रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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वह इंटरनेट पर एक ऐसी वस्तु बेचता है जो उसके पास नहीं है, और वितरक से उसे सीधे ग्राहक को भेजने के लिए कहता है।

प्रश्न

जब कोई ग्राहक किसी ऑनलाइन स्टोर से कोई वस्तु खरीदता है, तो वह एक अन्य पार्टी (स्वचालित भुगतान सेवा प्रदाता) को दो विकल्पों के साथ कीमत का भुगतान करता है, या तो बैंक कार्ड या बैंक खाते का उपयोग करके। स्वचालित भुगतान सेवा प्रदाता धन प्राप्त करता है और प्रक्रिया के लिए लगभग 2% मूल्य का शुल्क लेता है, फिर सिस्टम (मेरी वेबसाइट) स्वचालित रूप से वितरक को ऑर्डर भेजता है, ताकि वह इसे तैयार करे।

वितरक के साथ व्यवहार करने के लिए दो तरीक़े हैं : 1- पैसा वितरक के बैंक खाते में अग्रिम रूप से जमा कर दिया जाए, और जब कोई खरीदारी की जाए, तो वितरक वस्तु को तैयार करे और फिर उसे सीधे खरीदार को भेज दे।

2- ऑर्डर पूरा करने के बाद वितरक सामान को खरीदार को भेज दे, और फिर मुझे बाद में चालान के आधार पर भुगतान करने की अनुमति दे।

शिपिंग में लगभग 1-3 दिन लगते हैं, फिर मैं खरीदार द्वारा भुगतान किया गया पैसा प्राप्त करने के लिए स्वचालित भुगतान सेवा प्रदाता से निकासी करता हूँ।

खरीदार के लिए सामान की क़ीमत का भुगतान करने का एक और तरीक़ा है, और वह यह कि उसे बैंक कार्ड या बैंक खाते का उपयोग करने के बजाय स्वचालित भुगतान सेवा प्रदाता के माध्यम से चालान बनाने का विकल्प दिया जाए। चालान खरीदार और स्वचालित भुगतान सेवा प्रदाता के बीच एक अनुबंध के रूप में काम करता है ताकि खरीदार 14 दिनों के भीतर या क़िस्तों में भुगतान कर सके। लेकिन क़िस्तों में, खरीदार और स्वचालित भुगतान सेवा प्रदाता के बीच सूद होता है, जो उनके बीच अनुबंध में निर्धारित शर्तों के आधार पर होता है। सभी उपलब्ध विकल्पों में, मेरी वेबसाइट के माध्यम से खरीदारी पूरी करने के बाद सामान वितरक से सीधे खरीदार को भेजा जाता है। क्या इस प्रकार का व्यापार जायज़ हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

प्रश्न से हमने जो समझा उसके अनुसार इस लेन-देन में भाग लेने वाले चार पक्ष शामिल हैं :

1-क्रेता।

2-आपकी वेबसाइट।

3- वितरक।

4- स्वचालित भुगतान सेवा प्रदाता।

इसलिए हम कहते हैं :

पहला :

क्रेता (खरीदार) के लिए प्रत्येक लेनदेन के 2% (शुल्क) के बदले में स्वचालित भुगतान प्रदाता के माध्यम से कीमत का भुगतान करना जायज़ है। और यह शुल्क के बदले एक एजेंट (वकील) के रूप में कार्य करना है और इसमें कुछ भी हर्ज नहीं है।

दूसरा :

आपके लिए सामान को उसका मालिक होने, उस पर क़ब्ज़ा करने और उसे वितरक के स्थान (दुकान) से बाहर निकालने से पहले बेचना जायज़ नहीं है; क्योंकि नसाई (हदीस संख्या : 4613), अबू दाऊद (हदीस संख्या : 3503) और तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 1232) ने हकीम बिन हिज़ाम से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : मैं अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और कहा : एक आदमी मेरे पास आता है और मुझसे वह चीज़ बेचने के लिए कहता है जो मेरे पास नहीं है। क्या मैं उस चीज़ को उससे बेच दूँ और फिर वह चीज़ उसे बाज़ार से खरीद कर दे दूँ? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जो तुम्हारे पास नहीं है, उसे मत बेचो।” अलबानी ने इस हदीस को सहीह नसाई में सहीह कहा है।

तथा दारक़ुत्नी और अबू दाऊद (हदीस संख्या : 3499) ने ज़ैद बिन साबित से रिवायत किया है कि ''नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सामान को उसी स्थान पर बेचने से मना किया है, जहाँ उसे खरीदा गया है जब तक कि व्यापारी उसे अपने ठिकानों पर न ले आएँ।” इस हदीस को अलबानी ने सहीह अबू दाऊद में हसन कहा है।

इस निषेध से निकलने का उपाय यह है :

