हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
शैख अब्दुल अज़ीज़ इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
“यदि कोई व्यक्ति क़ुर्बानी करना चाहता है, और ज़ुल-हिज्जा का महीना शुरू हो जाएः या तो नया चाँद देखने की वजह से, या जुल-क़ादा के तीस दिन पूरा करने के कारण, तो उसके लिए अपने बालों या नाखूनों या त्वचा में से कुछ भी काटना हराम हो जाता है यहाँ तक कि वह अपने क़ुर्बानी के जानवर को ज़बह कर दे। क्योंकि उम्मे सलमह रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''जब तुम ज़ुल-हिज्जा का नया चाँद देख लो”, और एक रिवायत के शब्द में यह है किः “जब (ज़ुल-हिज्जा के) दस दिन शुरू हो जाएं और तुम में से कोई व्यक्ति क़ुर्बानी करना चाहे, तो वह अपने बाल और नाखून (काटने) से रुक जाए।'' इसे मुस्लिम और अहमद ने रिवायत किया है। और एक रिवायत में है किः “तो वह अपने बाल और नाखून न काटे यहाँ तक कि वह क़ुर्बानी कर ले।” और एक रिवायत के शब्द यह हैं कि : ''तो वह अपने बाल और त्वचा में से किसी चीज़ को न छुए।''
यदि वह ज़ुल-हिज्जा के पहले दस दिनों के दौरान क़ुर्बानी करने का इरादा करे, तो वह अपनी नीयत के समय से उससे रुक जाए और नीयत करने से पहले उसने जो बाल वगैरह काट लिए हैं उसमें उसपर कोई पाप नहीं है।
इस निषेध की हिक्मत (तत्वदर्शिता) यह है कि जब क़ुर्बानी करने वाला व्यक्ति हज्ज के कुछ अनुष्ठानों में हाजी के साथ साझा रखता है और वह जानवर की क़ुर्बानी करके अल्लाह की निकटता प्राप्त करना है, तो वह एहराम की कुछ विशेषताओं जैसे बाल वगैरह काटने में भी उसके साथ साझा रखने वाला हो गया।
यह आदेश केवल उस व्यक्ति के लिए विशिष्ट है जो क़ुर्बानी करने वाला है, रही बात उसकी जिसकी ओर से क़ुर्बानी की जा रही है तो उसके साथ उसका संबंध नहीं है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः “और तुम में से कोई व्यक्ति क़ुर्बानी करना चाहे”, आप ने यह नहीं फरमायाः “या जिसकी तरफ से क़ुर्बानी की जा रही है।” तथा इसलिए कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने घर वालों की ओर से क़ुर्बानी करते थे और आपके बारे में यह उल्लेख नहीं किया गया है कि आप ने उन्हें (अपने बाल और नाखून आदि काटने) से बचने का आदेश दिया।
इस आधार पर, क़ुर्बानी करने वाले व्यक्ति के परिवार के लिए ज़ुल-हिज्जा के पहले दस दिनों के दौरान अपने बालों, नाखूनों और त्वचा से काटना जायज़ है।
यदि वह व्यक्ति जो क़ुर्बानी करना चाहता है अपने बालों या नाखूनों या त्वचा में से कुछ भी काट लेता है, तो उसे अल्लाह से पश्चाताप करना चाहिए और फिर से ऐसा नहीं करना चाहिए, और उसके ऊपर कोई कफ्फारा नहीं है, और यह उसे क़ुर्बानी करने से नहीं रोकता है, जैसाकि कुछ आम लोगों का गुमान है। अगर वह इन चीजों में से कोई चीज़ भूलकर या अज्ञानता में कर लेता है, या कुछ बाल अनचाहे गिर जाता है तो उसके ऊपर कोई पाप नहीं है। अगर उसे इसे काटने की ज़रूरत पड़ जाती है तो वह ऐसा कर सकता है और उसके ऊपर कोई दोष नहीं है, जैसे कि उसका नाखून टूट जाए और उसे उससे कष्ट पहुंचता हो तो वह उसे काट सकता है, या यदि कोई बाल उसकी आंखों में आ जाए तो वह उसे हटा सकता है, या किसी घाव आदि के इलाज के लिए उसे अपने बालों को काटने की जरूरत पड़ जाए।”