हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
लाभ के बदले बैंक में पैसा रखना सूद (व्याज) है, और यह बड़े गुनाहों में से है, अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَذَرُوا مَا بَقِيَ مِنَ الرِّبا إِنْ كُنْتُمْ مُؤْمِنِينَ فَإِنْ لَمْ تَفْعَلُوا فَأْذَنُوا بِحَرْبٍ مِنَ اللَّهِ وَرَسُولِهِ وَإِنْ تُبْتُمْ فَلَكُمْ رُؤُوسُ أَمْوَالِكُمْ لا تَظْلِمُونَ وَلا تُظْلَمُونَ [البقرة : 278-279)
“ऐ ईमान वालो ! अल्लाह तआला से डरो और जो व्याज बाक़ी रह गया है वह छोड़ दो यदि तुम सच्चे ईमान वाले हो, और अगर ऐसा नहीं करते तो अल्लाह तआला से और उसके रसूल से लड़ने के लिए तैयार हो जाओ, हाँ यदि तौबा कर लो तो तुम्हारा मूल धन तुम्हारा ही है, न तुम अत्याचार करो और न तुम पर अत्याचार किया जायेगा।” (सूरतुल बक़रा : 278 - 279)
अगर मुसलमान बैंक में पैसा रखने पर मजबूर हो जाए, क्योंकि बैंक में रखने के अलावा वह अपने धन को सुरक्षित करने का कोई अन्य उपाय नहीं पाता है, तो इन् शा अल्लाह दो शर्तों के साथ इसमें कोई पाप नहीं है :
1- वह इसके बदले कोई लाभ न ले।
2- बैंक का लेन देन सौ प्रतिशत सूदखोरी पर आधारित न हो, बल्कि उसकी कुछ वैध गतिविधियाँ भी हों जिनमें वह अपने धन निवेश करता हो।
प्रश्न संख्या (49677 ) देखें।
तथा बैंक, धन के मालिकों को जो व्याज के लाभ भुगतान करते हैं उनसे फायदा उठाना वैध (हलाल) नहीं है, बल्कि उनके ऊपर अनिवार्य है कि उन्हें विभिन्न धर्माथ कार्यों में खर्च कर उनसे छुटकारा हासिल करें।
इफ्ता की स्थायी समिति के विद्वानों का कहना है :
“बैंक जमाकर्ताओं को, उन राशियों पर जिन्हें उन्हों ने बैंक में जमा किया है, जो लाभ भुगतान करता है, उसे सूद समझा जायेगा, उसके लिए उन लाभों से फायदा उठाना जायज़ नहीं है, बल्कि उसे चाहिए कि वह सूदी कारोबार वाले बैंकों में पैसा जमा करने से अल्लाह के समक्ष तौबा करे, तथा उसने बैंक में जो धन जमा किया है उसे और उसके लाभ को निकाल ले, चुनाँचे मूल राशि को अपने पास सुरक्षित रखे और जो उसके ऊपर राशि (अर्थात व्याज) है उसे नेकी के कार्यों जैसे गरीबों, मिस्कीनों और (सार्वजनिक) सुविधाओं की मरम्मत आदि में खर्च कर दे।
“फतावा इस्लामिया” (2/404).
तथा शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
“रही बात उस लाभ (सूद) की जो बैंक आपको देता है : तो आप उसे न तो बैंक को वापस लौटायें और न ही उसे खायें, बल्कि उसे नेकी के कामों में खर्च कर दें, जैसे कि गरीबों पर दान करना, शौचालयों की मरम्मत कराना, तथा अपने क़र्ज़ों का भुगतान करने में असक्षम लोगों की सहायता करना, . . .
“फतावा इस्लामिया” (2/407).