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उसके एक बिदअती दोस्त ने उसके दिल में कुछ सहाबा किराम के प्रति द्वेष डाल दिया तो उसे क्या करना चाहिए ॽ

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प्रकाशन की तिथि : 23-09-2012

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प्रश्न

मेरा एक दोस्त था जो एक गुम्राह (पथ-भ्रष्ट) संप्रदाय से संबंधित था, वह मुझ से सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम के बीच होने वाले कुछ क़िस्सों के बारे में बतलाता रहता था, और अप्रत्यक्ष रूप से कहानियों के दौरान वह कुछ सहाबा की बुराई करता रहता था, और मैं उसका दिल रखने के लिए उसकी बातों को सुनता रहता था, जबकि मैं अपने दिल में यह जानता था कि वह झूठा है, किंतु समय बीतने के साथ अब मैं जब कुछ सहाबा के नामों को सुनता हूँ तो अपने दिल में उनके प्रति वह क्रोध पाता हूँ जो मैं इस गुम्राह की बातों को सुनने से पूर्व नहीं महसूस करता था। मेरा प्रश्न यह है कि : क्या मेरे लिए कोई नसीहत और सलाह है ताकि मैं सहाबा के सम्मान को बहाल कर सकूँ और उनके बारे में अपने दिल के अंदर संदेह और शंका न महसूस करूँ ॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

आप ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कुछ सहाबा के प्रति क्रोध और रोष पाने का जो उल्लेख किया है, वह इस बिदअती की संगत अपनाने के कुप्रभावों में से एक दुष्प्रभाव है, और इस से सलफ (पूर्वजों) की समझ (धर्मबोध) का पता चलता है कि उन्हों ने अह्ले बिदअत के साथ उठने बैठने से सावधान किया और डराया है, और इस बारे में कड़ा रवैया अपनाया है।

अबू क़िलाबा रहिमहुल्लाह कहा करते थे : “अपनी इच्छाओं की पैरवी करने वालों के साथ न उठो बैठो और न उनसे बहस करो, क्योंकि मैं इस बात से निश्चिंत नहीं हूँ कि वे आप को गुम्राही में डुबा देंगे, या आपके ऊपर दीन की कुछ चीज़ों को संदिग्ध कर देंगे जो उनके ऊपर संदिग्ध हो गई थीं।”

तथा अबू इसहाक़ अल-हमदानी ने फरमाया : “जिसने किसी बिद्अती का आदर सम्मान किया तो वास्तव में उसने इस्लाम को ढाने पर मदद की।”

तथा इच्छा की पैरवी करने वालों में से दो आदमी मुहम्मद बिन सीरीन के पास आए और उन दोनों ने कहा : ऐ अबू बक्र ! हम आप से हदीस बयान करते हैं, तो उन्हों ने कहा : नहीं,उन दोनों ने कहा : तो हम आपके ऊपर अल्लाह की किताब की एक आयत पढ़ते हैं, उन्हों ने कहा : नहीं, तुम मेरे पास से हट जाओ या मैं ही चला जाता हूँ, इस पर दोनों आदमी उठे और बाहर निकल गए।

तथा फुज़ैल बिन अयाज़ ने फरमाया : “किसी बिद्अती के साथ न बैठो, क्योंकि मुझे डर है कि आपके ऊपर लानत (शाप) उतरेगी।”

तथा मुहम्मद बिन अन्नज़्र अल-हारिसी ने फरमाया : “जिसने किसी बिद्अत वाले की तरफ कान लगाया, जबकि वह जानता है कि वह बिद्अत वाला है, तो उस से प्रतिरक्षा को छीन लिया जाता है और उसे उसके नफ्स के हवाले कर दिया जाता है।”

तथा इमाम अब्दुर्रज़्ज़ाक़ अस-सनआनी ने कहा : मुझसे इब्राहीम बिन अबी यह्या ने कहा : मैं देख रहा हूँ कि आपके पास मोतज़िला बहुत रहते हैं। मैं ने कहा : हाँ, और वे गुमान करते हैं कि आप उन्हीं में से हैं। उन्हों ने कहा : क्या आप मेरे साथ इस दुकान में प्रवेश न करेंगे ताकि मैं आप से बात करूँ ॽ मैं ने कहा : नहीं। उन्हों ने कहा : क्यों ॽ मैं ने कहा : क्योंकि दिल कमज़ोर है, और दीन उसके लिए नहीं है जो गालिब आ जाए।

इन आसार (यानी पूर्वज़ों के कथनों) को आजुर्री की पुस्तक “अश-शरीअह” और लालकाई की किताब “उसूलो एतिक़ादि अहलिस्सुन्नह” में देखें।

आजुर्री रहिमहुल्लाह ने अपनी किताब “अश-शरीअह” में फरमाया : “बिदअतियों और इच्छाओं के पीछे चलने वालों को छोड़ देने के वर्णन का अध्याय : हर उस व्यक्ति को जो हमारी इस पुस्तक “किताबुश शरीअह” में वर्णन की गई बातों का पालन करने वाला है उसे चाहिए कि सभी अह्लुल अह्वा (इच्छाओं और ख्वाहिशे नफ्स की पैरवी करने वाले) खवारिज, क़दरिय्यह, मुरजियह, जहमियह, प्रत्येक मोतज़िलह की ओर निस्बत रखने वाले, सभी राफिज़यों (शियाओं), सभी नवासिब, तथा हर वह व्यक्ति जिसे मुसलमानों के इमामों ने यह कहा हैकि वह बिदअती है, उसके अंदर गुम्राही की बिदअत मौजूद है, और उसके बारे में यह बात प्रमाणित है, उसे छोड़ दे। चुनाँचे उचित नहीं है कि उस से बात की जाये, उसे सलाम किया जाये, उसके साथ बैठा जाए, उसके पीछे नमाज़ पढ़ी जाए, उसकी शादी की जाए, और जो उसे जानता उसके यहाँ शादी न करे, उसके साथ साझा न करे, उसके साथ मामला न करे, उससे बहस और मुनाज़रा न करे, बल्कि उसे अपमानित करे, और जब आप उससे रास्ते में मिलें तो यदि हो सके तो दूसरा रास्ता पकड़ लें। यदि कोई कहे : तो मैं उस से बहस और तकरार क्यों न करूँ और उसकी बात का जवाब क्यों न दूँ ॽ तो उस से कहा जायेगा : आपके ऊपर इस बात से निर्भय नहीं हुआ जा सकता कि आप उस से बहस और मुनाज़रा करें और उससे ऐसी बात सुनें जो आपके दिल को खराब कर दे और वह अपने बातिल के द्वारा जिसे शैतान ने उसके लिए सँवार दिया है आपको धोखे में डाल दे और आप बर्बाद हो जायें ; सिवाय इसके कि उससे मुनाज़रा करने और उसके ऊपर हुज्जत क़ायम करने पर आप किसी बादशाह वगैरह के पास उस पर हुज्जत और तर्क स्थापित करने के लिए मजबूर हो जाएं। लेकिन जहाँ तक इसके अलावा का मामला है तो ऐसा करना सही नहीं है। और यह बात जो हम ने उल्लेख की है, मुसलमानों के पिछले इमामों के कथन है, और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत के अनुकूल है।” अंत हुआ।

तथा ज़हबी रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “अक्सर सलफ के इमाम इसी चेतावनी पर हैं, उनका विचार है कि दिल कमज़ोर होते हैं, और संदेह उचकने वाले होते हैं।”“सियर आलामुन्नुबला” (7/261) से अंत हुआ।

ऐ प्रतिष्ठित भाई आपके साथ जो बात पेश आई है वह आपकी कोताही और इस बिदअती के साथ बैठने में तसाहुल करने के कारण हुआ है, यहाँ तक कि उसने आपके सीने को पैगंबरों के बाद सबसे श्रेष्ठ लोगों के विरूध भड़का दिया, वे ऐसे लोग हैं जिन्हें अल्लाह ने अपने पैगंबर की संगत और अपने दीन के सर्मथन के लिए चयन किया था, और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु इस हालत में हुई कि आप उनसे खुश थे, अतः उनके बारे में कोई वंचित, अभागा और दुष्ट आदमी ही ऐब लगाये गा।

तब्रानी ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जिसने मेरे सहाबा को बुरा भला कहा (गाली दी) तो उस पर अल्लाह तआला, फरिश्तों और सभी लोगों की धिक्कार और फटकार है।” इसे अल्बानी ने अस-सिलसिला अस्सहीहा (हदीस संख्या : 2340) में हसन कहा है।

जहाँ तक आपके दिल की इस्लाह और सुधार का मुद्दा है तो वह अल्लाह तआला के सामने तौबा (पश्चाताप) करने, और क़ुरआन व सुन्नत और सीरत की किताबों के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करने से प्राप्त हो सकता है, आप उनके अंदर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथियों पर अल्लाह तआला की सराहना को देखेंगे, और आपको पता चलेगा कि इन लोगों ने अपने प्राणों और धनों की कितनी क़ुर्बानियाँ दीं यहाँ तक कि यह महान दीन हम तक पहुँचा।

शायद आप सहीह मुस्लिम या उसके अलावा हदीस की अन्य किताबों में सहाबा किराम के फज़ाइल (प्रतिष्ठा) के अध्याय को देखें, ताकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबा से आपका प्यार और सम्मान बढ़ जाए।

तथा संक्षिप्त किताबों में से जिसकी हम आपको अध्ययन करने की सलाह देते हैं, एक किताब शैख मुसतफा अल-अदवी की किताब “अस्सहीह अल-मुसनद मिन फज़ाइलिस्सहाबा”, और अब्दुर्रहमान राफत पाशा की किताब “सुवर मिन हयातिस्सहाबा” है।

तथा आप इस बात को जान लें कि अह्ले बिद्अत सहाबा के बारे में आमतौर पर जो बातें कहते हैं वे झूठी और गढ़ी हुई होती हैं, जो अरूचिकर असहिष्णुता, अंधे द्वेष और बीमार दिलों की पैदावार होती हैं, जिन्हों ने उनके लिए इस बात को चित्रित किया कि सहाबा ऐसे लोग हैं जो दुनिया के लिए लड़ते हैं, उसके पीछे भागते हैं, चालें चलते हैं, और षण्यंत्र रचते हैं, और जैसाकि प्राचीन कथन है : प्रति व्यक्ति अपने स्वभाव की आँख से देखता है, तो उनके द्वेषात्मक दुनिया के पीछे भागने वाले नुफूस ने उनके लिए इस बात को चित्रित किया कि सहाबा उन्हीं के समान थे, जबकि वास्तविकता यह है कि सहाबा एक अद्वितीय मॉडल, एक उत्कृष्ट पीढ़ी और चुनीदा कुलीन लोग थे, क्योंकि वे एक महान पाठशाला, शुद्ध प्रशिक्षण और मुबारक (शुभ) संगत के पैदावार थे, जिसमें उन्हों ने सर्वश्रेष्ठ सृष्टि पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के हाथ पर ज्ञान और शिष्टाचार को प्राप्त किया था।

आप इस बात को अच्छी तरह से जान लें कि इन सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम के बारे में लान तान करना उनके उस पैगंबर और ईश्दत में तान करना है जिसने उन्हें चुन लिया था, क़रीब कर लिया और विवाह द्वारा उनसे संबंध बनाया था, बल्कि अल्लाह तआला पर तान करना है जिसने इस बात को पसंद किया कि ये लोग उसके पैगंबर के संगी, उसके धर्म के वाहक और उसकी वह्य के लिखने वाले बनें।

हम अल्लाह तआला से प्रश्न करते हैं कि वह आपके सीने को खोल दे, आपके दिल को पवित्र व स्वच्छ कर दे और उसे अपने दीन, उसकी किताबों, उसके नबी और उसके सहाबा के लिए प्यार व महब्बत से भर दे।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर