हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
यदि पति अपनी पत्नी को संभोग के लिए मजबूर कर दे तो पत्नी पर कोई क़ज़ा और कफ्फारा अनिवार्य नहीं है। इस बात का वर्णन प्रश्न संख्या (106532) के उत्तर में किया जा चुका है।
और यदि औरत पूरी तरह से बाज़ न रहे, उदाहरण के तौर पर औरत अपने पति की बात को इस डर से स्वीकार कर ले कि कहीं वह उससे नाराज़ न हो जाए या उसकी उसकी जिद को पूरा करने के लिए ऐसा करे, या अपने पति की उत्तेजना की वजह से अपनी इच्छा (वासना) का विरोध न कर सके, तो इन सभी हालतों में वह मजबूर नहीं समझी जाएगी, बल्कि वह उसका अनुपालन करनेवाली है। इसलिए उसके ऊपर क़ज़ा और कफ्फारा के साथ साथ अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ला से तौबा (पश्चाताप) करना भी ज़रूरी है।
शैख़ इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह कहते हैं :
“उस (महिला) पर अनिवार्य है कि वह उससे पूरी तरह से बचे और अलग रहे और उसे ऐसा करने में सक्षम न होने दे, चाहे वह क्रोध प्रकट करे या खूश हो।
और यदि वे दोनों यह काम करें और जानबूझ कर करें तो दोनों पर तौबा करना अनिवार्य है, और दोनों पर उस दिन की क़ज़ा के साथ साथ कफ्फारा भी अनिवार्य है, तथा जो कुछ दोनों ने किया है उस पर सच्ची तौबा अनिवार्य है।
और यदि पति ने पत्नी के साथ बल प्रयोग और मार पीट करते हुए या बांध कर इस प्रकार विवश और मजबूर किया है कि उसमें कोई संदेह नहीं रह जाताः तो इस पाप का दोष केवल पति पर होगा और पत्नी पर कुछ भी नहीं होगा।
परन्तु औरत मात्र नापसंद करे, और फिर पति का अनुपालन करेः तो वह मजबूर नहीं समझी जाएगी, बल्कि अनिवार्य यह है कि वह पूरी तरह से उसका इन्कार करे। और औरत स्यवं जानती है कि वह कैसे बचेगी और उससे बाज़ रहेगी, सिवाय इसके कि उस (पति) ने उसे इस तरह बलपूर्वक मजबूर किया हो कि उसके पास उससे बचने की कोई उपाय न रह गई हो, और अल्लाह को खूब पता है कि उसके लिए बचने का कोई उपाय नहीं है।” थोड़े बदलाव के साथ “फतावा नूरुन अलद् दर्ब” से समाप्त हुआ।
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और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।