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क्या काफिर रोगी को झाड़-फूँक करना जाइज़ है ?

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प्रकाशन की तिथि : 04-06-2011

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प्रश्न

प्रश्न: क्या इस्लाम की ओर निमंत्रण के उद्देश्य से किसी काफिर को झाड़-फूँक (दम) करना जाइज़ है ? क्योंकि यदि झाड़-फूँक का अच्छा परिणाम निकला तो यह नास्तिक इस्लाम स्वीकारने के बारे में सोच सकता है। बेशक, इस अनीश्वरवादी को बताया जायेगा कि स्वयं इस झाड़-फूँक के अंदर कोई शक्ति नहीं है बल्कि यह अल्लाह सर्वशक्तिमान की मशीयत (चाहत और इच्छा) से प्राप्त होती है।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

कोई ऐसा अधिनियम नहीं है जो इस काम के करने से रोकता हो, और क़ुरआन के अंदर अल्लाह तआला ने शिफा (रोगनिवारण) रखा है, जिस प्रकार कि शहद (मधु) या तेल और इसके अलावा अन्य चीज़ों में (शिफा) रखा है। ये सब शिफा (रोग निवारण) के कारण हैं और वास्तव में अल्लाह तआला ही शिफा देने वाला है। अतः, इस व्यक्ति को झाड़-फूँक करने में कोई बात नहीं है विशेष रूप से आप इस काफिर के इस्लाम स्वीकारने की आशा करते हैं।

तथा सहीह हदीस में ऐसा प्रमाण आया है जो काफिर को झाड़-फूँक करने की वैधता को दर्शाता है, अबू सईद रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा:

" انْطَلَقَ نَفَرٌ مِنْ أَصْحَابِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فِي سَفْرَةٍ سَافَرُوهَا حَتَّى نَزَلُوا عَلَى حَيٍّ مِنْ أَحْيَاءِ الْعَرَبِ ( وهؤلاء القوم إما أنهم كفار أو أهل بُخل ولؤم كما ذكر ابن القيّم رحمه الله في المدارج ) فَاسْتَضَافُوهُمْ فَأَبَوْا أَنْ يُضَيِّفُوهُمْ فَلُدِغَ سَيِّدُ ذَلِكَ الْحَيِّ فَسَعَوْا لَهُ بِكُلِّ شَيْءٍ لا يَنْفَعُهُ شَيْءٌ فَقَالَ بَعْضُهُمْ لَوْ أَتَيْتُمْ هَؤُلاءِ الرَّهْطَ الَّذِينَ نَزَلُوا لَعَلَّهُ أَنْ يَكُونَ عِنْدَ بَعْضِهِمْ شَيْءٌ فَأَتَوْهُمْ فَقَالُوا يَا أَيُّهَا الرَّهْطُ إِنَّ سَيِّدَنَا لُدِغَ وَسَعَيْنَا لَهُ بِكُلِّ شَيْءٍ لا يَنْفَعُهُ فَهَلْ عِنْدَ أَحَدٍ مِنْكُمْ مِنْ شَيْءٍ فَقَالَ بَعْضُهُمْ نَعَمْ وَاللَّهِ إِنِّي لَأَرْقِي وَلَكِنْ وَاللَّهِ لَقَدْ اسْتَضَفْنَاكُمْ فَلَمْ تُضَيِّفُونَا فَمَا أَنَا بِرَاقٍ لَكُمْ حَتَّى تَجْعَلُوا لَنَا جُعْلًا فَصَالَحُوهُمْ عَلَى قَطِيعٍ مِنْ الْغَنَمِ فَانْطَلَقَ يَتْفِلُ عَلَيْهِ وَيَقْرَأُ الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ فَكَأَنَّمَا نُشِطَ مِنْ عِقَالٍ فَانْطَلَقَ يَمْشِي وَمَا بِهِ قَلَبَةٌ قَالَ فَأَوْفَوْهُمْ جُعْلَهُمْ الَّذِي صَالَحُوهُمْ عَلَيْهِ فَقَالَ بَعْضُهُمْ اقْسِمُوا فَقَالَ الَّذِي رَقَى لا تَفْعَلُوا حَتَّى نَأْتِيَ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَنَذْكُرَ لَهُ الَّذِي كَانَ فَنَنْظُرَ مَا يَأْمُرُنَا فَقَدِمُوا عَلَى رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَذَكَرُوا لَهُ فَقَالَ وَمَا يُدْرِيكَ أَنَّهَا رُقْيَةٌ ثُمَّ قَالَ قَدْ أَصَبْتُمْ اقْسِمُوا وَاضْرِبُوا لِي مَعَكُمْ سَهْمًا فَضَحِكَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ." رواه البخاري ( 2276 ) ومسلم ( 2201 )

