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हमारे यहाँ ट्यूनीशिया में ऐसी कंपनियाँ फैली हुई हैं जो खुद को वित्तीय पट्टे देने वाली कंपनियाँ कहती हैं जिनकी बुनियादी सेवाएँ उस वस्तु को खरीदने पर आधारित होती हैं जिसे ग्राहक चाहता है (जैसे कार और रियल एस्टेट...) वे इसे कंपनी के नाम पर पंजीकृत करती हैं और फिर उसे ग्राहक को पहले से सहमत राशि और एक समयबद्ध अनुबंध के साथ किराए पर देती हैं जो बिक्री पर समाप्त होता है। यह ज्ञात होना चाहिए कि वे इस पर ब्याज लगाती हैं और जिसे वस्तु किराए पर दी जाती है उसे हाथ में पैसा नहीं मिलता है; बल्कि कंपनी उस चीज़ को अपने नाम पर खरीदती है, और स्वामित्व ग्राहक को तब तक हस्तांतरित नहीं किया जाता है जब तक कि वह अंतिम क़िस्त का भुगतान नहीं कर देता है, जिसपर किराये के अनुबंध में सहमति व्यक्त की गई थी। क्या इस फॉर्मूले में लेन-देन हलाल है, या यह अंतर्निहित (प्रच्छन्न) रिबा (व्याज) के अंतर्गत आता है?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
आपने जो उल्लेख किया है वह "स्वामित्व पर समाप्त होने वाले पट्टे" (“रेंट-टू-ओन” या “लीज-टू-बाय” या “लीज-टू-ओन”) के अंतर्गत आता है, जिसके कुछ अनुमेय रूप और कुछ निषिद्ध रूप हैं।
यदि कंपनी, उदाहरण के लिए, एक विशिष्ट अवधि के लिए ग्राहक को कार किराए पर देती है, फिर कार का स्वामित्व बिना कोई नया बिक्री अनुबंध संपन्न किए स्वचालित रूप से ग्राहक को हस्तांतरित हो जाता है, इस प्रकार कि निर्धारित अवधि के अंत में किराये का अनुबंध स्वचालित रूप से बिक्री अनुबंध में बदल जाता है, तो यह एक निषिद्ध रूप है।
इसी तरह, यदि कंपनी ग्राहक के साथ एक ही समय में किराये का अनुबंध और बिक्री अनुबंध संपन्न करती है, तो यह जायज़ नहीं है; क्योंकि एक ही समय में एक वस्तु पर दो परस्पर विरोधी अनुबंध संपन्न नहीं हो सकते हैं।
जहाँ तक अनुमेय रूपों का सवाल है : तो उनमें से एक यह है कि किराये के अनुबंध के साथ बेचने का वादा किया जाए, फिर जब किराये की अवधि समाप्त हो जाए, तो दोनों पक्ष उस क़ीमत पर बिक्री का अनुबंध तैयार करें जिस पर वे दोनों सहमत होते हैं, तो यह जायज़ है।
अनुमेय रूपों में से : एक यह है कि किराये का अनुबंध, वस्तु (उदाहरण के लिए कार) को उपहार के रूप में देने के अनुबंध से जुड़ा हुआ हो, जो किराये की पूरी राशि का भुगतान किए जाने पर लंबित हो। या वह किराये की पूरी रक़म चुकाने के बाद इसे उपहार के रूप में देने के वादे के साथ जुड़ा हो, तो यह जायज़ है।
इस लेन-देन के सभी अनुमेय रूपों में यह शर्त है कि पट्टा वास्तविक होना चाहिए, बिक्री के लिए कवर-अप नहीं होना चाहिए। इसलिए पट्टे (किराए) पर दी गई वस्तु, यानी कार या अचल संपत्ति की गारंटी किराए पर देने वाली (कंपनी) को वहन करना होगा, किरायेदार को नहीं। इसी तरह, किराये के अनुबंध की अवधि के दौरान रखरखाव (मेंटेनेंस) का खर्च किराए पर देने वाले के द्वारा वहन किया जाना चाहिए, किरायेदार के द्वारा नहीं। और यह बेचने के अनुबंध के विपरीत है, क्योंकि बिक्री के अनुबंध में गारंटी और रखरखाव (मेंटेनेंस) की सभी लागत क्रेता द्वारा वहन की जाती है, क्योंकि वह मात्र विक्रय अनुबंध द्वारा ही वस्तु का मालिक हो जाता है।
“अल-मौसूअह अल-फ़िक्हिय्यह अल-कुवैतियह” (2/286) में आया है :
“किरायेदार पर संपत्ति के रखरखाव की शर्त लगाना जायज़ नहीं है, क्योंकि इससे किराए की राशि अस्पष्ट (अज्ञात) हो जाएगी। इसलिए सभी मतों की सर्वसम्मति के अनुसार, यह शर्त लगाने से किराये का अनुबंध अमान्य हो जाएगा।” उद्धरण समाप्त हुआ।
इस्लामिक फ़िक़्ह काउंसिल द्वारा ‘स्वामित्व के साथ समाप्त होने वाले किराए’ (रेंट-टू-ओन) के अनुबंधों के संबंध में एक निर्णय जारी किया गया था, जिसमें ऐसे अनुबंधों के अनुमेय और निषिद्ध रूपों पर चर्चा की गई थी। हमने प्रश्न संख्या (97625) के उत्तर में इसका उल्लेख किया है।
यदि कंपनी एक अग्रिम भुगतान निर्धारित करती है, जिसकी किराए से कटौती कर दी जाएगी, तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है, लेकिन यदि किराएदार किराये की अवधि पूरी नहीं करता है, तो कंपनी के लिए अग्रिम राशि जब्त करना जायज़ नहीं है, सिवाय केवल उस अवधि के जो किरायेदार के साथ बाक़ी रह गई है।
हमारी सलाह है कि आप कंपनी के अनुबंध की एक प्रति लें और उसे विशेषज्ञ विद्वानों को दिखाएँ।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।