हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।इस आदमी ने आपसे जो बात कही है वह सही नहीं है,क्योंकि हज्ज जीवन में केवल एक बार ही करना अनिवार्य है,इसलिए कि इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस है कि अक़रा बिन ह़ाबिस रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रश्न करते हुए कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! क्या हज्ज प्रत्येक वर्ष है या केवल एक बार ? तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: बल्कि केवल एक बार,जिसने इस से अधिक किया तो वह स्वैच्छिक (नफ्ल) है।"इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या: 1721)ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीह कहा है।
और चूँकि आप इस से पहले हज्ज कर चुके हैं इसलिए आप पर दूसरी बार हज्ज करना अनिवार्य नहीं है।
तथा हज्ज के महीने तीन हैं और वे शव्वाल,ज़ुल क़ादा और ज़ुलहिज्जा हैं।और शायद उस आदमी ने उन्हें हज्ज के महीने के नाम से नामित करने से यह समझा कि जिसने इन महीनों में उम्रा किया उस पर हज्ज अनिवार्य हो गया,हालाँकि यह समझ सही नहीं है,बल्कि उनके हज्ज के महीने होने का अर्थ यह है कि हज्ज का उन्हीं महीनों में होना आवश्यक है,न तो उनसे पहले हो सकता है और न ही उनके बाद।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया कि एक आदमी ने हज्जे तमत्तुअ् किया,फिर उम्रा करने के बाद ही अपने देश लौट गया और हज्ज नहीं किया,तो क्या उसके ऊपर कोई चीज़ अनिवार्य है ?
तो उन्हों ने उत्तर दिया:
"आपके ऊपर कोई चीज़ अनिवार्य नहीं है,क्योंकि हज्ज तमत्तू करने वाले व्यक्ति ने यदि उम्रा का एहराम बांध लिया,फिर हज्ज का एहराम बांधने से पहले उसके मन में आयाकि वह हज्ज नहीं करेगा,तो उसके ऊपर कोई चीज़ नहीं है,सिवाय इसके कि उसने मन्नत मानी हो कि वह इस साल हज्ज करेगा। यदि उसने मन्नत मानी है तो उसके ऊपर अपनी मन्नत को पूरा करना अनिवार्य है।"
फतावा इब्ने उसैमीन (2/679).