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मैं आज रमज़ान के महीने की क़ज़ा के तौर पर रोज़ा रखे हुई थी, और मुझे इमाम सादिक़ के निमंत्रण (दावत) के लिए आमंत्रित किया गया, और मैं ने रोज़ा तोड़ दिया, तो क्या मुझे इस दिन का पुण्य मिलेगाॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम:
जिसने भी रमज़ान की क़ज़ा का रोज़ा रखा, उसके लिए विद्वानों की सर्वसहमति के साथ रोज़ा तोड़ने की अनुमति नहीं है, सिवाय इसके कि कोई ऐसा उज़्र (कारण) हो जो रमज़ान में रोज़ा तोड़ने की अनुमति देता हो जैसे की बीमारी।
इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने ''अल-मुग़्नी'' (3/160) में फरमाया : ''जिसने भी किसी कर्तव्य (अनिवार्य कार्य) में प्रवेश किया, जैसे कि रमज़ान की क़ज़ा, या निश्चित अथवा सामान्य मन्नत (नज़्र), या कफ़्फ़ारा का रोज़ा; तो उसके लिए उससे निकलना जायज़ नहीं है ... और अल्लाह का शुक्र है कि इस बारे में कोई मतभेद नहीं है।'' उद्धरण समाप्त हुआ।
यह बात कोई उज़्र (वैध बहाना) नहीं है कि आदमी को उसके भाई ने खाने के लिए आमंत्रित किया है। ऐसी स्थिति में नफ़्ल रोज़े में रोज़ा तोड़ना अनुमेय है – जैसाकि आगे आ रहा है – लेकिन अनिवार्य रोज़े, जैसे रमज़ान, या उसकी क़ज़ा, या नज़्र (मन्नत) के रोज़े में अनुमेय नहीं है।
इसलिए आपके लिए अनिवार्य है कि इस रोज़ा तोड़ने पर अल्लाह तआला के समक्ष तौबा (पश्चाताप) करें; ना कि एक अनिवार्य रोज़े को तोड़ने से पुण्य प्राप्ति की प्रतीक्षा की जाए?! लेकिन अधिकतम जिसने ऐसा किया है यह है कि वह अपनी अज्ञानता के कारण क्षम्य हो जाएगा।
दूसरा:
जिसने नफ्ल रोज़ा रखा और फिर खाने के लिए आमंत्रित किया गया, तो उसके लिए इस बात की अनुमति है कि वह चाहे तो रोज़ा तोड़ दे, या निमंत्रण देनेवाले के लिए दुआ करने के साथ खाने-पीने से रुक जाए। क्योंकि नफ़्ल रोज़ा रखनेवाला स्वयं का अमीर होता है। क्योंकि इमाम अहमद (हदीस संख्याः 26353) ने उम्मे हानी रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनके पास प्रवेश किया, तो एक पेय मंगाया और आप ने उसे पी लिया, फिर आप ने उसे उन्हें दे दिया तो उन्हों ने उसे पी लिया, फिर उन्होंने कहाः ऐ अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, मैं रोज़े से थी। तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : "नफ़्ल रोज़ा रखने वाला व्यक्ति स्वयं का अमीर है, अगर वह चाहे तो रोज़ा रखे, और यदि वह चाहे तो रोज़ा तोड़ दे।" और अल्बानी ने सहीहुल-जामे (हदीस संख्याः 3854) में इसे सहीह कहा है।
इमाम मुस्लिम (हदीस संख्याः 1154) ने विश्वासियों की माँ आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : “एक दिन पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मेरे पास आए और कहा : “क्या तुम्हारे पास कुछ है? हमने कहा : नहीं। आप ने फरमाया : तब मैं रोज़े से हूँ। फिर एक दूसरे दिन आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमारे पास आए तो हमने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, हमें “हैस” (खजूर, पनीर (या सत्तू) और घी मिलाकर बनाया हुआ खाना) उपहार में दिया गया है? तो आप ने कहाः मुझे वह दिखाओ। क्योंकि मैंने रोज़े की अवस्था में सुबह की है, तो आप ने उसे खाया।”
तथा मुस्लिम (हदीस संख्याः 1431) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : "अगर तुम में से किसी को आमंत्रित किया जाए, तो उसे स्वीकार करना चाहिए। फिर अगर वह रोज़े से है तो उसे दुआ करना चाहिए, और अगर वह रोज़े से नहीं है, तो उसे खाना खाना चाहिए।”
अल-माज़ुरी रहिमहुल्लाह कहते हैं : आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमानः “अगर वह रोज़े से है तो उसे दुआ करना चाहिए” अर्थात उसे खाने का निमंत्रण देनेवालों के लिए क्षमा और बरकत की दुआ करनी चाहिए।”
“शर्ह मुस्लिम” (2/154) से उद्धरण समाप्त हुआ।
तथा बिद्अत वाले लोगों की संगति और उनके निमंत्रण को स्वीकार करने के बारे में : प्रश्न संख्याः (102885) का उत्तर देखें।
तीसरा :
रही बात उस चीज़ की जो आपने जाफर सादिक़ के बारे में उल्लेख की है, तो उनसे उसकी प्रामाणिकता ज्ञात नहीं है। और किसी भी स्थिति में यह गुमान नहीं किया जा सकता कि उनका मतलब अनिवार्य रोज़े से था। तथा राफ़िज़ा (शियाओं) की लिखित किताबों का तथा जो कुछ वे अह्ले-बैत के बारे में वर्णन करते हैं उन सब का कोई एतिबार नहीं है। क्योंकि वे – राफ़िज़ा – सुन्नत व आसार का सबसे कम ज्ञान रखने वाले हैं, और जाफर सादिक़ के बारे में जो कुछ वे बयान करते हैं उनमें से अधिकांश चीज़ें उनपर मिथ्यारोप होती हैं।
तथा अह्ले सुन्नत (सुन्नियों) के साथ उनका मतभेद, धर्म के मूल सिद्धांतों में एक महान मतभेद है, तथा प्रश्न संख्याः (113676), प्रश्न संख्या: (21500), का उत्तर देखें।
और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।