रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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बीमारियों और महामारियों की रोकथाम के लिए अज़कार और दुआएँ

प्रश्न

क्या किताब या सुन्नत में "स्वाइन फ्लू" जैसी बीमारियों और महामारियों से बचाव और रोकथाम के लिए कोई दुआ वर्णित हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत ऐसी बहुत-सी प्रामाणिक हदीसों से भरी हुई है, जो मुसलमान को ऐसी दुआओं और अज़कार का जप करने पर उभारती हैं, जो उनके पढ़ने वालों को हानियों और बुराइयों से बचाती हैं। ये अपने सामान्य अर्थों में विभिन्न बीमारियों और महामारियों से पीड़ित होने से बचाव और रोकथाम को शामिल हैं, उन्हीं दुआओं में से कुछ निम्नलिखित हैं :

1- उसमान बिन अफ्फान रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना :

“जो व्यक्ति तीन बार : "बिस्मिल्लाहिल्लज़ी ला यज़ुर्रो म'अ़स्मिहि शैउन् फ़िल् अर्ज़ि वला फ़िस्समा, व हुवस्स-मीउल् अ़लीम" (मैं उस अल्लाह के नाम के द्वारा शरण चाहता हूँ जिसके नाम के साथ धरती और आकाश में कोई चीज़ नुक़सान नहीं पहुँचा सकती और वह सुनने वाला, जानने वाला है) पढ़े, तो उसपर अचानक कोई संकट नहीं आएगी यहाँ तक कि सुबह हो जाए, तथा जो व्यक्ति तीन बार इसे सुबह के समय पढ़े तो शाम होने तक उसे अचानक कोई मुसीबत नहीं पहुँचेगी।”

इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 5088) ने रिवायत किया है। तथा तिरमिज़ी (हदीस संख्या : 3388) ने इसे निम्न शब्दों के साथ रिवायत किया है और उसे सही क़रार दिया है :

“जो भी व्यक्ति प्रत्येक दिन की सुबह और प्रत्येक रात की शाम को "बिस्मिल्लाहिल्लज़ी ला यज़ुर्रो म'अ़स्मिहि शैउन् फ़िल् अर्ज़ि वला फ़िस्समा, व हुवस्समीउल् अ़लीम" (मैं उस अल्लाह के नाम के द्वारा शरण चाहता हूँ जिसके नाम के साथ धरती और आकाश में कोई चीज़ नुक़सान नहीं पहुँचा सकती और वह सुनने वाला, जानने वाला है) तीन बार पढ़े, उसे कोई चीज़ हानि नहीं पहुँचा सकती।”

2- अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : एक आदमी पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मुझे उस बिच्छू से गंभीर तकलीफ़ पहुँची है जिसने कल रात मुझे काट लिया था। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “लेकिन अगर तू शाम करते हुए यह कह लेता : अऊज़ो बि-कलिमातिल्लाहित्ताम्माति मिन् शर्रे मा खलक़" (यानी मैं अल्लाह के सम्पूर्ण कलिमात की शरण में आता हूँ उसकी पैदा की हुई समस्त चीज़ों की बुराई से), तो वह तुझे हानि नहीं पहुँचाता।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 2709) ने रिवायत किया है।

3- अब्दुल्लाह बिन ख़ुबैब रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : हम एक बारिश और घंघोर अंधेरे की रात में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को ढूंढ़ते हुए बाहर निकले ताकि आप हमें नमाज़ पढ़ाएँ। हमने आपको पाया तो आपने कहा : “क्या तुम लोगों ने नमाज़ पढ़ लीॽ तो मैंने कुछ नहीं कहा। फिर आपने कहा : “कुछ कहो।” तो मैंने कुछ नहीं कहा। फिर आपने कहा : “कुछ कहो।” तो इस पर भी मैंने कुछ नहीं कहा। आपने फिर कहा : “कुछ तो कहो।” तो मैंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मैं क्या कहूँॽ आपने फरमाया : “जब तुम शाम करो और जब तुम सुबह करो तो तीन बार (क़ुल हुवल्लाहु अहद) और मुअव्विज़ा-तैन (अर्थात् “क़ुल अऊज़ो बि-रिब्बल फलक़” और “क़ुल अऊज़ो बि-रब्बिन्नास”) कहो, वे तुम्हें हर चीज़ के लिए पर्याप्त होंगी।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 3575) और अबू दाऊद (हदीस संख्या : 5082) ने रिवायत किया है।