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबा (साथियों) का एक समूह एक यात्रा पर रवाना हुआ यहाँ तक कि यात्रा करते हुए अरब के एक क़बीले पर पड़ाव डाला (और ये लोग या तो काफिर थे या कंजूस और तुच्छ लोग थे जैसा कि इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने मदारिजुस्सालिकीन में उल्लेख किया है) सहाबा ने उनसे आतिथ्य (मेहमान नवाज़ी) की मांग की तो उन्हों ने इन लोगों की अतिथि सत्कार करने से इनकार कर दिया। फिर हुआ यह कि उस क़बीले के सरदार को बिच्छू ने डँक मार दिया, उन्हों ने उसके उपचार का हर प्रयास किया परंतु उसे कोई लाभ नहीं हुआ। तो उन में से कुछ ने कहा अगर तुम इस काफिले के पास जाओ जो पड़ाव डाले हुए है शायद उनके पास कोई चीज़ (उपचार) हो। चुनांचे वे उनके पास आए और कहा: ऐ काफिले वालो, हमारे सरदार को बिच्छू ने डँक मार दिया है और हम ने उसके उपचार के लिए हर प्रयास किया किंतु उसे कोई लाभ नहीं हुआ, तो क्या तुम में से किसी के पास कोई चीज़ (उपचार) है ? तो उनमें से कुछ ने कहा: हाँ, अल्लाह की क़सम! मैं झाड़-फूँक करता हूँ लेकि अल्लाह की क़सम! हमने तुम लोगों से आतिथ्य (मेहमान नवाज़ी) का अनुरोध किया परंतु तुम ने हमारा अतिथि सत्कार नहीं किया। अतएव मैं तुम्हारे लिए झाड़-फूँक नहीं कर सकता यहाँ तक कि तुम हमारे लिए एक पारिश्रमिक निर्धारित कर दो। तो उन्हों ने उनसे बकरियों के एक रेवड़ (झुण्ड) पर समझौता किया। वह सहाबी उसके पास गए और उस पर अल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन (सूरतुल फातिहा) पढ़कर थुकथुकाने लगे, तो वह इस तरह चंगा हो गया गोया कि बंधन से छुड़ा दिया गया हो, और इस तरह चलने लगा कि उसे कोई रोग ही नहीं था। वह कहते हैं: फिर उन लोगों ने उन्हें वह पारिश्रमिक भुगतान किया जिस पर उनसे समझौता किया था। सहाबा में से कुछ ने कहा कि इसे बांटो, तो जिस आदमी ने झाड़-फूँक किया था उसने कहा कि ऐसा न करो यहाँ तक कि हम नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास जाएं और आप से उस चीज़ की चर्चा करें जो घटित हुआ है। फिर देखें कि आप हमें किस चीज़ का आदेश देते हैं। वे लोग अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए और आप से उस चीज़ का उल्लेख किया तो आपने फरमाया: और तुम्हें कैसा पता चला कि यह झाड़-फूँक है! फिर आप ने कहा: तुमने ठीक किया, उसे बाँटो और अपने साथ मेरे लिए भी एक हिस्सा लगाओ। फिर रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हँस पड़े।" इसे बुखारी (हदीस संख्या: 2276) और मुस्लिम (हदीस संख्या: 2201) ने रिवायत किया है।

नीचे हाफिज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह द्वारा इस हदीस की व्याख्या के कुछ अंश कुछ लाभदायक बातों के साथ उल्लेख किए जा रहे हैं:

हदीस के शब्द: ((فَاسْتَضَافُوهُمْ अर्थात् उनसे आतिथ्य के लिए कहा, तथा तिर्मिज़ी के अलावा के पास आमश की रिवायत में है कि "अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें तीस आदमियों की संख्या में भेजा, तो हम रात के समय एक क़ौम के पास उतरे और उनसे आतिथ्य के लिए अनुरोध किया।

