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दुकान का मालिक थोक विक्रेताओं से फोन पर सोना खरीदता है। वे क़ीमत पर सहमत हो जाते हैं और सामान खरीदार के पास प्रस्तुत होता है, फिर वह बैंक के माध्यम से उसे क़ीमत ट्रांसफर करता है और व्यापारी उसे सोना भेजता है। तो क्या यह जायज़ हैॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
नकदी के बदले सोना बेचने के लिए 'तक़ाबुज़' (आदान-प्रदान) शर्त है, अर्थात् अनुबंध की बैठक ही में खरीदार सोना प्राप्त कर ले और विक्रेता मूल्य प्राप्त कर ले, और उन दोनों के लिए 'तक़ाबुज़' (आदान-प्रदान) से पहले अलग होना जायज़ नहीं है। तथा प्रश्न संख्या (22869) देखें।
इसके आधार पर, उक्त तरीक़े से सोना खरीदना जायज़ नहीं है।
'स्थायी समिति' से कुछ इसी तरह के (मुद्दे के) बारे में पूछा गया, तो उन्होंने उत्तर दिया :
“क़ीमत और खरीदे जा रहे सामान के आदान-प्रदान को अनुबंध की बैठक से विलंब करने के कारण यह अनुबंध (लेनदेन) जायज़ नहीं है, चाहे वे दोनों सोना हों या एक सोना हो और दूसरा चाँदी हो, या उन दोनों का स्थान ले चुका मुद्रा (बैंक नोट) हो। इसे 'रिबा अन-नसा' (उधार का व्याज) कहा जाता है और यह हराम है। बल्कि, क़ीमत मौजूद होने के समय बिक्री फिर से शुरू की जाएगी, उस क़ीमत के अनुसार जिसपर वे अनुबंध के समय सहमत होते हैं, तथा वह हाथों हाथ हो।” उद्धरण समाप्त हुआ।
“फ़तावा अल-लजनह अद-दाईमह” (13/475)।