गुरुवार 18 रमज़ान 1445 - 28 मार्च 2024
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विदाई तवाफ में होने वाली गलतियाँ

प्रश्न

विदाई तवाफ में कुछ हाजियों से होने वाली गलतियाँ क्या हैं ॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

शैख मुहम्मद बिन उसैमीन – रहिमहुल्लाह - ने फरमाया : “सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम में इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : “लोगों को आदेश दिया गया है कि उनका अंतिम काम बैतुल्लाह का तवाफ हो, सिवाय इसके कि मासिक धर्म वाली औरत के लिए इसमें छूट दी गई है।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1755) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1328) ने रिवायत किया है।

अतः अनिवार्य यह है कि तवाफ, इंसान का हज्ज के कामों में से अंतिम काम हो।

लोग विदाई तवाफ में कई मामलों में गलती करते हैं :

प्रथम :

कुछ लोग तवाफ को अपना अंतिम काम नहीं बनाते हैं, बल्कि वह मक्का जाता है और विदाई तवाफ करता है, जबकि उसके ऊपर जमरात को कंकरी मारना बाक़ी रहता है, फिर वह मिना जाता है और जमरात को कंकरी मारता है फिर प्रस्थान कर जाता है, हालांकि यह गलत है, और इस तरह की हालत में विदाई तवाफ उसके लिए काफी नहीं होगा, और यह इसलिए कि इंसान का अंतिम काम काबा का तवाफ नहीं हुआ, बल्कि उसका अंतिम काम जमरात को कंकरी मारना हुआ।

दूसरा :

कुछ लोग विदाई तवाफ करते हैं और उसके बाद मक्का में ठहरे रहते हैं, ऐसा करना उसके विदाई तवाफ को निरस्त कर देगा, और उसे अपनी यात्रा के समय उसकी जगह दूसरा तवाफ करना होगा। हाँ, अगर इंसान विदाई तवाफ के बाद मक्का में किसी ज़रूरत की चीज़ खरीदने, या सामान लादने के लिए या इसी तरह के अन्य काम के लिए ठहरता है तो कोई आपत्ति की बात नहीं है।

तीसरा :

कुछ लोग तवाफ करने के बाद जब मस्जिद से बाहर निकलने का इरादा करते हैं तो उलटे पाँव वापस लौटते हैं, अर्थात वह अपनी गुद्दी के बल वापस आता है, उसका भ्रम यह होता है कि वह इसके द्वारा काबा की ओर अपनी पीठ करने से बचता है, यह एक बिद्अत (नवाचार यानी धर्म में एक नयी चीज़ है) जिसे अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नहीं किया है और न ही आपके सहाबा में से किसी ने किया है, जबकि अल्लाह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह तआला का और उसके घर का हम से अधिकतर सम्मान करने वाले थे, और यदि यह अल्लाह और उसके घर के सम्मान में से होता तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इसे अवश्य करते। ऐसी स्थिति में सुन्नत यह है कि इंसान जब बिदाई तवाफ करे तो अपने चेहरे के बल पलटे भले ही ऐसी हालत में काबा उसकी पीठ की ओर हो।

चौथा :

कुछ लोग जब बिदाई तवाफ कर लेते हैं फिर वापस लौटते हैं और मस्जिदुल हराम के द्वार पर पहुँचते हैं तो काबा की ओर इस तरह मुँह करते हैं गोया कि वह उस से विदा ले रहे हैं, चुनाँचे वह दुआ करता है या सलाम करता है या इसी के समान कोई चीज़ करता है, तो यह भी बिदआत में से है क्योंकि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ऐसा नहीं किया है, और यदि यह नेकी व भलाई का काम होता तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इसे अवश्य किए होते।”

स्रोत: “दलीलुल अख्ता अल्लती यक़ओ फीहा अल्हाज्जो वल-मोतमिरो” (हज्ज व उम्रा करनेवालों से होने वाली गलतियों की मार्गदर्शिका) से समाप्त हुआ।