हदीस के शब्द: (فَلُدِغَ) डंक मार दिया गया अर्थात् किसी बिच्छू ने डंक मार दिया।

हदीस के शब्द: (فَسَعَوْا لَهُ بِكُلِّ شَيْءٍ) "उन्हों ने उसके लिए हर चीज़ के द्वारा प्रयास किया" अर्थात् बिच्छू के डंक मारने का जो भी उपचार करने की आदत थी उसे किया।

हदीस के शब्द: (فَأَتَوْهُمْ) "वे उनके पास आए" . . . बज़्ज़ार ने जाबिर की हदीस में वृद्धि कि है कि "तो उन्हों ने इन (सहाबा) से कहा कि हमें यह सूचना पहुँची है कि आप लोगों का साथी नूर (प्रकाश) और शिफा (रोगनिवारण) लेकर आया है, तो इन लोगों ने कहाः जी हाँ।’’

हदीस के शब्द: (فَهَلْ عِنْدَ أَحَدٍ مِنْكُمْ مِنْ شَيْءٍ) "तो क्या तुम में से किसी के पास कोई चीज़ है।" अबू दाऊद ने इसी तरीक़ से अपनी रिवायत में यह वृद्धि की है "जो हमारे साथी के लिए लाभदायक हो।"

हदीस के शब्द: (فَقَالَ بَعْضُهُمْ) "तो उनमें से कुछ ने कहा" अबू दाऊद की एक रिवायत में है: "तो क़ौम के एक आदमी ने कहा: हाँ, अल्लाह की क़सम! मैं झाड़-फूँक करता हूँ" . . . जिस व्यक्ति ने यह कहा वह इस हदीस के रावी (वर्णन करने वाले) अबू सईद हैं और उनके शब्द यह हैं "मैं ने कहा, हाँ। किंतु मैं उसे झाड़-फूँक नहीं करूँगा यहाँ तक कि तुम हमें बकरियाँ दो।"

तथा सुलैमान बिन क़त्ता की रिवायत में यह शब्द आया है कि "मैं उसके पास आया और सूरत फातिहा के द्वारा उस पर दम (झाड़-फूँक) किया।"

हदीस के शब्द: (فَصَالَحُوهُمْ) "उन्हों ने उनसे से समझौता किया" अर्थात उनसे सहमत हो गये।

हदीस के शब्द: (عَلَى قَطِيعٍ مِنْ الْغَنَمِ) "एक रेवड़ बकरी पर" . . . आमश की रिवायत में है: "तो उन्हों ने कहा कि हम तुम्हें तीस बकरियाँ देंगे।"

हदीस के शब्द: (فَانْطَلَقَ يَتْفِلُ ) "वह थुकथुकाने लगे" थुकथुकाने का मतलब है थोड़े से थूक के साथ फूँकना।

इब्ने अबी हम्ज़ा कहते हैं: झाड़-फूँक में थुकथुकाने का स्थान (क़ुरआन या दुआ) पढ़ने के बाद है ताकि पढ़ने की बर्कत (आशीर्वाद) उन अंगों को पहुँचे जिन पर थूक गुज़रता है, तो बर्कत उस थूक में होती है जिसे वह थुकथुकाता है।

हदीस के शब्द: (وَيَقْرَأُ الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ) "और अल्हम्दु-लिल्लाहि रब्बिल आलमीन पढ़ते" शोअबा की रिवायत में है: "तो उस पर सूरतुल फातिहा पढ़ने लगे" . . . आमश की रिवायत में है कि सात बार पढ़ी।

हदीस के शब्द: (فَكَأَنَّمَا نُشِطَ) "गोया कि उसे खोल दिया गया हो" . . . अर्थात जल्दी से खड़ा कर दिया गया हो, इसे से अरब का कथन है सक्रिय आदमी।

हदीस के शब्द: (مِنْ عِقَالٍ) "इक़ाल से" . . . यह उस रस्सी को कहते हैं जिससे पशु के हाथ को बांधा जाता है।

हदीस के शब्द: (وَمَا بِهِ قَلَبَةٌ) "उसे कोई रोग नहीं था" . . . अर्थात "इल्लत" (बीमारी), इल्लत (रोग) के लिए "क़-ल-बह" का शब्द इस लिए आया है क्योंकि जिसे बीमारी होती उसे एक पहलू से दूसरे पहलू पर पलटा जाता है ताकि रोग के स्थान का पता चलाया जाए।

