हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
अमामा (पगड़ी) पर मसह करना जायज़ है। क्योंकि बुखारी (हदीस संख्या : 250) ने अम्र बन उमय्यह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : “मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अपने अमामा और मोज़ों पर मसह करते हुए देखा।”
अमामा पर मसह करने के जायज़ होने का कथन इमाम अहमद का मत है।
तथा प्रश्न संख्या : (129557) का उत्तर देखें।
तथा टोपी, हैट और कैप पर मसह करना सही नहीं है। प्रश्न संख्या : (139719) का उत्तर देखें।
दूसरा :
यदि आपके सिर पर पट्टी बंधी या टेप चिपका हुआ है, तो आप उस पर मसह कर सकते हैं।
अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से ऐसा करना साबित है।
बैहक़ी रहिमहुल्लाह ने कहा : “नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से इस अध्याय में कुछ भी साबित नहीं है..., इस संबंध में केवल ताबेईन और उनके बाद के लोगों में से फुक़हा का कथन है, साथ ही जो हमें इब्ने उमर से वर्णित किया गया है।
फिर उन्होंने अपनी इसनाद के साथ इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि : उन्होंने वुज़ू किया इस हाल में कि उनकी हथेली पर पट्टी बंधी हुई थी तो उन्होंने उसपर और पट्टी पर मसह किया, और उसके अलावा को धुला। वह कहते हैं : यह इब्ने उमर से प्रमाणित है।” “अल-मजमूअ” (2/368) से उद्धरण समाप्त हुआ।
तीसरा :
यदि आपका सिर खुला हुआ है और उसपर मसह करने से आपको हानि पहुँचती है, तो आप वुज़ू के अंगो को धोएँगे और सिर पर मसह के बदले तयम्मुम करेंगे। ऐसा करना आपके लिए पर्याप्त नहीं होगा कि अपने सिर पर कोई चीज़ रख लें फिर उसके ऊपर मसह करें, जबतक कि वह अमामा न हो जिसे आप पहने रहें, या टेप चिपकाया हुआ हो जसके निकालने से आपको हानि पहुँचती हो।
“कश्शाफुल क़िनाअ” (1/165) में कहा गया है : “(यदि उसके शरीर के कुछ भाग पर घाव और इसी तरह की कोई चीज़ हो) जैसे कि उसपर कोई फोड़ा-फुंसी हो (और उसको नुक़सान पहुँचता हो) उसे पानी के साथ धोने और मसह करने से : (तो वह उसके लिए तयम्मुम करेगा) अर्थात ज़खम आदि के लिए...
(यदि उसके लिए उसपर पानी के साथ मसह करना संभव है) अर्थात ज़खम आदि पर (तो ऐसा करना वाजिब है) अर्थात मसह करना (और यह उसके लिए पर्याप्त होगा); क्योंकि धुलने का आदेश दिया गया है और मसह करना उसका कुछ हिस्सा है, इसलिए वह अनिवार्य है; जैसे कि वह व्यक्ति जो रुकूअ और सज्दे करने में असमर्थ हो और संकेत करने पर सामर्थ्य रखता हो।” उद्धरण समाप्त हुआ।
तथा शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “यदि उसपर पट्टी बंधी है : तो उसपर मसह करेगा और यदि वह खुला हुआ है, तो उसके बदले तयम्मुम करेगा।” उद्धरण समाप्त हुआ।
तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने “अश-शर्हुल मुम्ते” (1/169) में फरमाया : “विद्वानों रहिमहुमुल्लाह ने फरमाया : घाव इत्यादि या तो खुला हुआ होगा, या ढका हुआ होगा।
यदि वह खुला हुआ है तो उसे पानी से धुलना वाजिब है, यदि उसको पानी से धुलना दुर्लभ है तो घाव पर मसह करेंगे। यदि मसह करना भी दुर्लभ है तो तयम्मुम करेंगे। यह हुक्म तर्तीब के साथ (क्रमानुसार) है।
यदि वह ढका हुआ है ऐसी चीज़ से जिससे उसे ढकना जायज़ है, तो उसमें केवल मसह करना है। यदि उसके ढके होने के बावजद उसे मसह करना नुक़सान पहुँचाता है, तो तयम्मुम के विकल्प की ओर जाएंगे, ऐसे ही जैसेकि यदि वह खुला हुआ है। फ़ुक़हा रहिमहुमुल्लाह ने यही उल्लेख किया है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
चौथा :
जो व्यक्ति घाव वगैरह के लिए तयम्मुम कर रहा है, उसके तयम्मुम का वुज़ू से पहले या उसके बाद होना जायज़ है। लेकिन हनाबिला ने छोटी तहारत में तर्तीब (क्रम) को अनिवार्य कहा है, इस प्रकार की तयम्मुम सिर पर मसह करने की जगह पर होना चाहिए।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “उनका यह कहना : “और जो घायल हो, वह उसके लिए तयम्मुम करे और शेष को धुले” इसका मतलब यह है कि : जिसके अंगों में घाव हो, और उससे अभिप्राय ऐसा घाव है जिसे पानी के इस्तेमाल से नुक़सान पहुँचता हो, तो वह उस घाव के लिए तयम्मुम करेगा और शेष अंगों को धुलेगा। तथा घाव के लिए तयम्मुम करने के लिए पानी का न होना शर्त नहीं है, अतः पानी के होते हुए तयम्मुम करने में कोई हर्ज की बात नहीं है।
लेखक के कथन : (उसके लिए तयम्मुम करेगा) का प्रत्यक्ष अर्थ यह है कि तयम्मुम के लिए ज़रूरी है कि वह घायल अंग को धुलने की जगह पर हो, क्योंकि उसके लिए तर्तीब (क्रम) शर्त है। परंतु यदि घाव जनाबत के गुस्ल में हो, तो तयम्मुम गुस्ल से पहले, या उसके तुरंत बाद, या उसके अधिक समय के बाद करना जायज़ है।
यही हनाबिला का मत है, क्योंकि उनका विचार यह है कि गुस्ल के लिए तर्तीब व मवालात (क्रम और निरंतरता) का होना शर्त नहीं है ...
यदि घाव हाथ में है तो अनिवार्य यह है कि आप पहले अपने चेहरे को धुलें, फिर आप तयम्मुम करें, फिर अपने सिर का मसह करें, फिर अपने पैर धुलें।
यहाँ अनिवार्य है कि आपके साथ रुमाल हो, ताकि उससे अपने चेहरे और हाथ को सुखा सकें, क्योंकि मिट्टी के लिए शर्त है कि उसमें गर्द हो, और अगर आपके चेहरे पर पानी है, तो तयम्मुम सही नहीं होगा।
कुछ विद्वानों का कहना है : हदसे-अकबर (बड़ी नापाकी) की तरह, तर्तीब और मवालात शर्त नहीं है।
इस आधार पर : वुज़ू से पहले, या उसके थोड़ी देर या अधिक देर बाद, तयम्मुम करना जायज़ है।
इसी पर आज लोगों का अमल है और यही सहीह है। इसे अल-मुवफ़्फ़क़, अल-मज्द और शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्या ने अपनाया है और “तसहीहुल-फ़ुरुअ” में इसी को ठीक क़रार दिया है।
“अश-शर्हुल मुम्ते” (1/383) से उद्धरण समाप्त हुआ।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।