हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
वफादारी और दुश्मनी (वला और बरा) तौह़ीद (एकेश्वरवाद) के मूल सिद्धांतों में से एक है
वफादारी और दुश्मनी (वला और बरा) तौह़ीद (एकेश्वरवाद) के मूल सिद्धांतों में से एक है, और अपने शब्द और अर्थ दोनों के साथ प्रमाणित है।
अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :
يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَّخِذُوا الْيَهُودَ وَالنَّصَارَى أَوْلِيَاءَ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاءُ بَعْضٍ وَمَنْ يَتَوَلَّهُمْ مِنْكُمْ فَإِنَّهُ مِنْهُمْ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ (51) فَتَرَى الَّذِينَ فِي قُلُوبِهِمْ مَرَضٌ يُسَارِعُونَ فِيهِمْ يَقُولُونَ نَخْشَى أَنْ تُصِيبَنَا دَائِرَةٌ فَعَسَى اللَّهُ أَنْ يَأْتِيَ بِالْفَتْحِ أَوْ أَمْرٍ مِنْ عِنْدِهِ فَيُصْبِحُوا عَلَى مَا أَسَرُّوا فِي أَنْفُسِهِمْ نَادِمِينَ (52) وَيَقُولُ الَّذِينَ آمَنُوا أَهَؤُلَاءِ الَّذِينَ أَقْسَمُوا بِاللَّهِ جَهْدَ أَيْمَانِهِمْ إِنَّهُمْ لَمَعَكُمْ حَبِطَتْ أَعْمَالُهُمْ فَأَصْبَحُوا خَاسِرِينَ (53) يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا مَنْ يَرْتَدَّ مِنْكُمْ عَنْ دِينِهِ فَسَوْفَ يَأْتِي اللَّهُ بِقَوْمٍ يُحِبُّهُمْ وَيُحِبُّونَهُ أَذِلَّةٍ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ أَعِزَّةٍ عَلَى الْكَافِرِينَ يُجَاهِدُونَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَلَا يَخَافُونَ لَوْمَةَ لَائِمٍ ذَلِكَ فَضْلُ اللَّهِ يُؤْتِيهِ مَنْ يَشَاءُ وَاللَّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ (54) إِنَّمَا وَلِيُّكُمُ اللَّهُ وَرَسُولُهُ وَالَّذِينَ آمَنُوا الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُمْ رَاكِعُونَ (55) وَمَنْ يَتَوَلَّ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَالَّذِينَ آمَنُوا فَإِنَّ حِزْبَ اللَّهِ هُمُ الْغَالِبُونَ [سورة المائدة : 51 – 56].
“ऐ लोगो जो ईमान लाए हो! तुम यहूदियों और ईसाइयों को दोस्त न बनाओ, वे तो आपस में एक-दूसरे के दोस्त हैं, और तुममें से जो कोई भी उनसे दोस्ती करेगा, तो निश्चय वह उन्हीं में से है, निःसंदेह अल्लाह ज़ालिमों को हिदायत नहीं देता। तो आप उन लोगों को देखेंगे, जिनके दिलों में एक रोग है कि वे डौड़कर उनमें जाते हैं, कहते हैं : हमें भय है कि हम किसी कालचक्र से न ग्रस्त हो जाएँ। तो निकट है कि अल्लाह विजय प्रदान करे या अपने पास से कोई और बात प्रकट कर दे। फिर तो वे उसपर जो उन्होंने अपने दिलों में छिपाया था, लज्जित हो जाएँ। और वे लोग जो ईमान लाए, कहते हैं : क्या यही लोग हैं, जिन्होंने अपनी पक्की क़समें खाते हुए अल्लाह की क़सम खाई थी कि निःसंदेह वे निश्चय तुम्हारे साथ हैंॽ उनके कार्य नष्ट हो गए, सो वे घाटा उठाने वाले हो गए। ऐ लोगो जो ईमान लाए हो! तुममें से जो कोई अपने धर्म से फिर जाए, तो अल्लाह जल्द ही ऐसे लोग लाएगा कि वह उनसे प्रेम करेगा और वे उससे प्रेम करेंगे, ईमान वालों के प्रति बहुत नरम होंगे और काफ़िरों के प्रति बहुत कठोर, अल्लाह के मार्ग में जिहाद करेंगे और किसी भर्त्सना करनेवाले की भर्त्सना से नहीं डरेंगे। यह अल्लाह का अनुग्रह है, वह उसे प्रदान करता है, जिसे चाहता है और अल्लाह बहुत विस्तार वाला, सब कुछ जानने वाला है। तुम्हारे दोस्त तो केवल अल्लाह और उसका रसूल तथा वो लोग हैं, जो ईमान लाए, जो नमाज़ क़ायम करते और ज़कात अदा करते हैं और वे रूकूअ करने (झुकने) वाले हैं। और जो कोई अल्लाह को और उसके रसूल को और उन लोगों को दोस्त बनाए, जो ईमान लाए हैं, तो निश्चय अल्लाह का समूह ही वे लोग हैं, जो ग़ालिब हैं।” (सूरतुल मायदा : 51-56).