हदीस के शब्द: (وَمَا يُدْرِيكَ أَنَّهَا رُقْيَةٌ) "तुम्हें कैसे पता चला कि यह झाड़-फूँक है" दाऊदी ने कहा: इसका अर्थ है तुम्हें क्या पता . . तथा माबद बिन सीरीन की रिवायत में है "उसे क्या पता था" यह एक ऐसा शब्द है जिसे आश्चर्य के समय बोला जाता है तथा किसी चीज़ की महानता का वर्णन करने में भी प्रयोग किया जाता है और यही इस स्थान के योग्य है। तथा शोअबा ने अपनी रिवायत में वृद्धि की है: "और उन्हें आप से कोई निषेद्ध याद नहीं था" अर्थात नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से इसके बारे में। तथा सुलैमान बिन क़त्तह ने अपनी रिवायत में "और तुम्हे क्या पता कि यह झाड़-फूँक है’’ के बाद यह वृद्धि की है कि "मैं ने कहा कि मेरे दिल में डाल दिया गया" (अर्थात मुझे इलहाम कर दिया गया)

हदीस के शब्द: (وَاضْرِبُوا لِي مَعَكُمْ سَهْمًا) "और मेरे लिए भी अपने साथ एक हिस्सा लगाओ" अर्थात मेरे लिए भी उसमें एक हिस्सा लगाओ, गोया आप ने उनका मनोरंजन करने में अतिश्योक्ति करना चाहा।

इस हदीस से अल्लाह की किताब (क़ुरआन) के द्वारा झाड़-फूँक की वैधता का पता चलता है, और यही हुक्म उस झाड़-फूँक का भी होगा जो ज़िक्र और (नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से) मासूर (प्रमाणित) दुआ के द्वारा हो, और इसी तरह उस गैर मासूर दुआ का भी हुक्म है जो मासूर दुआ के विरूध न हो . . इस हदीस में यह भी है कि जिस आदमी ने आतिथ्य से इनकार कर दिया था उसके साथ वैसा ही व्यवहार किया गया जिस प्रकार की उसकी करनी थी जब सहाबी ने उन लोगों के आतिथ्य से इनकार करने के मुकाबले में झाड़-फूँक से इनकार कर दिया। तथा इस हदीस से यह भी पता चलता है कि नस (अर्थात क़ुरआन या हदीस का स्पष्ट प्रमाण) न होने की स्थिति में इज्तिहाद से काम लिए जायेगा, तथा सहाबा के सीने में क़ुरआन की महानता थी विशेष रूप से सूरतुल फातिहा की, तथा इस हदीस में यह भी है कि मुक़द्दर रोज़ी को वह आदमी जिसके हाथ में वह है उस आदमी से रोकने की ताक़त नहीं रखता है जिसके लि वह बंटी हुई है, क्योंकि उन लोगों ने आतिथ्य से इनकार कर दिया और अल्लाह तआला ने सहाबा के लिए उनके माल में एक हिस्सा आवंटित कर रखा था परंतु उन लोगों ने इससे इनकार कर दिया तो उनके लिए बिच्छू का काटना कारण बना दिया यहाँ तक कि जो उनके भाग्य में लिखा हुए था वह उन्हें मिल गया। इसके अंदर एक बड़ी हिक्मत है कि विशिष्ट रूप से उसी व्यक्ति को सज़ा मिली जो आतिथ्य के रोकने में प्रमुख (सरदार) था, इसलिए कि लोगों की यह आदत होती है कि वे अपने बड़ों के आदेश का पालन करते हैं, जब वह रोकन में उनका सरदार था तो विशिष्ट रूप से उसी को सज़ा दी गई ..

तथा "अल मौसूआ अल फिक्हिय्या" में है कि:- फुक़हा के बीच इस मुद्दे में कोई मतभेद नहीं है कि मुसलमान का किसी काफिर को झाड़-फूँक करना जाइज़ है। और उन्हों ने अबू सईद अल-खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस से दलील पकड़ी है जिसका पीछे उल्लेख किया गया है, उससे दलील पकड़ने का तरीक़ा यह है कि वे लोग जिस क़बीले के पास पड़ाव डाले थे और उनसे आतिथ्य की मांग की थी और उन्हों ने आतिथ्य से इनकार कर दिया था, वे काफिर (नास्तिक) थे, और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसका इनकार नहीं किया।

और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

इस्लाम प्रश्न और उत्तर

स्रोत: शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद