हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।सर्व प्रथम :
अक़ीक़ा सुन्नत मुअक्कदा है, और उसे छोड़ देने वाले पर कोई पाप नहीं है। क्योंकि अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2842) ने अम्र बिन शुऐब से उन्हों ने अपने बाप से उन्हों ने अपने दादा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''जिस व्यक्ति के कोई बच्चा पैदा हो, तो वह उसकी ओर से अक़ीक़ा करना चाहे, तो उसे चाहिए कि बच्चे की ओर से दो बराबर बकरियाँ और बच्ची की ओर से एक बकरी अक़ीक़ा करे।'' इसे अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद में हसन कहा है।
दूसरा :
जिस व्यक्ति ने अपनी असक्षमता, या अज्ञानता के कारण अपने बच्चों का अक़ीक़ा नहीं किया है, उसके लिए मुस्तहब है कि उसके बादे अक़ीक़ा करे, भले ही अवधि लंबी हो गई हो।
''स्थायी समिति के फतावा'' (11/441) में आया है जिसका अंश यह है :
प्रश्न : एक आदमी के कई बच्चे पैदा हुए और उसने उनका अक़ीक़ा नहीं किया। क्योंकि वह गरीबी की अवस्था में था। कई सालों के बाद अल्लाह ने अपनी कृपा से उसे धनवान कर दिया। तो क्या उसके ऊपर अक़ीक़ा करना अनिवार्य है ?
उत्तर : यदि वस्तुस्थिति वैसी ही है जिसका उल्लेख किया गया है तो उसके लिए धर्म संगत यह है कि वह उनकी ओर से अक़ीक़ा करे, हर बेटे की तरफ़ से दो बकरियाँ होनी चाहिएं।'' समिति की बात समाप्त हुई।
तीसरा :
दादा (नाना) अपने पोते (नवासे) की ओर से अक़ीक़ा कर सकता है, जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने दोनों नवासों हसन और हुसैन की तरफ से अक़ीक़ा किया था। जैसा कि इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2841) और नसाई (हदीस संख्या : 4219) ने रिवायत किया है और शैख अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2466) में इसे सहीह कहा है।
इस आधार पर, यदि आप पूर्ण रूप से सुन्नत का पालन करना चाहते हैं, तो अपने पहले बेटे की ओर से एक बकरी अक़ीक़ा करें, ताकि दादाजी ने जो अक़ीक़ा किया था उसकी पूर्ति हो जाए। और अगर आप दादाजी के अक़ीक़े पर ही निर्भर करें, तो कोई आपत्ति की बात नहीं है।
चौथा :
कुछ फुक़हा (धर्म शास्त्री) इस बात की ओर गए हैं कि अक़ीक़ा अपने प्रावधान और मसरफ में क़ुर्बानी के समान है। इसलिए मुस्तहब है कि इन्सान उसके तीन भाग करे : एक तिहाई अपने लिए, एक तिहाई अपने दोस्तों के लिए और एक तिहाई गरीबों के लिए।
जबकि कुछ लोग इस बात की ओर गए हैं कि अक़ीक़ा, क़ुर्बानी के समान नहीं है। इसलिए वह उस के साथ जो चाहे करे। प्रश्न संख्या (8423) देखें।
बहरहाल, यदि आप अक़ीक़ा में से कुछ भी न निकालें, तो आपके लिए र्प्याप्त है। रही बात क़ुर्बानी की, तो जिस व्यक्ति ने उसे पूरा खा लिया, और उसमें से कुछ भी सदक़ा नहीं किया, तो वह कम से कम जिसे गोश्त का नाम दिया जाता है, उसका ज़ामिन होगा, जैसे कि एक औक़िया और उसके समान, जिसे वह खरीद कर सदक़ा करेगा। देखिए : ''कश्शाफुल क़िनाअ'' (3/23).
इस आधार पर, दूसरे बेटे की ओर से मुकम्मल अक़ीक़ा हो गया। इसी तरह तीसरे लड़के की तरफ से भी। और सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है।
हम अल्लाह तआला से प्रश्न करते हैं कि वह आपको आप के बच्चों में बरकत प्रदान करे, उन्हें आज्ञाकारिता पर आप का मददगार, तथा इस्लाम आर मुसलमा के लिए परिसंपत्ति बनाए।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।