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :
وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ لِأَبِيهِ وَقَوْمِهِ إِنَّنِي بَرَاءٌ مِمَّا تَعْبُدُونَ (26) إِلَّا الَّذِي فَطَرَنِي فَإِنَّهُ سَيَهْدِينِ [سورة الزخرف : 26، 27].
“और (याद करो) जब इबराहीम ने अपने बाप और अपनी जाति से कहा : निःसंदेह मैं उनसे बरी हूँ जिनकी तुम इबादत करते हो। सिवाय उसके जिसने मुझे पैदा किया। अतः निःसंदेह वही मेरा मार्गदर्शन करेगा।” (सूरतुज़-ज़ुख़रुफ़ : 26-27).
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :
قَدْ كَانَتْ لَكُمْ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ فِي إِبْرَاهِيمَ وَالَّذِينَ مَعَهُ إِذْ قَالُوا لِقَوْمِهِمْ إِنَّا بُرَآءُ مِنْكُمْ وَمِمَّا تَعْبُدُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ كَفَرْنَا بِكُمْ وَبَدَا بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمُ الْعَدَاوَةُ وَالْبَغْضَاءُ أَبَدًا حَتَّى تُؤْمِنُوا بِاللَّهِ وَحْدَهُ [سورة الممتحنة : 4].
“निश्चय तुम्हारे लिए इबराहीम तथा उनके साथियों में एक अच्छा आदर्श है। जब उन्होंने अपनी जाति से कहा : निःसंदेह हम तुमसे और उन सभी चीज़ों से बरी हैं, जिन्हें तुम अल्लाह के अतिरिक्त पूजते हो। हम तुम्हें नहीं मानते और हमारे बीच तथा तुम्हारे बीच दुश्मनी और घृणा सदा के लिए प्रकट हो चुकी है, यहाँ तक कि तुम अकेले अल्लाह पर ईमान ले आओ।” (सूरतुल मुमतह़िना : 4)
इनके अलावा और भी आयतें हैं, जो मोमिनों के प्रति वफादारी और दोस्ती की अनिवार्यता, काफ़िरों के प्रति वफादारी और दोस्ती के निषेध, तथा उनसे और जिसे वे पूजते हैं, उससे बरी और विमुख होने की अनिवार्यता को स्पष्ट करती हैं।
अहमद (हदीस संख्या : 22132) ने मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सबसे अच्छे ईमान के बारे में पूछा, तो आपने फरमाया : “सबसे अच्छा ईमान यह है कि तुम अल्लाह की ख़ातिर प्यार करो, और अल्लाह की खातिर नफ़रत करो, और अपनी ज़बान को ज़िक्र में लगाओ।” शुऐब अल-अरनऊत ने कहा : यह हदीस सह़ीह़ लिगैरिही है। (इस अर्थ की दूसरी हदीसों की वजह से यह सहीह है)
तथा तबरानी ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस से वर्णन किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “ईमान का सबसे मज़बूत कड़ा : अल्लाह की ख़ातिर दोस्ती रखना, और अल्लाह की ख़ातिर दुश्मनी रखना, अल्लाह की ख़ातिर प्यार करना और अल्लाह की ख़ातिर नफरत करना है।” इस हदीस को अलबानी रहिमहुल्लाह ने “सह़ीह़ अल-जामिउस-सग़ीर” (हदीस संख्या : 2539) में सह़ीह़ कहा है।
दोस्ती और दुश्मनी (वला और बरा) की अवधारणा
शैख़ इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह से पूछा गया : “कृपया आप वला और बरा (दोस्ती और दुश्मनी) को स्पष्ट करके बताएँ कि यह किसके लिए होगी और क्या काफ़िरों से दोस्ती रखना जायज़ हैॽ
तो उन्होंने उत्तर दिया : वला और बरा का अर्थ है मोमिनों से प्रेम करना और उनसे दोस्ती रखना, तथा काफ़िरों से घृणा करना और उनसे दुश्मनी रखना और उनसे एवं उनके धर्म से बरी होना। यही वला और बरा का अर्थ है, जैसाकि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने सूरतुल-मुमतह़िना में फरमाया :
قَدْ كَانَتْ لَكُمْ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ فِي إِبْرَاهِيمَ وَالَّذِينَ مَعَهُ إِذْ قَالُوا لِقَوْمِهِمْ إِنَّا بُرَآءُ مِنْكُمْ وَمِمَّا تَعْبُدُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ كَفَرْنَا بِكُمْ وَبَدَا بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمُ الْعَدَاوَةُ وَالْبَغْضَاءُ أَبَدًا حَتَّى تُؤْمِنُوا بِاللَّهِ وَحْدَهُ [سورة الممتحنة : 4].
