़ज़ा अनिवार्य है और साथ ही साथ उसके ऊपर कफ़्फ़ारा भी अनिवार्य है, यह विद्वानों की बहुमत का मत है।

तथा कुछ विद्वान इस बात की ओर गए हैं - और वह इस मसअले में दूसरा कथन (मत) है – कि : उस पर अनिवार्य रोज़ों की क़ज़ा है और साथ ही बिना किसी उज़्र के रोज़ों की क़ज़ा में विलंब करने के लिए तौबा करना है। रही बात कफ़्फारा की तो वह अनिवार्य नहीं है। 

दूसरा :

रोज़ों की क़ज़ा में विलंब का कफ़्फ़ारा - उसके कहनेवालों के निकट - नक़दी राशि नहीं है, बल्कि खाद्यान्न है जिसे आदमी निकालेगा, और उसकी मात्रा : हर दिन के बदले में एक गरीब व्यक्ति को खाना खिलाना है।

शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह कहते हैं कि : ‘‘इतना अधिक विलंब करने पर आप अल्लाह तआला से तौबा करें, आप के ऊपर अनिवार्य यह था कि उस रमज़ान के आने से पहले जो उस रमज़ान के बाद था जिसमें आप ने रोज़ो तोड़ा था, उन दिनों की क़ज़ा कर लेते जिनके रोज़े आप ने तोड़ दिए थे। तथा आप तौबा (पश्चाताप) करने के साथ साथ हर दिन के बदले में शहर के भोजन जैसे - खजूर, या चावल या इनके अलावा खाद्यान्न से आधा साअ एक मिसकीन को खिलाएं, उसकी मात्रा लगभग डेढ़ किलो है, पूरी राशि कुछ फक़ीरों को, चाहे वह एक ही फक़ीर सही, भुगतान कर सकते हैं।’’ "मजमूओ फतावा इब्ने बाज़’’ (15/341) से अन्त हुआ।

इसलिए आप अपनी गरीब मौसी या मामू को, जबकि वे गरीब और जरूरतमंद हैं, कफ़्फारा की राशि दे सकते हैं, बल्कि ऐसा करना उसे किसी ऐसे व्यक्ति को देने से बेहतर है जो आपके रिश्तेदारों में से नहीं हैं। और सभी दिनों के बदले में उसकी मात्रा 27 किलो चावल है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर