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इमामत का सब से अधिक हक़दार

प्रकाशन की तिथि : 23-02-2015

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प्रश्न

प्रश्न : हमारी मस्जिद में कोई स्थायी इमाम नहीं है, तो हम लोगों में से किसको आगे बढ़ायें कि वह नमाज़ में हमारी इमामत करे?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

उत्तर :

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

इस संदर्भ में बहुत सारी हदीसें आई हैं जो मुसलमानों के लिए इस बात को स्पष्ट करती हैं कि नमाज़ में उनकी इमामत के लिए योग्यतम और उसका सब से अधिक हक़दार कौन है। और इसी में से वह हदीस है जो अबू सईद ख़ुदरी रज़िअल्लाहो अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘जब तीन लोग हों तो उन में से एक व्यत्कि उन लोगों की इमामत कराए, और उनकी इमामत का सब से अधिक योग्य वह है जो उनमें सब से अच्छा कुरआन पढ़ने वाला हो।'' (मुस्लिम, हदीस संख्या : 1077)

तथा अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है : “कौम की इमामत वह कराए जो उनमें अल्लाह की किताब का सब से अधिक (अच्छा) पढ़ने वाला (ज्ञान रख़ने वाला) हो, और क़ुरआन के पठन में सबसे पुराना हो। और अगर वे क़िराअत (क़ुरआन के पठन) में समान हैं, तो उनकी इमामत वह व्यक्ति कराएगा जो हिज्रत में सब से प्रथम हो, और अगर वे लोग हिज्रत में भी समान हैं तों उनकी इमामत वह कराएगा जो उन में आयु में सब से बड़ा हो।” (मुस्लिम, हदीस संख्या : 1079)

इन हदीसों से जो पता चलता है उसका सारांश यह है कि इमामत का सब से अधिक हक़दार : वह है जो अल्लाह की किताब क़ुरआन का सब से अच्छा (या अधिक) पढ़ने वाला, नमाज़ के शास्त्र का ज्ञानी हो।

सहाबा किराम के युग में कुरआन के सब से अधिक (या अच्छा) पढ़ने वाले (सब से बड़े क़ारी) को इसलिए प्राथमिकता दी जाती थी क्योंकि वे लोग कुरआन की आयतों को सही प्रकार से पढ़ना सीख़ते थे, और उन आयतों में जो ज्ञान और कर्म (अमल) की बातें होती थीं उनको भी सीखते थे। इस तरह उन्हों ने ज्ञान और कर्म दोनों को एक साथ प्राप्त किया। उन्हों ने मात्र कुरआन को याद करने पर ही र्निभर नहीं किया, जैसाकि हमारे युग में लोगों की स्थिति है। चुनाँचे कुरआन के या उसके कुछ हिस्से के कितने हाफ़िज (कंठस्थकर्ता) ऐसे हैं जिनकी तिलावत और आवाज बहुत अच्छी होती है, लेकिन वह अपने नमाज़ के मसायल की कुछ भी जानकारी नहीं रख़ता है।

अगर वे कुरआन के पठन में समान हैं, तो उनमें सुन्नत (हदीस) का सब से अधिक ज्ञान रखने वाला इमामत का हक़दार है। अगर वे इस में भी एक समान हैं, तो सबसे पहले हिज्रत करनेवाले को इमामत के लिए प्राथमिकता दी जायेगी। और अगर वे हिज्रत में भी बराबर हैं या हिज्रत है ही नहीं, तो फिर आयु में सब से बड़े व्यक्ति को इमामत के लिए प्राथमिकता दी जायेगी। जैसाकि मालिक बिन अल-हुवैरिस की हदीस से इस बात का पता चलता है। वह कहते हैं कि “हम सब लगभग एक ही आयु के नौजवान अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए, और आप के पास बीस रात ठहरे। रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक दयालु विनम्र व्यक्ति थे। जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को लगा कि हम अपने परिवार के लिए चाह(वासना) रखते हैं या उन से मिलने के लिए लालायित हैं, तो हम से उन लोगों के बारे में पूछा जिन्हें हम अपने पीछे छोड़ कर आऐ हैं। हम ने आप को उसके बारे में बतलाया, तो आप ने फ़रमाया कि:

तुम अपने परिवार के पास वापस जाओ। उनके बीच रहो, और उन्हें शिक्षा दो और उन्हें आदेश-निर्देश दो। - तथा आप ने कुछ और चीज़ों का उल्लेख किया जिन में से कुछ तो मुझ़े याद है, और कुछ को मैं याद नहीं रखता - और उसी तरह नमाज़ पढ़ो जैसा कि तुम ने मुझे नमाज़ पढ़ते हुए देखा है। जब नमाज़ का समय हो जाए तो तुम में से कोई एक तुम्हारे लिए अज़ान दे और तुम में से सबसे बड़ा व्यक्ति तुम्हारी इमामत कराए।’’ इसे बुख़ारी (हदीस संख्या: 6705) ने रिवायत किया है।

चुनाँचे जब वे क़ुरआन के पठन, ज्ञान और हिज्रत में एक समान थे, तो आप ने उन्हें आयु में सब से बड़े व्यक्ति को प्राथमिकता देने का आदेश दिया। यदि वे लोग आयु में भी एक समान हों तो उन में जो सब से अधिक परहेज़गार होगा उसको इमामत के लिए आगे किया जाएगा, क्योंकि अल्लाह तआला का फ़रमान है :

إِنَّ أَكْرَ‌مَكُمْ عِندَ اللَّـهِ أَتْقَاكُمْ ۚ [الحجرات : 13]

''वास्तव में तुम में अल्लाह तआला के निकट सब से अधिक सम्माननीय वह है जो तुम में सब से अधिक अल्लाह तआला से डरने वाला है।” (सूरतुल हुजुरात : 13)

यदि वे इन सभी चीजों में बराबर हों, तो विवाद करने की स्थिति में उन के बीच कु़र्आ-अंदाज़ी की जाएगी।

तथा पी.एच.ड़ी. धारकों या काफ़िरों के देश में सबसे लंबे समय तक रहने वालों को ही इमामत के लिए प्राथमिकता नहीं दी जाएगी। बल्कि कु़रआन करीम को सब से अधिक याद रखनेवाले व नमाज़ के अहकाम की सब से अधिक समझ रखनेवाले को इमामत के लिए प्राथमिकता दी जाएगी। मुसलमानों के लिए सही नहीं है कि वे अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं के आधार पर इमामत के मुद्दे पर विवाद करें। बल्कि उन्हें चाहिए कि वे उसी व्यक्ति को प्राथमिकता दें जिसे शरीअत ने प्राथमिकता दी है।

और अल्लाह तआला से प्रार्थना है कि वह मुसलमानों की स्थितियों का सुधार करे।

इस्लाम प्रश्न और उत्तर

स्रोत: शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद