रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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रंग के ऐतिबार से पोशाक के नियमॽ

प्रश्न

हदीस में "कुसुम से रंगे" कपड़े का क्या मतलब है? क्या हरा या बेज रंग का कपड़ा पहनना जायज़ है? क्या उसके मकरूह होने का कोई प्रमाण हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

पहला :

पोशाक के संबंध में बुनियादी सिद्धांत अनुमेयता यानी जायज़ होना है, क्योंकि अल्लाह तआला फरमाता है :

هُوَ الَّذِي خَلَقَ لَكُم مَّا فِي الأَرْضِ جَمِيعاً ثُمَّ اسْتَوَى إِلَى السَّمَاء فَسَوَّاهُنَّ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ وَهُوَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ

البقرة/29

“वही है, जिसने धरती में जो कुछ है, सब तुम्हारे लिए पैदा किया, फिर आकाश की ओर रुख़ किया, तो उन्हें ठीक करके सात आकाश बना दिया और वह प्रत्येक चीज़ को ख़ूब जानने वाला है।” [सूरतुल-बक़रा : 29]

अल्लाह ने हमपर यह उपकार किया है कि उसने हमें पहनने के लिए वस्त्र दिया है, जैसा कि उसका फरमान है :

يَا بَنِي آدَمَ قَدْ أَنزَلْنَا عَلَيْكُمْ لِبَاساً يُوَارِي سَوْءَاتِكُمْ وَرِيشاً وَلِبَاسُ التَّقْوَىَ ذَلِكَ خَيْرٌ ذَلِكَ مِنْ آيَاتِ اللّهِ لَعَلَّهُمْ يَذَّكَّرُونَ

الأعراف/26

“ऐ आदम की संतान! निश्चय हमने तुमपर वस्त्र उतारा है, जो तुम्हारे गुप्तांगों को छिपाता है और शोभा भी है। और तक़वा (अल्लाह की आज्ञाकारिता) का वस्त्र सबसे अच्छा है। यह अल्लाह की निशानियों में से है, ताकि वे उपदेश ग्रहण करें। ” [सूरतुल-आराफ़ : 26]

अतः जिसने किसी विशेष प्रकार या रंग के कपड़े के हराम होने का दावा किया, उससे इसका स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए कहा जाएगा।

दूसरा :

पुरुष के तीन रंग के कपड़े पहनने के हुक्म के संबंध में विद्वानों ने मतभेद किया है :

1- शुद्ध लाल रंग जो किसी अन्य रंग के साथ मिश्रित न हो। जहाँ तक उस लाल रंग का संबंध है, जो अन्य रंगों के साथ मिलाया गया है, तो वे (विद्वान) इस बात पर सहमत हैं कि यह अनुमेय है, और इसका प्रश्न संख्या : (8341) के उत्तर में पहले उल्लेख किया जा चुका है।

2- कुसुम के रंग से रंगा हुआ कपड़ा : (कुसुम एक प्रसिद्ध पौधा है जो लाल रंग देता है।), जहाँ तक कुसुम के अलावा लाल रंग से रंगे हुए कपड़ों का सवाल है, तो यह पिछले हुक्म के अंतर्गत आता है।

3- केसर (एक पौधा जो पीला रंग देता है) से रंगा हुआ कपड़ा। जहाँ तक केसर के अलावा पीले रंग से रंगे हुए कपड़े का सवाल है, तो विद्वानों ने उसके जायज़ होने पर सहमति व्यक्त की है।

जहाँ तक कुसुम से रंगे हुए कपड़े पहनने के हुक्म का संबंध है, तो विद्वानों ने इसके बारे में तीन कथनों पर मतभेद किया है :

पहला कथन : यह हराम है, यह ज़ाहिरिय्या का दृष्टिकोण है और इसी को इब्नुल-क़य्यिम ने पसंद किया है।

उनका प्रमाण वह हदीस है जिसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 2077) ने अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन अल-आस से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझे कुसुम से रंगे हुए दो कपड़े पहने हुए देखा, तो आपने फरमाया : “ये काफ़िरों के कपड़े हैं, इसलिए उन्हें मत पहनो।” एक अन्य रिवायत के अनुसार : “रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "क्या तुम्हारी माँ ने तुम्हें ऐसा करने के लिए कहा थाॽ" मैंने कहा : क्या मैं उन्हें धो लूँॽ आपने फरमाया : "बल्कि, उन्हें जला दो।"

तथा वह हदीस जिसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 2078) ने अली रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि : “अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कुसुम से रंगे हुए कपड़े पहनने से मना किया है।”

दूसरा कथन : यह मकरूह है, यह हनफिय्या और मालिकिय्या का मत है, और यही हनाबिला के निकट अनुमोदित कथन है।

उन्होंने कहा : पिछले निषेध का यह अर्थ समझा जाएगा कि यह मकरूह है, क्योंकि बरा बिन आज़िब रज़ियल्लाहु अन्हु से प्रमाणित है कि उन्होंने कहा : (मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को एक लाल हुल्ला (जोड़ा) पहने हुए देखा।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 3551) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2337) ने रिवायत किया है।

तीसरा कथन : अनुमेयता का है, यह शाफ़ेइय्या का मत है। (अल-मजमू' 4/450, अल-मुग़नी 2/299, अल-मुहल्ला 4/69, तहज़ीब सुनन अबी दाऊद 11/117, हाशियत इब्न आबिदीन 5/228)

जो चीज़ सबसे प्रबल प्रतीत होती है - और अल्लाह ही बेहतर जानता है - यह दृष्टिकोण है कि यह हराम है, क्योंकि निषेध के संबंध में मूल सिद्धांत यह है कि वह निषिद्धता के लिए है। जहाँ तक नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लाल कपड़े पहनने का सवाल है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि उनका लाल कपड़ा कुसुम से रंगा हुआ था; बल्कि वह कुसुम के अलावा किसी अन्य चीज़ से लाल रंग में रंगा हुआ था। (देखें : मआलिम अस-सुनन, 4/179)

जहाँ तक केसरिया रंग (या भगवा रंग) से रंगे कपड़ों का संबंध है, तो विद्वानों ने इसके बारे में भी तीन रायों पर मतभेद किया है, जिनमें से सबसे सही राय वह है जिसे शाफ़ेइय्या ने अपनाया है और हनाबिला के यहाँ एक रिवायत है, कि पुरुषों के लिए केसर से रंगा हुआ कपड़ा पहनना हराम है।

इसका प्रमाण अनस रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है, कि उन्होंने कहा : “अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आदमी को अपने कपड़ों को केसरिया रंग से रंगने से मना किया है।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5846) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2101) ने रिवायत किया है।

शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह कहते हैं :

“सही दृष्टिकोण यह है कि कुसुम के रंग से रंगा हुआ कपड़ा पहनना पुरुषों के लिए हराम है, और यही हुक्म केसरिया से रंगे कपड़ों का भी है।" “अश-शर्ह अल-मुम्ते'” (2/218) से उद्धरण समाप्त हुआ।

(देखें : अत-तमहीद 2/180, अल-इनसाफ 1/481, अल-मुहल्ला 4/76, अल-मजमू' 4/449, हाशिया इब्न आबिदीन 5/228, अल-मुग़नी 2/299)

तीसरा :

इन रंगों के अलावा बाकी कपड़ों के प्रकार के बारे में विद्वानों में कोई मतभेद नहीं है, बल्कि उन्होंने उनपर सर्वसहमति का उल्लेख किया है। जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं :

नववी ने “अल-मजमू'” (4/337) में कहा :

“सफ़ेद, लाल, पीला, हरा, धारीदार और अन्य रंगों के कपड़े पहनना जायज़ है और इस बारे में कोई मतभेद नहीं है, और उनमें से कोई भी मकरूह नहीं है।" उद्धरण समाप्त हुआ।

अल-मौसूअह अल-फ़िक़्हिय्यह (6/132-136) में आया है :

"फ़ुक़हा इस बात पर सहमत हैं कि सफेद कपड़े पहनना मुस्तहब है... फ़ुक़हा इस बात पर सहमत हैं कि पीला कपड़ा पहनना जायज़ है जब तक कि वह कुसुम या केसरिया रंग से रंगा न हो।” उद्धरण समाप्त हुआ।

महिला के लिए अपनी पसंद का कोई भी रंग पहनना जायज़ है, जब तक कि वह गैर-महरम पुरुषों के सामने खुद को प्रदर्शित न करे। जिन विद्वानों ने कुसुम और केसरिया रंग से रंगे वस्त्र इत्यादि पहनने के हराम होने के बारे में बात की है, उन्होंने उसे केवल पुरुषों तक ही सीमित रखा है।

इब्ने अब्दुल-बर्र ने “अत-तमहीद” (16/123) में कहा :

“जहाँ तक ​​महिलाओं की बात है, तो विद्वानों ने उनके लिए ऐसे पीले कपड़े पहनने की अनुमति के बारे में मतभेद नहीं किया है, जिसमें लाल, हल्का लाल (या गुलाबी रंग) मिला हुआ हो।”

निष्कर्ष : यह कि हरा और बेज ऐसे रंग हैं जिन्हें पहनना जायज़ है, और उनके हराम होने के बारे में कोई चीज़ वर्णित नहीं है, सिवाय इसके कि उसका रंग कुसुम या केसर से रंगने के कारण हो। ऐसी स्थिति में केवल पुरुषों के लिए उसे पहनना हराम हो जाता है। यह विद्वानों की सबसे प्रबल राय के अनुसार है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर