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इबादत के कृत्यों का क्रम क्या हैॽ क्योंकि इस्लामी प्रचार से संबंधित एक कैसिट से मुझे ज्ञात हुआ कि शैतान के कुछ प्रवेश द्वार (रास्ते) हैं, और उनमें से यह है कि वह बंदे को कुफ़्र करने पर आमादा करने से शुरूआत करता है। यदि वह इसमें असमर्थ रहता है, तो वह उसे नमाज़ न पढ़ने के लिए आमादा करता है। यदि वह इसमें सक्षम नहीं होता है, तो वह उसे ऐसी इबादतों को करने से रोकता है, जिनका सवाब सबसे अधिक है। इस तरह वह बंदे के साथ करता रहता है यहाँ तक कि वह अंतिम चरण तक पहुँच जाता है। और वह हलाल चीज़ों का बाहुल्य है, अर्थात् वह उसे फ़ुज़ूलखर्ची करने वालों में से बना देता है। इसलिए कृपया इबादत के कृत्यों के क्रम को स्पष्ट करें, क्योंकि मुझे नहीं पता कि सबसे अधिक सवाब वाले कार्य क्या हैं। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
प्रथम :
संभवतः प्रश्नकर्ता के कहने का मक़सद यह है कि उसने किसी उपदेशक से वह बात सुनी है, जो इब्नुल-क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने अपनी बहुमूल्य पुस्तक “मदारिजुस-सालिकीन” में उल्लेख की है। आप रहिमहुल्लाह ने सात घाटियों का उल्लेख किया है, जिनमें धुत्कारा हुआ शैतान आदम की संतान को पराजित करने का उत्सुक होता है और वह सबसे दुर्लभ घाटी से उसके बाद वाली घाटी की ओर उसी समय स्थानांतरित होता है, जब वह पहली घाटी तक पहुँचने से विवश हो जाता है।
इब्नुल-क़ैयिम रहिमहुल्लाह कहते हैं :
"पहली घाटी [घाटी : दुर्लभ पहाड़ी रास्ते को कहते हैं] : कुफ़्र की घाटी अर्थात् अल्लाह के इनकार और उसके धर्म और उससे मुलाक़ात (क़ियामत के दिन) के इनकार, तथा उसके पूर्ण गुणों के इनकार और हर उस चीज़ के इनकार की घाटी, जिसकी उसके रसूलों ने उसके बारे में सूचना दी है। यदि उसने मनुष्य पर इस घाटी में सफलता प्राप्त कर ली, तो उसकी दुश्मनी की आग शांत हो जाती है और वह राहत महसूस करता है। यदि मनुष्य इस घाटी में घुसने के बाद, मार्गदर्शन की अंतर्दृष्टि के द्वारा उससे बच गया और ईमान का प्रकाश उसके साथ सुरक्षित रहा, तो वह उसके पास दूसरी घाटी पर आता है :
दूसरी घाटी : बिद्अत (नवाचार) की घाटी है। या तो उस सत्य के विपरीत विश्वास रखकर, जिसके साथ अल्लाह ने अपने रसूल को भेजा और उसके साथ अपनी पुस्तक उतारी। और या तो दीन में आविष्कृत उन स्थितियों और विधियों के अनुसार इबादत करके, जिनकी अल्लाह ने अनुमति नहीं दी है, जिनमें से अल्लाह कुछ भी स्वीकार नहीं करता है ...
यदि वह इस घाटी को पार कर गया और सुन्नत की रोशनी के साथ उससे छुटकारा पा गया, और (सुन्नत की) अनुवृत्ति के तथ्य तथा सदाचारी पूर्वजों जैसे सहाबा और उनके अनुयायियों के मार्ग का अनुसरण करके उससे बच गया, और असंभव है कि बाद के युग इसमें से किसी एक प्रकार की भी अनुमति दें! यदि उन्होंने इसकी अनुमति दे दी, तो बिदअती लोग उसके लिए जाल बुनते हैं और उसे आपदाओं में पीड़ित करना चाहते हैं, और कहते हैं कि : यह बिदअती और नवाचार निकालने वाला है।
तीसरी घाटी : यह महा पापों की घाटी है, अगर वह इसमें मनुष्य पर सफल हो जाता है, तो वह उसके लिए उन्हें सुशोभित करता और उन्हें उसकी आंखों में सुंदर बना देता है ...
यदि वह अल्लाह के संरक्षण के साथ इस घाटी को पार कर लेता है, या सच्ची तौबा के साथ जो उसे उससे बचा लेती है, तो शैतान उसके पास चौथी घाटी पर आता है :
चौथी घाटी : यह छोटे पापों की घाटी है, तो वह उसे उनमें से मनों से तौल कर देता है। और कहता है : यदि तू प्रमुख पापों (बड़े-बड़े गुनाहों) से बचता है, तो कितना भी छोटे पाप करे तुझे चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। क्या तुझे नहीं पता कि छोटे-छोटे पाप, प्रमुख पापों से बचने के द्वारा और नेकियों के द्वारा मिटा दिए जाते हैंॽ तथा वह निरंतर छोटे गुनाहों का मामला उसके लिए तुच्छ और कमतर बनाता रहता है यहाँ तक कि वह उनपर हठी हो जाता है और उन्हें बार-बार करने लगता है। इस तरह, एक डरा हुआ, भयभीत व लज्जित महा पाप करने वाला व्यक्ति, उससे बेहतर स्थिति वाला होता है। क्योंकि पाप पर आग्रह और हठ दिखाना, पाप से भी बदतर और अधिक घृणित है। जबकि पश्चाताप (तौबा) और क्षमा याचना करने से कोई पाप बड़ा नहीं रह जाता (बल्कि माफ़ हो जाता है), तथा आग्रह और हठ के साथ कोई गुनाह छोटा नहीं रहता (बल्कि वह महा पाप बन जाता है)। जबकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “तुम छोटे एवं मामूली पापों से सावधान रहो (बचो)। फिर आपने इसका उदाहरण एक ऐसी क़ौम से दिया, जो एक बियाबान (निर्जन क्षेत्र) में उतरे, तो उन्हें लकड़ी (ईँधन) की ज़रूरत पड़ी। तो यह एक लकड़ी लेकर आने लगा और वह एक लकड़ी लेकर आने लगा। यहाँ तक कि उन्होंने बहुत सारी लकड़ियाँ इकट्ठा कर लीं। फिर उन्होंने आग जलाई और अपनी रोटी पकाई। तो इसी तरह, छोटे-छोटे पाप बंदे पर इकट्ठा हो जाते हैं और वह उन्हें तुच्छ समझता है यहाँ तक कि वे उसे नष्ट कर देते हैं।”
पाँचवी घाटी : यह अनुमेय चीज़ों की घाटी है, जिनके करने वाले पर कोई आपत्ति नहीं है। चुनाँचे शैतान मनुष्य को अनुमेय चीज़ों में व्यस्त करके, अधिक से अधिक आज्ञाकारिता के कृत्यों से, तथा अपनी आख़िरत के लिए पाथेय तैयार करने में परिश्रम करने से असावधान कर देता है। फिर वह उसके बारे में इस बात का इच्छुक होता है कि उसे धीरे-धीरे अनुमेय चीज़ों से सुन्नतों को छोड़ने की ओर ले जाए, फिर सुन्नतों को छोड़ने से कर्तव्यों को छोड़ने के लिए आमादा करता है। और वह कम से कम उसका जो नुक़सान करता है, वह उसे फायदों, महान लाभों और उच्च स्थानों से वंचित करना है, और अगर वह इसकी क़ीमत को जानता, तो वह अपने आपसे अल्लाह की निकटता की कोई चीज़ छूटने न देता, परंतु वह क़ीमत से अनभिज्ञ है।
यदि वह, पूर्ण अंतर्दृष्टि और मार्गदर्शक प्रकाश, तथा आज्ञाकारिता के कृत्यों और उन्हें बहुलता से करने के महत्व, बंदरगाह पर ठहरने (की अवधि) की कमी, व्यापार की महानता, खरीदार की उदारता और वह व्यापारियों को जो मुआवज़ा देता है, उसकी मात्रा की जानकारी के द्वारा इस घाटी से बच गया, चुनाँचे उसने अपने समय और अपनी साँसों को गैर-लाभ में खर्च नहीं होने दिया, तो दुश्मन उसके पास छठी घाटी पर आता है :
छठी घाटी : यह अपेक्षाकृत कम श्रेष्ठता व कम सवाब वाले आज्ञाकारिता के कामों की घाटी है। चुनाँचे शैतान उसे इन कामों का आदेश देता है और उन्हें उसकी आँखों में अच्छा बनाता और उन्हें उसके लिए सँवार कर पेश करता है, और उनमें जो श्रेष्ठता और लाभ (सवाब) होता है, उसके लिए उजागर करके दिखाता है, ताकि उसे इन कामों में व्यस्त करके इनसे बेहतर और अधिक लाभ और प्रतिफल (सवाब) वाले कामों से गाफिल कर दे। क्योंकि जब वह उसे मूल सवाब से वंचित करने से विवश हो जाता है, तो उसे उसकी पूर्णता और श्रेष्ठता और उसके उच्च श्रेणियों से वंचित करने का उत्सुक होता है। चुनाँचे वह (शैतान) उसे कम श्रेष्ठता वाले काम के द्वारा श्रेष्ठतर काम से, मरजूह के द्वारा राजेह से, अल्लाह के निकट प्रिय काम के द्वारा उसके निकट सबसे अधिक प्रिय काम से तथा पसंदीदा काम के द्वारा उसके निकट सबसे पसंदीदा काम से गाफिल कर देता है।
लेकिन इस घाटी वाले लोग हैं कहाँॽ वे दुनिया में कुछ ही लोग हैं, जबकि वह अधिकांश लोगों पर पहली घाटियों ही में विजयी हो चुका होता है।
यदि वह नेकी के कार्यों और अल्लाह के निकट उनकी श्रेणियों और श्रेष्ठता में उनके स्थानों की गहन समझ, उनकी मात्राओ के ज्ञान, तथा उनके उच्च और निम्न, उनके बेहतर और कमतर, उनके प्रधान और गौण, उनके मुख्य और अधीन के बीच अंतर के द्वारा इस घाठी से बच गया। क्योंकि कार्यों और कथनों में भी सरदार (मुख्य) और अधीन, प्रधान और गौण, तथा शीर्ष और उससे कमतर होते हैं। जैसा कि सहीह हदीस में है : (सैयिदुल इस्तिग़फ़ार (इस्तिग़फ़ार का सरदार) यह है : कि बंदा कहे : अल्लाहुम्मा अन्ता रब्बी, ला इलाहा इल्ला अन्त ...”, तथा एक दूसरी हदीस में है : “जिहाद धर्म का शिखर (शीर्ष) है।” तथा एक अन्य असर में है : “(नेक) कार्यों ने आपस में गर्व किया।” तो उनमें से प्रत्येक कार्य ने अपने पद और पुण्य का उल्लेख किया। तो सदक़ा (दान) को गर्व में सभी कार्यों पर विशिष्ट विशेषता प्राप्त थी। इस घाटी को केवल ज्ञानियों में से सच्चाई और अंतर्दृष्टि वाले ही पार कर सकते हैं, जो तौफ़ीक़ के मार्ग पर चलने वाले है, जिन्होंने कार्यों को उनके उचित स्थानों पर रखा और हर अधिकार वाले को उसका अधिकार दिया।
यदि वह इससे बच गया, तो अब कोई घाटी नहीं बचती है, जिसपर दुश्मन उसके पास आए, सिवाय एक घाटी के, जो कि आवश्यक है। और अगर कोई उससे बच सकता था, तो अल्लाह के पैगंबर व रसूल, उसके सबसे सम्मानित व प्रतिष्ठित बंदे अवश्य बच जाते। यह उसका अपने सैनिकों को मनुष्य पर, भलाई में उसके पद के अनुसार, हाथ, ज़बान और दिल के द्वारा सभी प्रकार के कष्ट के साथ, तैनात करने की घाटी है। चुनाँचे उसका पद जितना ही ऊँचा होगा, वह दुश्मन अपनी घुड़सवार सेना और अपनी पैदल सेना के साथ उसपर हमला करेगा और अपनी सेना के साथ उसके विरुद्ध मदद करेगा और अपने दल और अपने अनुयायियों को उसपर हर तरह से नियुक्त और हावी कर देगा। इस घाटी से छुटकारा पाने के लिए उसके पास कोई उपाय नहीं है। क्योंकि वह जितना ही धर्मपरायणता और अल्लाह के धर्म की ओर बुलाने तथा उसके आदेश का पालन करने में परिश्रम करेगा, वह दुश्मन मूर्खकों को उसके ख़िलाफ़ भड़काने में कठिन परिश्रम करेगा। वास्तव में, वह (मनुष्य) इस घाटी में युद्ध के उपकरण पहने होता है और अल्लाह के लिए और अल्लाह की तौफ़ीक़ (व मदद) से दुश्मन से लड़ने लगता है।” मदारिजुस-सालेकीन बैना मनाज़िल इय्याका ना’बुदू व इय्याका नस्तईन” (1/237) से उद्धरण समाप्त हुआ।
दूसरा :
जहाँ तक इबादत के कृत्यों के क्रम के बारे में सवाल का संबंध है और यह कि उनमें से सबसे बेहतर क्या है, तो इस वेबसाइट पर उसका उत्तर दिया जा चुका है और हमने यह स्पष्ट किया है वह अलग-अलग लोगों और स्थितियों के अनुसार भिन्न होता है।
हालाँकि, बंदे के लिए उसके धर्म के मामले में सबसे अधिक लाभकारी, और उसे अपने पालनहार के मार्ग के लिए सबसे अधिक मार्गदर्शन करने वाला और उसे अल्लाह की आज्ञाकारिता पर सबसे अधिक सुदृढ़ करने वाला कार्य : यह है कि वह अपने सभी मामलों में और अपनी सभी स्थितियों में नियमित रूप से अपने पालनहार का ज़िक्र करने वाला हो।
अब्दुल्लाह बिन बुस्र रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है : कि एक आदमी ने कहा : “ऐ अल्लाह के रसूल! इस्लाम के अहकाम और नियम मेरे लिए बहुत हो गए हैं। इसलिए मुझे कोई ऐसी चीज़ बताएँ, जिसे मैं मज़बूती से पकड़े रहूँ। आपने फरमाया : तुम्हारी ज़बान निरंतर अल्लाह के ज़िक्र से तर रहे।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 3375) ने रिवायत किया है और कहा है : यह हदीस हसन, ग़रीब है। और अलबानी ने इसे सहीह कहा है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।