गुरुवार 18 रमज़ान 1445 - 28 मार्च 2024
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पश्चिमी देशों के स्कूलो में मुसलमान बच्चों को शिक्षा दिलाना

प्रश्न

प्रशन: हमने सुना है कि काफिरों के स्कूलो में मुसलमान बच्चों को शिक्षा दिलाना हराम (वर्जित) है, मैं उन बच्चों के बारे में बात कर रहा हूँ जो यूरोप और अमेरिका (काफिर देशों) में जीवन व्यतीत करते हैं। ज्ञात रहे कि यहाँ मुसलमानों के भी स्कूल हैं लेकिन सब निजी हैं तथा उनकी क़िस्तें बहुत महंगी हैं, तो उस व्यक्ति के लिए क्या समाधान है जो मुसलमानों के स्कूलों में अपने बच्चे की क़िस्तें भुगतान करने में सक्षम नहीं हैॽ
आप से निवेदन है कि इस प्रश्न का उत्तर अवश्य दें क्योंकि यह एक बड़ी समस्या बन चुकी है, जिसका सामना बहुत सारे वे मुसलमान कर रहे हैं जो अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने की रूचि रखते हैं।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

अगर काफिरों के स्कूलों में बच्चों के शिक्षा ग्रहण करने से कोई बिगाड़ और खराबी पैदा हो जैसे उनके बिगड़ने, ईसाई धर्म अपनाने, मुसलमानों के धर्म से अरुचि, काफिरों का सम्मान और आदर करने तथा मुसलमानों और उनके विज्ञानों का अवमान करने और ऐसे ही अन्य त्रुटियों का भय हो, तो हम कहेंगे किः काफ़िरों के उन स्कूलों में उन्हें शिक्षा दिलाना हराम (निषिद्ध) है, और उनका अपने माता-पिता की प्रकृति पर बने रहना उन्हें ऐसी शिक्षा दिलाने से बेहतर है जो उनके इस्लाम धर्म से बाहर निकलने का कारण बन जाए। लेकिन अगर उनके अभिभावक (सरपरस्त) उनकी देख-रेख करें, इस्लाम पर उनका प्रशिक्षण करें और काफिरों के स्कूलो में केवल इतनी शिक्षा दिलाएं कि वे विदेशी भाषा सीख जाएं, तथा वे लिखना-पढ़ना और गणित आदि सीख लें, तो इसकी अनुमति है। लेकिन उनके अभिभावकों को चाहिए कि हर दिन अथवा हर सप्ताह उनपर ध्यान रखें, उनकी जानकारियों का निरीक्षण करें, बुरे अक़ीदों (मान्यताओं) से उन्हें सावधान करते रहें, गलत शब्दों पर उन्हें सचेत करते रहें तथा काफिरों के दुष्प्रचार से धोखा में पड़ने से चेतावनी देते रहें ताकि वे (बच्चे) दुष्ट अक़ीदों (आस्थाओं) और नास्तिक सम्प्रदायों से सुरक्षित रहें। यह सब विशेष रूप से उन लोगों के लिए है जो मुसलमानों के स्कूलों में क़िस्तों का भुगतान करने में असमर्थ हैं।

और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

स्रोत: आदरणीय शैख अब्दुल्लाह बिन जिब्रीन रहिमहुल्लाह