हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से साबित है कि आप ने फरमाया : “नाक में पानी चढ़ाने में मुबालग़ा (अतिशयोक्ति) से काम लो, सिवाय इसके कि तुम रोज़े से हो।" इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 788) ने रिवायत किया है और अलबानी ने “इरवाउल-ग़लील” (हदीस संख्या: 935) में सहीह कहा है।
यह हदीस इंगित करती है कि रोज़ेदार के लिए नाक के माध्यम से अपने पेट तक पानी पहुँचाने की अनुमति नहीं है।
इसके आधार पर, यदि नाक की बूँदें इतनी कम मात्रा में हैं कि वे गले तक नहीं पहुँचती हैं, तो इसमें कोई हर्ज की बात नहीं है। लेकिन अगर वे गले तक पहुँच जाती हैं और वह गले में उनका स्वाद अनुभव करता है, तो उसका रोज़ा फासिद (अमान्य) हो जाएगा और उसपर क़ज़ा अनिवार्य है।
शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने कहा : “इसी तरह, आई ड्रॉप्स (आँख की बूँदों) और ईयर ड्रॉप्स (कान की बूँदों) से, विद्वानों की दो रायों में से सबसे सही राय के अनुसार, रोज़ेदार का रोज़ा नहीं टूटता है। लेकिन अगर वह अपने गले में बूँदों का स्वाद पाता है : तो क़ज़ा करना अधिक सावधानी (एहतियात) का पक्ष है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है। क्योंकि ये दोनों (आँख और कान) खाने और पानी के रास्ते नहीं हैं (कि जिनके माध्यम से भोजन और पेय शरीर में प्रवेश करते हों)। लेकिन जहाँ तक नाक की बूँदों का मामला है : तो इसकी अनुमति नहीं है। क्योंकि नाक एक रास्ता है (जिसके माध्यम से भोजन और पेय शरीर में प्रवेश कर सकते हैं)। इसीलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : “नाक में पानी चढ़ाने में मुबालग़ा (अतिशयोक्ति) से काम लो, सिवाय इसके कि तुम रोज़े से हो।" जो ऐसा करता है उसपर इस हदीस और इसी अर्थ की अन्य हदीसों के आधार पर क़ज़ा करना अनिवार्य है, अगर उसने अपने गले में उसक स्वाद पाया है।”
“मजमूओ फतावा अश-शैख इब्ने बाज़” (15/260, 261) से उद्धरण समाप्त हुआ।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने “फतावा रमज़ान“ (पृष्ठ 511) में फरमाया :
“नाक की बूँदें अगर पेट या गले तक पहुँच जाती हैं, तो उनसे रोज़ा टूट जाएगा। क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने लक़ीत बिन सबिरह की हदीस में फरमाया : “नाक में पानी चढ़ाने में मुबालग़ा (अतिशयोक्ति) से काम लो, सिवाय इसके कि तुम रोज़े से हो।" अतः रोज़ेदार व्यक्ति के लिए यह अनुमति नहीं है कि वह अपनी नाक में ऐसी चीज़ डाले जो उसके पेट या उसके गले तक पहुँच जाए। लेकिन जो नाक की बूँदें वहाँ तक नहीं पहुँचती हैं, तो वे रोज़े को नहीं तोड़ेंगी।
जहाँ तक आई ड्रॉप (आँख की बूँदों) और इसी के समान सुरमा लगाने, तथा इसी तरह कान की बूँदों के उपयोग करने का संबंध है, तो ये रोज़ा रखने वाले आदमी के रोज़े को नहीं तोड़ती हैं।” उद्धरण समाप्त हुआ।
इसके आधार पर, रोज़ा रखने वाले व्यक्ति को नाक की बूँदों का उपयोग नहीं करना चाहिए, सिवाय इसके कि उसके लिए उसे छोड़ना बहुत कठिन हो। तो ऐसी स्थिति में वह उनका उपयोग कर सकता है। लेकिन उसे यह सावधानी अपनानी चाहिए कि अगर उनमें से कुछ उसके गले तक पहुँच जाए, तो उसे निगलने से बचे। यदि वह उसमें से कोई चीज़ निगल जाता है, तो वह उस दिन की क़ज़ा करेगा।
अगर उसे पता है कि वह उनमें से कुछ न कुछ (बूँदें) ज़रूर निगल जाएगा, तो उसके लिए उनका उपयोग करने की अनुमति नहीं है, सिवाय इसके कि वह उस बीमारी की सीमा को पहुँच जाए, जो उसके लिए रोज़ा तोड़ना वैध कर देती है। उससे अभिप्राय ऐसी बीमारी है जिसके साथ रोज़ा रखना हानि पहुँचाता है, या उसे उसकी वजह से ऐसा कष्ट पहुँचता है जिसको सहन करना कठिन होता है। तथा प्रश्न संख्या : (50555) और (38532) देखें।
और अल्लाह तआला ही सबसे बेहतर जानता है।