1- आप ग्राहक से केवल यह वादा करने पर बस करें कि आप सामान को खरीदेंगे और उसे अपने स्वामित्व में लेंगे, फिर उसे उससे बेचें गे। फिर जब आप उसे खरीद लें और उस पर क़ब्ज़ा कर लें, तो आप उसके साथ बिक्री करें और उसे सामान भेज दें।

2- आपके लिए जायज़ है कि वितरक की ओर से एजेंट बन जाएँ और कमीशन के बदले में उसके लिए सामान बेचें। या क्रेता की ओर से एजेंट बन जाएँ, आप उसके लिए सामान को उसी क़ीमत पर खरीदें जिस क़ीमत पर वह बेचा जाता है, और आप उसके साथ उसके बदले में अपनी मज़दूरी पर सहमत हो जाएँ।

3. एक तीसरा रूप भी अनुमेय है और वह 'सलम' है। और वह यह है कि आप ग्राहक को कोई सामान बेचें जो अपने विशेष गुणों के साथ इस तरह परिभाषित हो कि विवाद का कारण न बने, जिसे आप उसे एक निर्धारित समय पर सौंपने के लिए प्रतिबद्ध हों, बशर्ते कि आप उसके साथ अनुबंध करते समय धन प्राप्त कर लें, भले ही वह आपके खाते में जमा करके हो। क्योंकि यह क़ब्ज़ा हासिल करने के हुक्म में माना जाता है। उसका इलेक्ट्रॉनिक मध्यस्थ (स्वचालित भुगतान प्रदाता) के पास रहना सही नहीं है। इन तीनों रूपों का वर्णन प्रश्न संख्या (254652) के उत्तर में किया जा चुका है।

इस प्रकार आप जानते हैं कि जो निषिद्ध है वह यह है कि ग्राहक को बेचने से पहले आप उस सामान के मालिक नहीं हैं और उसे अपने कब्ज़े में नहीं लेते हैं।

इस निषेध से छुटकारा पाना ऊपर बताए गए तरीकों में से किसी एक के द्वारा होगा, लेकिन पहला तरीका आपके लिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि आप बेचने से पहले वितरक से सामान को अपने कब्ज़े में नहीं लेते हैं।

शुल्क के साथ एजेंट के रूप में कार्य करना आपके लिए उपयुक्त है यदि वितरक इससे सहमत है और कमीशन के बदले में आपको अपना एजेंट मानता है जो वह आपको भुगतान करता है। इस स्थिति में, आपके लिए उसके खाते में पहले से पैसा जमा करना सही (मान्य) नहीं है, क्योंकि आप उसके एजेंट हैं, आप उससे खरीदते नहीं हैं।

लेकिन दूसरा तरीका जिसका आपने उल्लेख किया है, वह सही है। वह यह कि आप खरीदार के पैसे को मध्यस्थ से स्वचालित भुगतान में वापस लेते हैं, और एक एजेंट के रूप में वितरक को भेजते हैं; या तो आप विक्रेता की ओर से उसके बेचने और उसके वस्तु की कीमत वसूलने में, या खरीदार की ओर से उसके लिए खरीदने में या उसकी ओर से भुगतान करने में। लेकिन यह इस शर्त पर है कि आपके और उस पक्ष के बीच जो आपको इसके लिए नियुक्त करेगा, एक समझौता होना चाहिए, और आपके एजेंट के रूप में कार्य करने पर आपकी मज़दूररी निर्दिष्ट होनी चाहिए।

जहाँ तक 'सलम' के रूप की बात है, तो यह आपके लिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि इसकी शर्त यह है कि आप अनुबंध के समय पूरी कीमत प्राप्त कर लें और उसका मध्यस्थ के पास रहना सही नहीं है।

निष्कर्ष यह कि : जब वस्तु आपके पास नहीं है, और आप उसे बेचने से पहले उस पर कब्ज़ा नहीं कर सकते, न ही खरीदार से पूरी कीमत प्राप्त कर सकते हैं, तो आपके लिए केवल वितरक की ओर से एजेंट होने का रूप ही उपयुक्त है।

दूसरा :

आपने किस्तों द्वारा स्वचालित भुगतान प्रदाता के साथ ग्राहक के व्यवहार के बारे में जो उल्लेख किया है वह जायज़ नहीं है, और वह सूद है जैसा कि आपने उल्लेख किया है, क्योंकि यदि भुगतान प्रदाता खरीदार की ओर से कीमत का भुगतान करता है और फिर वापस आकर उससे और अधिक की माँग करता है, तो यह सूद होगा।

बल्कि, जायज़ यह है कि ग्राहक उसे पैसे का भुगतान करे ताकि वह कमीशन के बदले उसे विक्रेता को पहुँचाए, इसलिए यह शुल्क के बदले में एक एजेंट के रूप में कार्य करना है, जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है।

तथा प्रश्न संख्या (102744 ) का उत्तर देखें।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: अल्लिक़ाउश्शह्री 17 ( सत्रहवीं मासिक बैठक )