गुरुवार 20 जुमादा-1 1446 - 21 नवंबर 2024
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मुसलमान की दुआ उसकी वांछित मुराद के साथ या उसके अलावा के साथ स्वीकार की जाती है

प्रश्न

क्या किसी व्यक्ति की अपनी धार्मिकता की बेहतरी के लिए दुआ इस दुनिया में निश्चित रूप से परिपूर्ण होती है, अगर वह अपनी दुआ में सच्चा है, जैसे कि वह अल्लाह से यक़ीन (विश्वास) का प्रश्न करेॽ तथा क्या उसकी अपनी आख़िरत की भलाई के लिए दुआ निश्चित रूप से स्वीकार की जाएगी, यदि वह अपनी दुआ में सच्चा है, जैसे कि वह अल्लाह से जन्नतुल-फ़िरदौस का प्रश्न करेॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

मुसलमान का काम यह है कि वह अल्लाह सर्वशक्तिमान की उपासना (इबादत) करते हुए इस हाल में दुआ करे कि उसे दुआ की स्वीकृति का पूरा यक़ीन हो, उसके साथ ही अल्लाह के प्रति अच्छा गुमान रखे और दुआ की स्वीकृति के कारणों को अपनाए। फिर वह अल्लाह सर्वशक्तिमान पर भरोसा करे और अपनी दुआ के उत्तर का मामला अल्लाह की दया व करुणा और उसकी हिकमत के हवाले कर दे। क्योंकि वह महिमावान् इस बात को सबसे बेहतर जानता है कि इस दुनिया में उसके बंदे के लिए क्या उचित है और आख़िरत में कौन-सी चीज़ उसे मोक्ष प्रदान करने वाली है। महत्वपूर्ण बात यह है कि उसे निराश नहीं होना चाहिए, भले ही उसके धैर्य और प्रतीक्षा की अवधि लंबी हो जाए। तथा उसे अधीर होकर जल्दी मचाते हुए यह नहीं कहना चाहिए : मैंने दुआ की, लेकिन मेरी दुआ क़बूल नहीं हुई। क्योंकि दुआ करना अपने आप में अल्लाह की एक विशेष इबादत है, जो स्वयं (स्थायी रूप से) अपेक्षित है, केवल स्वीकृति के लिए अपेक्षित नहीं है।

अबू सईद अल-खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से साबित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जो भी मुसलमान कोई ऐसी दुआ करता है, जिसमें कोई पाप या रिश्ते-नाते तोड़ने की बात नहीं होती है, तो अल्लाह उसे उस दुआ के कारण तीन चीजों में से एक चीज़ अवश्य प्रदान करता है : या तो वह उसकी माँग को दुनिया ही में पूरी कर देता है, या वह उसे उसके लिए आख़िरत में संग्रहित कर देता है, या वह उससे उसी के समान कोई बुराई दूर कर देता है।” सहाबा ने यह सुनकर कहा : तब तो हम बहुत अधिक दुआ करेंगे। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : अल्लाह इससे भी बहुत अधिक देने वाला है।”

इसे अहमद ने “अल-मुसनद” (17/213) में रिवायत किया है और अनुसंधान कर्ताओं ने मुअस्ससतुर्-रिसालह के संस्करण में उसे हसन (हदीस) के रूप में वर्गीकृत किया है, तथा अल-मुन्ज़िरी ने “अत-तर्ग़ीब वत-तर्हीब” में इसकी इस्नाद को जैयिद (अच्छा) के रूप में वर्गीकृत किया है और अलबानी ने “सहीह अदबुल-मुफ़रद” (हदीस संख्या : 547) में इसे सहीह के रूप में वर्गीकृत किया है।

इमाम नववी ने अपनी पुस्तक “अल-अज़कार” (पृष्ठ 401) में इस हदीस को इस अध्याय के अंतर्गत उल्लेख किया है :

“इस बात के प्रमाण का अध्याय कि मुसलमान की दुआ उसकी वांछित मुराद या उसके अलावा के साथ क़बूल की जाती है।”

अतः विशिष्ट व निर्धारित माँग - चाहे वह धर्म की बेहतरी से संबंधित हो, या आख़िरत की भलाई से, या दुनिया की भलाई से हो – कभी-कभी ठीक वही चीज़ पूरी नहीं होती है। बल्कि अल्लाह उसके बदले में उसे इस दुनिया में या आख़िरत में कोई अन्य चीज़ प्रदान करता है, या वह उससे इस दुनिया में उसी के समान कोई बुराई दूर कर देता है।

इब्ने अब्दुल-बर्र रहिमहुल्लाह ऊपर उद्धृत हदीस पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं :

“इसमें इस बात का प्रमाण है कि इन तीन रूपों में से किसी एक रूप में दुआ अवश्य क़बूल होती है। इसके आधार पर, अल्लाह सर्वशक्तिमान् के फरमान :

فيكشف ما تدعون إليه إن شاء      [سورة الأنعام : 41]

“फिर जिसके लिए तुम उसे पुकारते हो, वह चाहता है तो उसे दूर कर देता है।” [सूरतुल-अनआम : 41]

की व्याख्या - और अल्लाह ही सबसे बेहतर जानता है – यह है कि वह चाहता है और कोई भी उसे मजबूर करने वाला नहीं है। और अल्लाह का कथन :  

 أجيب دعوة الداع إذا دعان          [سورة البقرة : 186]

“जब पुकारने वाला मुझे पुकारे, तो मैं उसकी दुआ क़बूल करता हूँ।” [सूरतुल-बकरा : 186] अपने स्पष्ट और सामान्य अर्थ में है, अबू सईद अल-खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु की ऊपर उद्धृत हदीस की व्याख्या के अनुसार। और अल्लाह सबसे बेहतर जानता है कि उसका अपने इस कथन से क्या अभिप्राय है और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इससे क्या अभिप्राय है।  

दुआ सब की सब भलाई व अच्छाई, इबादत और नेक काम है और अल्लाह अच्छा करने वाले का प्रतिफल नष्ट नहीं करता है। तथा अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि वह कहा करते थे : मैं इस बात से नहीं डरता कि दुआ की स्वीकृति से वंचित कर दिया जाऊँगा, बल्कि मैं इस बात से डरता हूँ कि दुआ करने से वंचित न कर दिया जाऊँ।

यह मेरे विचार में इस आधार पर है कि उन्होंने दुआ के क़बूल किए जाने की आयत को उसके सामान्य अर्थ में और वादे के रूप में लिया है, और अल्लाह अपने वादे को नहीं तोड़ता।”

“अत्-तम्हीद लिमा फिल-मुवत्ता मिनल-मआनी वल-असानीद” (10 / 297-299) से उद्धरण समाप्त हुआ।

हाफ़िज़ इब्ने ह़जर रहिमहुल्लाह कहते हैं : “प्रत्येक दुआ करने वाले की दुआ क़बूल की जाती है, लेकिन क़बूल किए जाने का तरीक़ा भिन्न-भिन्न होता है : कभी-कभी ठीक वही हो जाता है जिसके लिए उसने दुआ की थी, और कभी-कभी उसके बदले में कुछ और मिलता है। इसके बारे में एक सहीह हदीस वर्णित है, जिसे तिरमिज़ी और हाकिम ने उबादह बिन सामित रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस से मर्फूअन (यानी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन) उल्लेख किया है : “पृथ्वी पर कोई मुसलमान नहीं है, जो कोई दुआ करता है, परंतु अल्लाह उसे वह (वांछित माँग) प्रदान कर देता है, या उससे उसी के बराबर बुराई दूर कर देता है।” और मुसनद अहमद में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस से वर्णित है : “या तो वह उसे उसकी मांग दुनिया ही में प्रदान कर देता है, और या तो उसे उसके लिए संग्रहित कर देता है।”

“फत्ह़ुल-बारी” (11/95) से उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा शैख़ इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह कहते हैं :

“आग्रह के साथ दुआ करना, अल्लाह के साथ अच्छा गुमान रखना और निराश न होना, दुआ के क़बूल होने के सबसे बड़े कारणों में से हैं। अतः आदमी को चाहिए कि आग्रहपूर्वक दुआ करे और अल्लाह सर्वशक्तिमान के प्रति अच्छा गुमान रखे। और इस बात को ज्ञान में रखे कि वह हिकमत वाला और सब कुछ जानने वाला है, वह कभी किसी हिकमत के कारण दुआ जल्द ही स्वीकार कर लेता है, और कभी किसी कारण उसे विलंबित कर देता है और कभी वह प्रश्न करने वाले को उससे बेहतर प्रदान करता है, जो उसने माँगा था।”

“मजमूओ फ़तावा इब्ने बाज़” (9/353) से उद्धरण समाप्त हुआ।

शैख़ अल-बर्राक ह़फ़िज़हुल्लाह कहते हैं :

“दुआ को क़बूल करना, ज़रूरत को पूरा करने से अधिक सामान्य है। क्योंकि वांछित चीज़ के प्राप्त न होने का मतलब यह नहीं है कि अल्लाह ने आपकी दुआ को क़बूल नहीं किया। इसलिए आप यह कहने लगें कि : अल्लाह ने मेरी दुआ क़बूल नहीं की! आपको कैसे पता चला (कि आपकी दुआ क़बूल नहीं हुई)ॽ शायद अल्लाह ने आपको इन तीनों में से कोई एक चीज़ प्रदान कर दी है। इसीलिए मैंने कहा : उनका कहना : (वह ज़रूरतों को पूरा करता है) उनके यह कहने से अधिक विशिष्ट है कि : (अल्लाह सर्वशक्तिमान दुआओं का जवाब देता - क़बूल करता - है)।” "शर्ह अल-अक़ीदह अत-तहावियह" (पृष्ठ 348) से उद्धरण समाप्त हुआ।

इसका मतलब यह है कि आपको दुआ करते हुए उसके क़बूल होने का यक़ीन होना चाहिए, चाहे आपको उसका परिणाम अपनी इस दुनिया में दिखाई दे, या वह आपकी आख़िरत के लिए विलंबित कर दी जाए। क्योंकि अल्लाह सर्वशक्तिमान की दानशीलता हर उस व्यक्ति के लिए सत्यापित है, जिसने दुआ के क़बूल होने के कारणों को पूरा किया है।

हमारी वेबसाइट पर, ऐसे कई उत्तर हैं जिनसे इस विषय के बारे में लाभ उठाया जा सकता है। प्रश्न संख्या : (212629) और (135085) देखें।

और अल्लाह तआला ही सबसे बेहतर जानता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर