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जब मैं 15 वर्ष का था तो मैं अपने पिता के साथ हज्ज के लिए गया था, और यह 14 साल पहले की बात है। हमारे “आबार अली” में एहराम बांधने और गाड़ी में सवार होने के बाद, मैंने हस्तमैथुन किया जबकि मेरा इरादा वीर्य को बाहर निकालने का नहीं था। लेकिन मामला मेरे नियंत्रण से बाहर निकल गया और वीर्यपात हो गया। और यह जानते हुए कि वीर्य का बाहर निकलना एहराम को अमान्य कर देता है जो कि हज्ज के सही होने की शर्तों में से एक है, और मेरे अपने पिता को इस घटना के बारे में न बताने की वजह से, मैंने इसे अपने आप में छिपा लिया और यह सोचा कि मेरा हज्ज बातिल (अमान्य) हो गया। अतः मैंने अपने आप से कहा कि मैं इन शा अल्लाह अगले साल इसे दोहरा लूँगा और मैंने हज्ज को पूरा करने की नीयत नहीं की। मैंने अल्पायु की वजह से बिना नीयत के हज्ज के कुछ अर्कान और वाजिबात की अदायगी की, क्योंकि मेरे पिता उनकी आदायगी कर रहे थे और मैं बिना इरादे के उनके साथ उन्हें करता जा रहा था। यहाँ तक कि अगर मेरे पिता मुझसे अनुपस्थिक रहे, तो मैंने तवाफ या सई को पूरा नहीं किया, यह समझते हुए कि मेरा हज्ज अमान्य है और मुझे उसे दोहराना ज़रूरी है। यह सब मैंने अपने अल्प ज्ञान की वजह से किया था क्योंकि मैं छोटी उम्र का था। और मुझे अब यह याद नहीं है कि हमने एहराम के समयः (इन ह-ब-सनी हाबिसुन फ-महिल्ली हैसो हबस्तनी) ‘‘यदि मुझे कोई रूकावट पेश आ गई तो मैं वहीं हलाल हो जाऊँगा जहाँ तू मुझे रोक दे।’’ कहा था, हालाँकि मुझे यह कहने की अधिक संभावना है क्योंकि मेरे पिता धर्मज्ञानी हैं और मैं नहीं समझता कि उन्होंने मुझे यह न कहलवाया हो। लेकिन इन घटनाओं पर एक लंबा समय बीत चुका है। क़ुर्बानी के दिन सिर मुंडाने और कंकड़ी मारेने के बाद, हमने एहराम खोल दिए ''और हम इफ्राद हज्ज कर रहे थे'' और हज्ज के कार्यों को पूरा करने के बाद हम अपने घर लौट आए। और आज तक मुझे हज्ज का कर्तव्य पूरा करने का अवसर नहीं मिला। जबकि उसके बाद मैंने कई बार उम्रा किया है। ज्ञात रहे कि मेरी उम्र अट्ठाईस साल से ऊपर है। सवाल यह है किः क्या यह बात सच है कि मैं उसी समय से आज तक एहराम की हालत में समझा जाऊँगा, और यह कि मुझ पर उन सभी एहराम की अवस्था में निषेध कार्यों का कफ्फारा देना (प्रायश्चित करना) अनिवार्य है जो निषेध मैंने उस अवधि में किए हैं? तथा मेरे उन उम्रों का क्या हुक्म है जो मैंने उस हज्ज के बाद अदा किए हैं? चूंकि मैंने अपनी शादी का आयोजन किया है और मैंने अभी तक अपनी के पास प्रवेश नहीं किया है, तो क्या यह सच है कि शादी का आयोजन अमान्य है क्योंकि मैं अभी भी एहराम में हूँ? मुझे आशा है कि जो कुछ मैंने ऊपर उल्लेख किया है उसके विषय में मुझे शरीयत के प्रावधान से अवगत कराएंगे। अल्लाह आपको अच्छा बदला दे।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
हस्तमैथुन करना हज्ज में और अन्य जगहों पर हराम है, और एहराम के दौरान वह अधिक गंभीर और बड़ा है। जमहूर फ़ुक़हा (ज्यादातर विद्वानों) के निकट उससे हज्ज भ्रष्ट नहीं होता है, जबकि मालिकिय्या का इसके विपरीत मत है।
और उसमें जमहूर के निकट एक दम अनिवार्य होता है, और वह हनाबिला के निकट एक ऊँट है।
लेकिन हज्ज के भ्रष्ट होने के कथन के आधार पर हज्ज को जारी रखना ज़रूरी है, और उसकी क़ज़ा अगले वर्ष में की जाएगी।
तथा देखें : अल-मौसूअतुल फ़िक़्हिय्या (2/193), अल-इंसाफ (3/224)।
सही दृष्टिकोण वह है जिसकी ओर जमहूर (अधिकतर विद्वान) गए हैं और वह हज्ज का भ्रष्ट न होना है, क्योंकि कोई ऐसा सबूत नहीं है जो उसके भ्रष्ट होने की अपेक्षा करता हो, तथा हस्तमैथुन को संभोग पर क़यास करना कमज़ोर है।
दूसरा:
आपने हज्ज को पूरा न करके एक बहुत बड़ी और गंभीर गलती की है, यहाँ तक कि उस कथन के अनुसार भी जो उसे भ्रष्ट कहता है, क्योंकि वह (भी) इसे पूरा करना आवश्यक ठहराता है। अतः यदि आपने उसे पूरा नहीं किया है, तो आप, दोनों कथनों के अनुसार, अपने एहराम पर बरकरार हैं।
अद-दरदीर ने “अश-शरहुल कबीर मअद-दसूक़ी” (2/68) में कहा है : “और उन दोनों पर संभोग करना और संभोग पूर्व क्रीणा करना हराम (निषिद्ध) है ... संभोग करना सामान्यतः हज्ज और उम्रा को भ्रष्ट (अमान्य) कर देता है, भले ही वह अनजाने में या मजबूरी में किया गया हो। उसने एहराम के बाद हज्ज के कार्यों में से कोई कार्य किया हो या न किया हो, चाहे वह बालिग हो या न हो, जैसे कि वीर्य का आह्वान करना, तो यह हराम है और यदि बाहर निकल आता है तो वह (हज्ज या उम्रा) भ्रष्ट हो जाएगा।”
फिर उन्होंने कहा : ''दाऊद को छोड़कर, विद्वानों के बीच बिना किसी मतभेद के भ्रष्ट हज्ज या उम्रा को पूरा करना वाजिब है। अतः वह सही हज्ज के समान उसपर स्थिर रहेगा, यदि उसने उसमें अरफा के वक़ूफ़ को पा लिया है। अगर उसने उसे नहीं पाया है इस प्रकार कि किसी रुकावट आदि की वजह से उससे छूट गया, तो उसके लिए उम्रा करके उससे हलाल होना (एहराम की पाबंदी से निकलना) अनिवार्य है और उसके लिए अगले साल तक अपने एहराम पर बाक़ी रहना जायज़ नहीं है। क्योंकि इसमें एक भ्रष्ट चीज़ पर स्थिर रहना पाया जाता है जबकि उससे छुटकारा पाना संभव है। यदि उसने इसे पूरा नहीं किया, चाहे उसने यह सोचा हो कि उसे समाप्त करना अनुमेय है या नहीं, तो वह एहराम पर बाक़ी है। अगरचे उसने उसके अलावा कोई दूसरा एहराम उसकी ओर से क़ज़ा की नीयत से नवीनीकृत किया हो या नहीं। और उसका दूसरा एहराम व्यर्थ है, और यदि वह अपने एहराम पर बाक़ी था और उसने अगले साल उसकी क़ज़ा की नीयत से एहराम बांधा तो वह उसके लिए क़ज़ा के रूप में पर्याप्त नहीं होगा और अगले साल उसका यह कार्य उसके भ्रष्ट हज्ज का पूरक होगा। उसकी क़ज़ा तीसरी बार में संपन्न होगी यदि वह उम्रा है, या तीसरे वर्ष में संपन्न होगी यदि वह हज्ज था।''
उन्होंने ''अश-शरहुस-सगीर मअस-सावी '' (2/95) में कहा : "(क्योंकि उसने उसे पूरा नहीं किया है) अर्थात संभोग या वीर्य पात के द्वारा भ्रष्ट हज्ज – चाहे उसने यह सोचा हो कि उसे उसके भ्रष्ट होने की वजह से समाप्त करना अनुमेय है या नहीं – (वह अपने एहराम पर बाक़ी है) जब तक भी वह जीवित है।'' उद्धरण समाप्त हुआ।
तीसरा :
जमहूर विद्वानों के कथन के अनुसारः आपका हज्ज हस्तमैथुन के कारण अमान्य नहीं हुआ, और आपको चाहिए था कि उसे पूरा करते। और यदि आपने तवाफ़े इफाज़ा नहीं किया था, या आपने हज्ज की सई नहीं की थी, या आपने उनमें से किसी एक की नीयत नहीं की थी, तो आप अपने एहराम पर बाक़ी हैं, और आपका उम्रा अदा करना आपको एहराम से हलाल नहीं कर सकता, जमहूर के निकट उम्रा व्यर्थ है, या आप उसकी वजह से हज्ज क़िरान करनेवाले बन जाएंगे क्योंकि आपने उसे हज्ज पर दाखिल किया है, जैसाकि हनफिय्या का मत है। तथा देखें: अल-मौसूअतुल फ़िक़्हिय्या (2/140), अश-शर्हुल मुम्ते (7/86).
और आपके लिए मक्का जाना और तवाफ़ और सई करना अविवार्य है, और इस तरह आप अपने हज्ज से हलाल हो जाएंगे।
और यदि आपने बिना नीयत के जमरात को कंकड़ी मारी थी, तो आपके लिए उसकी तरफ से दम अनिवार्य है, क्योंकि बिना नीयत के कंकड़ी मारना अनस्तित्व के समान है।
एहराम की अवस्था में होते हए विवाह का अनुबंध सही (मान्य) नहीं है, अतः हलाल होने के बाद उसे लौटाना ज़रूरी है।
तथा अज्ञानता के कारण, इस अवधि के दौरान आपने जो एहराम के निषेध कार्य किए हैं, वह क्षम्य है, चाहे आपको छोटा तहल्लुल प्राप्त हुआ था या नहीं।
चौथा:
आपने एहराम में प्रवेश करते समय शर्त लगाने का जो उल्लेख किया हैः तो यदि आप उसके बारे में सुनिश्चित नहीं हैं तो उसका कोई प्रभाव नहीं है; क्योंकि मूल बात उसका न होना है।
बल्कि प्रतीत यह होता है कि यहाँ शर्त लगाने का कोई लाभ नहीं है, क्योंकि यहाँ कोई ऐसी रुकावट नहीं है जो आपको हज्ज के कार्य को पूरा करने से रोकती है।
अनिवार्य यह है कि आपने जो कुछ किया है, और आपने अपनी इबादत की आवश्यक चीज़ों को न सीखकर और उनके बारे में प्रश्न न करके जो लापरवाही की है उससे अल्लाह तआला के समक्ष पश्चाताप करें।
हम अल्लाह से प्रश्न करते हैं कि वह हमसे और आपसे (सत्कर्म को) स्वीकार करे।
और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है