“निश्चय तुम्हारे लिए इबराहीम तथा उनके साथियों में एक अच्छा आदर्श है। जब उन्होंने अपनी जाति से कहा : निःसंदेह हम तुमसे और उन सभी चीज़ों से बरी हैं, जिन्हें तुम अल्लाह के अतिरिक्त पूजते हो। हम तुम्हें नहीं मानते और हमारे बीच तथा तुम्हारे बीच दुश्मनी और घृणा सदा के लिए प्रकट हो चुकी है, यहाँ तक कि तुम अकेले अल्लाह पर ईमान ले आओ।” (सूरतुल मुमतह़िना : 4)
लेकिन उनसे घृणा करने और उनसे दुश्मनी का मतलब यह नहीं है कि आप उनपर अत्याचार करें या उनपर अतिक्रमण करें, अगर वे मुसलमानों के साथ युद्ध की स्थिति में नहीं हैं। बल्कि इसका मतलब यह है कि आप अपने दिल में उनसे घृणा रखें और अपने दिल में उनसे दुश्मनी रखें, और उन्हें अपना दोस्त न बनाएँ। लेकिन आप उन्हें कष्ट और हानि (भी) न पहुँचाएँ, तथा उनपर अत्याचार न करें। यदि वे आपको अभिवादन (सलाम) करते हैं, तो उनके अभिवादन (सलाम) का उत्तर दें, तथा उन्हें नसीहत करें और भलाई की ओर उनका निर्देशन करें, जैसा कि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :
وَلَا تُجَادِلُوا أَهْلَ الْكِتَابِ إِلَّا بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ إِلَّا الَّذِينَ ظَلَمُوا مِنْهُمْ [سورة العنكبوت : 46].
“और तुम किताब वालों से केवल ऐसे तरीक़े से वाद-विवाद करो, जो सबसे उत्तम हो, सिवाय उन लोगों के जिन्होंने उनमें से ज़ुल्म किया।” (सूरतुल-अनकबूत : 46)
किताब वालों से अभिप्राय यहूदी और ईसाई हैं, और इसी तरह अन्य काफ़िर लोग जिन्हें सुरक्षा दी गई है, या मुसलमानों के साथ शांति-संधि है, या मुस्लिम शासन के अधीन रह रहे हैं। लेकिन उनमें से जो कोई भी अत्याचार करता है, उसे उसके अत्याचार के लिए दंडित किया जाएगा। अन्यथा मोमिन के लिए धर्मसंगत यह है कि वह मुसलमानों और काफ़िरों; सबके साथ उत्तम ढंग से बहस करे, जबकि अल्लाह की ख़ातिर उन (काफ़िरों) से घृणा करे, पिछली आयत के कारण...”
“मजमूओ फतावा इब्ने बाज़” (5/246) से उद्धरण समाप्त हुआ।
शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया : दोस्ती और दुश्मनी (वला और बरा) क्या हैॽ
उत्तर : अल्लाह के लिए दोस्ती और दुश्मनी (वला और बरा) का मतलब यह है कि इनसान हर उस चीज़ से बरी और विमुख हो जाए, जिससे अल्लाह ने अपनी विमुखता प्रकट की है, जैसाकि अल्लाह तआला ने फरमाया :
قَدْ كَانَتْ لَكُمْ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ فِي إِبْرَاهِيمَ وَالَّذِينَ مَعَهُ إِذْ قَالُوا لِقَوْمِهِمْ إِنَّا بُرَآءُ مِنْكُمْ وَمِمَّا تَعْبُدُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ كَفَرْنَا بِكُمْ وَبَدَا بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمُ الْعَدَاوَةُ وَالْبَغْضَاءُ أَبَدًا حَتَّى تُؤْمِنُوا بِاللَّهِ وَحْدَهُ [سورة الممتحنة : 4].
“निश्चय तुम्हारे लिए इबराहीम तथा उनके साथियों में एक अच्छा आदर्श है। जब उन्होंने अपनी जाति से कहा : निःसंदेह हम तुमसे और उन सभी चीज़ों से बरी हैं, जिन्हें तुम अल्लाह के अतिरिक्त पूजते हो। हम तुम्हें नहीं मानते और हमारे बीच तथा तुम्हारे बीच दुश्मनी और घृणा सदा के लिए प्रकट हो चुकी है, यहाँ तक कि तुम अकेले अल्लाह पर ईमान ले आओ।” (सूरतुल मुमतह़िना : 4)
और यह मुश्रिकों (बहुदेववादियों) के साथ है, जैसा कि अल्लाह महिमावान ने फरमाया :
وَأَذَانٌ مِنَ اللَّهِ وَرَسُولِهِ إِلَى النَّاسِ يَوْمَ الْحَجِّ الْأَكْبَرِ أَنَّ اللَّهَ بَرِيءٌ مِنَ الْمُشْرِكِينَ وَرَسُولُهُ [سورة التوبة: 3]
“अल्लाह और उसके पैगंबर की ओर से हज्जे अक्बर के दिन लोगों के लिए एलान है कि अल्लाह मुश्रिकों से बरी है और उसका रसूल भी।” (सूरतुत् तौबा : 3).
अतः हर मोमिन के लिए अनिवार्य है कि वह हर मुश्रिक और काफ़िर से विमुखता और बेज़ारी प्रकट करे। यह व्यक्तियों के संबंध में है।
इसी तरह, मुसलमान के लिए अनिवार्य है कि वह हर उस काम से बरी और विमुख हो जाए, जो अल्लाह और उसके रसूल को पसंद नहीं है, भले ही वह कुफ़्र न हो, जैसे अल्लाह की अवज्ञा और अवहेलना। जैसा कि अल्लाह ने फरमाया :
وَلَكِنَّ اللَّهَ حَبَّبَ إِلَيْكُمُ الْأِيمَانَ وَزَيَّنَهُ فِي قُلُوبِكُمْ وَكَرَّهَ إِلَيْكُمُ الْكُفْرَ وَالْفُسُوقَ وَالْعِصْيَانَ أُولَئِكَ هُمُ الرَّاشِدُونَ [سورة الحجرات: 7]
“लेकिन अल्लाह ने तुम्हारे लिए ईमान को प्रिय बना दिया और उसे तुम्हारे दिलों में मनोहर बना दिया। तथा कुफ़्र, अवज्ञा और अवहेलना को तुम्हारे लिए घृणास्पद बना दिया। यही लोग मार्गदर्शन प्राप्त हैं।” (सूरतुल ह़ुजुरात : 7)
“फतावा अरकानुल-इस्लाम” (पृष्ठ 183) से उद्धरण समाप्त हुआ।
तथा शैख सालेह अल-फ़ौज़ान हफ़िज़हुल्लाह “शर्ह़ नवाक़िज़ुल इस्लाम” (पृष्ठ 158) में कहते हैं : शैख़ रहिमहुल्लाह ने काफ़िरों के साथ दोस्ती के एक प्रकार का उल्लेख किया है, और वह मुसलमानों के विरुद्ध काफ़िरों का समर्थन करना है। अन्यथा काफ़िरों से दोस्ती में दिल से प्रेम करना, मुसलमानों के खिलाफ उनका समर्थन करना, उनकी प्रशंसा और सराहना करना इत्यादि शामिल हैं। क्योंकि अल्लाह तआला ने मुसलमानों पर काफ़िरों से दुश्मनी रखना, उनसे घृणा करना और उनसे विमुखता प्रकट करना अनिवार्य किया है। इसी को इस्लाम में ‘वला और बरा के अध्याय’ से जाना जाता है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
“वला और बरा” की शब्दावली से खवारिज का संबंध
हम नहीं जानते कि ख़वारिज का “वला और बरा” के मुद्दे से कोई विशेष संबंध है। लेकिन आधुनिक समय में जिन लोगों ने तक्फ़ीर (काफ़िर घोषित करने या कुफ़्र का फत्वा लगाने) में अतिशयोक्ति से काम लिया है, हो सकता है उन्होंने इस अध्याय का सहारा लिया हो। और यह इस मुद्दे और उसके विषय को समझने में गड़बड़ी (ग़लतफ़हमी) के कारण है, सिर्फ शीर्षक के कारण नहीं।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।