शैख अब्दुलअज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

जिन चीज़ों के द्वारा सुरक्षा, आफ़ियत, संतोष और हर बुराई से संरक्षण प्राप्त होता है, उनमें से यह है कि : मनुष्य सुबह और शाम को तीन बार अल्लाह की पैदा की हुई समस्त चीज़ों की बुराई से उसके संपूर्ण कलिमात (शब्दों) का शरण माँगे : अऊज़ो बि-कलिमातिल्लाहित्ताम्माति मिन् शर्रे मा खलक़" (यानी मैं अल्लाह के सम्पूर्ण कलिमात की शरण में आता हूँ उसकी पैदा की हुई समस्त चीज़ों की बुराई से)। क्योंकि ऐसी हदीसें वर्णित हैं जिनसे पता चलता है कि यह सुरक्षा और संरक्षण के कारणों में से है। इसी तरह : “सुबह और शाम को तीन बार "बिस्मिल्लाहिल्लज़ी ला यज़ुर्रो म'अ़स्मिहि शैउन् फ़िल् अर्ज़ि वला फ़िस्समा, व हुवस्समीउल् अ़लीम" (मैं उस अल्लाह के नाम के द्वारा शरण चाहता हूँ जिसके नाम के साथ धरती और आकाश में कोई चीज़ नुक़सान नहीं पहुँचा सकती और वह सुनने वाला, जानने वाला है) पढ़ना। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सूचना दी है कि जो व्यक्ति इसे तीन बार सुबह के समय पढ़ेगा तो शाम होने तक उसे कोई चीज़ हानि नहीं पहुँचाएगी, तथा जो व्यक्ति इसे तीन बार शाम को पढ़ेगा तो सुबह होने तक उसे कोई चीज़ नुक़सान नही पहुँचाएगी।”

अतः क़ुरआन और सुन्नत के ये अज़कार और शरण मांगने वाले शब्द : सब के कब हर प्रकार की बुराई से सुरक्षा और संरक्षण के कारणों में से हैं।

इसलिए प्रत्येक ईमान वाले पुरुष एवं स्त्री को चाहिए कि इन अज़कार और दुआओं को उनके समय पर पढ़ें और उनकी पाबंदी करें, तथा वे संतुष्ट रहें और अपने सर्वशक्तिमान व महिमावान पालनहार पर भरोसा रखें, जो हर चीज़ का निरीक्षक, सब-कुछ जानने वाला और हर चीज़ पर शक्तिमान है, उसके अलावा कोई पूज्य नहीं तथा उसके सिवा कोई पालनहार नहीं, उसी के हाथ में नियंत्रण, रोकथाम, हानि और लाभ है, तथा वह सर्वशक्तिमान हर चीज़ का स्वामी है।”

“फतावा शैख इब्ने बाज़” (3/454, 455)।

4- अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब सुबह और शाम करते तो इन दुआओं का पढ़ना नहीं छोड़ते थे :

“अल्लाहुम्मा इन्नी अस-अलुकल आफ़ियह, फ़िद्दुन्या वल-आख़िरह, अलाहुम्मा इन्नी अस-अलुकल अफ़्वा वल आफ़ियह फ़ी दीनी व दुन्याया व अहली व माली, अल्लहुम्मस्-तुर औराती व आमिन रौआती, अल्लहुम्मह़्-फ़ज़्नी मिन् बैने यदय्या व मिन् ख़ल्फ़ी व अन् यमीनी व अन् शिमाली व मिन् फ़ौक़ी, व अऊज़ो बि-अज़मतिका अन् उग़ताला मिन् तह़्ती”

(ऐ अल्लाह! मैं तुझसे दुनिया और आख़िरत में आफ़ियत (सुरक्षा) का सवाल करता हूँ। ऐ अल्लाह! मैं तुझसे माफ़ी और अपने दीन, अपनी दुनिया, अपने परिवार और अपने धन में तुझसे आफ़ियत (सुरक्षा) का सवाल करता हूँ। ऐ अल्लाह! मेरी पर्दे वाली चीज़ (खामियों) पर पर्दा डाल दे और मेरी घबराहटों को सुकून (शांति) में बदल दे। ऐ अल्लाह! मेरे सामने से, मेरे पीछे से, मेरे दाएँ से, मेरे बाएँ से तथा मेरे ऊपर से मेरी ह़िफ़ाज़त कर, और इस बात से मैं तेरी अ़ज़मत (माहनता) की शरण चाहता हूँ कि अचानक अपने नीचे से विनष्ट कर दिया जाऊँ।”

इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 5074) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 3871) ने रिवायत किया है, और शैख अलबानी ने "सहीह अबू दाऊद" में सहीह क़रार दिया है।

शैख अबुल-हसन अल-मुबारकपूरी रहिमहुल्लाह ने कहा :

“अल्लाहुम्मा इन्नी अस-अलुकल आफ़ियह” (ऐ अल्लाह! मैं तुझसे आफ़ियत का सवाल करता हूँ) अर्थात् धार्मिक विपत्तियों और सांसारिक कठिनाइयों से सुरक्षा। उसका एक अर्थ यह बताया गया है कि : बीमारियों और विपदाओं से सुरक्षा।  एक मतलब यह है कि : इससे पीड़ित न हों और इसपर धैर्य रखें और इसके फैसले से संतुष्ट रहें। यह “आफ़ा” शब्द से संज्ञा या क्रियार्थक संज्ञा है। “अल-क़ामूस” (शब्दकोश) में कहा गया है : आफ़ियत का मतलब है अल्लाह का अपने बंदे की रक्षा करना। “आफ़ाहुल्लाहु तआला मिनल् मक्रूहि, इफ़ाअन, व मुआफ़आतन, व आफ़ियतन” का मतलब है : अल्लाह तआला ने उसे बीमारियों और विपत्तियों से आफ़ियत और सुरक्षा प्रदान किया, जैसे कि “आ’फ़ाहो” (أعفاه) शब्द का अर्थ होता है।

“अलाहुम्मा इन्नी अस-अलुकल अफ़्वा” (ऐ अल्लाह! मैं तुझसे माफ़ी का सवाल करता हूँ) अर्थात् पापों को मिटा देना और उसपर पकड़ न करना।

“वल-आफ़ियह” (आफ़ियत) अर्थात् : दोषों से सुरक्षा।

“फी दीनी व दुन्याया” (मेरे धर्म और मेरी दुनिया में), अर्थात उन दोनों के मामलों में।”

“मिर-आतुल मफ़ातीह़ शर्ह मिशकातुल मसाबीह” (8/139)।

5- अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की एक दुआ यह थी :

“अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ो बिका मिन् ज़वालि ने’मतिक, व तहव्वुलि आफ़ियतिक, व फ़ुजाअति निक़मतिक, व जमीए सख़तिक”

(ऐ अल्लाह! मैं तेरी नेमत के छिन जाने, तेरी आफ़ियत के बदल जाने, अचानक तेरे अज़ाब के आने और तेरे हर प्रकार के क्रोध से तेरी शरण में आता हूँ।)

इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 2739) ने रिवायत किया है।

अल-मुनावी रहिमहुल्लाह ने कहा :

अत-तह्वील का मतलब है : किसी चीज़ को बदलना और उसका दूसरे से अलग हो जाना। तो गोया आपने आफ़ियत की निरंतरता का सवाल किया है, जिसका मतलब पीड़ा और बीमारी से सुरक्षा है।

“फैज़ुल क़दीर” (2/140)

तथा अल-अज़ीमाबादी रहिमहुल्लाह ने कहा :

आफ़ियत के परिवर्तन का मतल है : स्वास्थ्य का बीमारी में और समृद्धि का गरीबी में बदल जाना।

“औनुल-माबूद शर्ह सुनन अबी दाऊद” (4/283)।

6- अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम यह दुआ पढ़ा करते थे :

“अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ो बिका मिनल-बरसे, वल-जुनूने, वल-जुज़ामे, व मिन-सैयेइल-असक़ामे”

(ऐ अल्लाह! मैं बर्स, पागलपन, कोढ़ (कुष्ठ) और समस्त बुरी बीमारियों से तेरी शरण लेता हूँ)।

इसे अहमद (हदीस संख्या : 12592), अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1554) और नसाई (हदीस संख्या : 5493) ने रिवायत किया है और अलबानी ने इसे सहीह हदीस के रूप में वर्गीकृत किया है।

अत-तीबी ने कहा : “आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने सामान्य रूप से बीमारियों से शरण नहीं माँगी क्योंकि कुछ बीमारियों का प्रभाव हल्का होता है और उसपर सब्र करने का सवाब अधिक होता है, जबकि वह स्थायी (दीर्घजीवी) भी नहीं होती है, जैसे- बुखार, सिरदर्द और आँख का आना (कंजंक्टिवाइटिस, नेत्रश्लेष्मलाशोथ)। बल्कि आपने स्थायी व दीर्घजीवी बीमारी से शरण मांगी है, जो उससे पीड़ित व्यक्ति को ऐसी स्थिति में पहुँचा देती है, जिससे घनिष्ठ मित्र भी दूर भागता है, और उसके समाने दिल बहलाने वाले और दवा-दारू करने वाले कम पड़ जाते हैं, साथ ही वह कुरूपता का कारण बनती है।”

इसे अल-अज़ीमाबादी रहिमहुल्लाह ने “औनुल-मा’बूद” में उल्लेख किया है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर