रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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रमज़ान के बाद नसीहत

प्रश्न

रमज़ान के बाद क्या नसीहत है ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

आपका क्या विचार है,क्या रोज़ेदार रमज़ान के बाद उसी स्थिति पर बाक़ी रहेगा जिस पर वह रमज़ान के महीने में था, या उसकी स्थिति उस स्त्री के समान होगी जिस ने अपना सूत मज़बूत कातने के बाद उसे तोड़ कर टुकड़े टुकड़े कर डाला ? तथा क्या यह व्यक्ति जो रमज़ान में रोज़ा रखने वाला,क़ुरआन की तिलावत और पाठ करने वाला,सदक़ा देने वाला,अल्लाह के रास्ते में खर्च करने वाला,रात को क़ियामुल्लैल करने (तहज्जुद की नमाज़ पढ़ने) वाला और उसमें दुआ करने वाला था, क्या वह रमज़ान के बाद इसी हालत पर बाक़ी रहेगा या वह दूसरे रास्ते अर्थात् शैतान के रास्ते पर चलेगा,चुनाँचे वह गुनाह और पाप तथा अति दयावान और कृपालु अल्लाह को क्रोधित करने वाली चीज़ों को करेगा ?

मुसलमान व्यक्ति का रमज़ान के बाद नेक कामों पर बाक़ी रहना और धैर्यपूर्वक उन पर जमे रहना उसके उपकारी और दानशील पालनहार के पास उसकी नेकियों के स्वीकृत (क़बूल) होने की निशानी और लक्षण है,और उसका रमज़ान के बाद नेक कार्य को छोड़ देना और शैतान के रास्तों पर चलना,तुच्छता,हनन,अपमान,नीचपन,कमीनापनऔर विफलता का प्रमाण है।

और जैसाकि हसन बसरी का कहना है : "वे लोग उसकी (अर्थात! अल्लाह की) दृष्टि से गिर गये तो उन्हों ने उसकी अवज्ञा और अवहेलना की,यदि वे अल्लाह को प्रिय होते तो वह उन्हें सुरक्षित रखता।"

और जब बंदा अल्लाह की दृष्टि से गिर जाता है तो कोई भी उसे सम्मान नहीं दे सकता। अल्लाह तआला का फरमान है : "और अल्लाह जिसे अपमानित कर दे, उसे कोई इज़्ज़त देने वाला नहीं है।" (सूरतुल हज्ज : 18)

आश्चर्य की बात यह है कि आप कुछ लोगों को रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने वालों, क़ियामुल्लैल करने (अर्थात् तहज्जुद पढ़ने) वालों,अल्लाह के रास्ते में खर्च करने वालों,क्षमा याचना करने वालों और सर्व संसार के पालनहार का आज्ञापालन करने वालों में से पायें गे,फिर रमज़ान का महीना समाप्त होते ही उसका स्वभाव पूर्व दशा पर पलट आता है और उसका व्यवहार अपने पालनहार के साथ बुरा हो जाता है। चुनाँचे आप उसे नमाज़ को छोड़ देने वाला,भलाई और नेकी के कामों को त्यागने और उस से दूर रहने वाला तथा गुनाहों और पापों का करने वाला पायेंगे। अत: वह महा पवित्र,प्रत्येक बुराईयों और कमियों से पाक और महिमावान बादशाह की आज्ञाकारिता से दूर रहते हुए विभिन्न प्रकार की बुराईयों और पापों के द्वारा सर्वशक्तिमान अल्लाह की अवज्ञा और अवहेलना करता है।

अल्लाह की क़सम! ऐसे लोग कितने बुरे हैं जो अल्लाह को केवल रमज़ान में पहचानते हैं।

मुसलमान को चाहिए कि पश्चाताप (तौबा) करने,अल्लाह की तरफ पलटने,आज्ञाकारिता पर सदा सुदृढ़ रहने,और हर समय एवं हर घड़ी अल्लाह के निरीक्षण को ध्यान में रखने के लिए रमज़ान को एक नया पृष्ठ बनाये। अत: मुसलमान को चाहिए कि रमज़ान के बाद सर्वथा नेकियों और आज्ञाकारिता पर सुदृढ़ रहे,बुराईयों और पापों से दूर रहे जिस प्रकार कि वह रमज़ान के महीने में ऐसे कार्यों में लगा हुआ था जो उसे सृष्ट के पालनहार से निकट कर देने वाले थे। अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है : "तथा -ऐ पैगंबर- आप दिन के दोनों छोर में (अर्थात सुब्ह व शाम) और रात के कुछ घंटों में नमाज़ स्थापित करें,नि:सन्देह अच्छे कर्म बुरे कर्मों को मिटा देते हैं,यह नसीहत (सदुपदेश) है नसीहत पकड़ने वालों के लिए।" (सूरत हूद : 114)

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "बुराई के पीछे (पश्चात) ही अच्छा काम करो,वह उस बुराई को मिटा देगा,तथा लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करो।"

तथा इस में कोई संदेह नहीं कि वह कर्तव्य जिसके लिए अल्लाह तआला ने मानव जाति को पैदा किया है वही सब से सर्वोच्च कर्तव्य और सब से महान उद्देश्य है,और वह कर्तव्य और उद्देश्य यह है कि हम सुचारू रूप से अल्लाह सर्वशक्तिमान की उपासना और आराधना करें,और यह उद्देश्य रमज़ान के महीने में सुंदरता के साथ प्राप्त हुआ,चुनाँचे हम ने लोगों को देखा कि वे अकेले और समूहों में अल्लाह तआला के घरों की तरफ जाते थे,तथा हम ने उन्हें देखा कि वे फर्ज़नमाज़ों को उनके ठीक समय पर अदा करने के लिए उत्सुक होते थे,तथा सदक़ात व खैरात करने के उत्सुक होते थे,भलाई और नेक कामों में बढ़ चढ़ कर भाग लेते थे और उसमें जल्दी करते थे,और वास्तव में इसी के अंदर प्रतियोगियों को एक दूसरे से आगे बढ़ने का प्रयत्न करना चाहिए, और अल्लाह तआला की इच्छा से वे लोग अज्र व सवाब के भागी हैं।किन्तु मुद्दा यह बाक़ी रह जाता है कि कौन है जिसे अल्लाह तआला दुनिया के जीवन में और परलोक में सुदृढ़ और पक्की बात के द्वारा सुदृढ़ और स्थिर रखता है? चुनांचे जिसे अल्लाह तआला रमज़ान के बाद नेक कामों पर सुदृढ़ रखता है,तो अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है : "समस्त स्वच्छ कलिमात उसी की तरफ चढ़ते हैं और नेक कार्य उसको बुलंद करता है।" (सूरत फातिर : 10)

इसमें कोई शक नहीं कि अच्छा कर्म अल्लाह की निकटता के सब से महान कार्यों में से है जिसके द्वारा बंदा हर ज़माने में अल्लाह तआला की निकटता प्राप्त करता है। फिर यह बात भी है कि रमज़ान के महीने का पालनहार (परमेश्वर) ही जुमादा,शाबान,मुहर्रम,सफर और अन्य सभी महीनों का भी परमेश्वर है। क्योंकि अल्लाह तआला ने हमारे लिये जिस इबादत (उपासना) को निर्धारित किया है उसका प्रतिनिधित्व पाँच स्तंभों के द्वारा होता है जिनमें से एक रोज़ा है जो कि एक निश्चित समय के साथ सीमित है और वह समाप्त हो चुका।अब अन्य स्तंभ यानी हज्ज,नमाज़और ज़कात बाक़ी रहते हैं जिनके बारे में हम अल्लाह सर्वशक्तिमान के सामने ज़िम्मेदार हैं,और यह ज़रूरी है कि हम उन्हें उसी ढंग से अंजाम दें जो अल्लाह तआला को प्रसन्न करने वाला हो,और हम इसके लिए प्रयत्न और चेष्टा करें ताकि उस उद्देश्य को प्राप्त कर सकें जिसके कारण अल्लाह तआला ने हमें पैदा किया है। अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है : "मैं ने जिन्नात और मनुष्य को मात्र इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी उपासना करें।" (सूरतुज़्ज़ारियत : 56)

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने सहाबा (साथियों) को भलाई के कामों में एक दूसरे से आगे बढ़ने और जल्दी करने की तरफ मार्गदर्शन किया है,आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "कभी कभार एक दिर्हम (चाँदी का सिक्का) एक दीनार (सोने का सिक्का) से आगे बढ़ जाता है,और सब से श्रेष्ठ सदक़ा (दान) वह है जो मालदारी की हालत में हो।" तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने स्पष्ट कर दिया है कि जो आदमी इस हालत में खैरात (दान) करता है कि वह स्वस्थ होता है और कंजूसी करने वाला होता (अर्थात अपने माल को रोके रहने का लालसी होता) है,मालदारी की आशा रखता है और गरीबी से डरता है,तो इस अवस्था में उसका सदक़ा व खैरात (दान) अल्लाह सर्वशक्तिमान के निकट तराज़ू में भारी होता है और अच्छे कर्मों में से होता है। किन्तु जो व्यक्ति आजकल करता रहता हैऔर जब उसे बीमारी घेर लेती है तो कहता है कि फलाँ व्यक्ति के लिए इतना (धन) है,और फलाँ आदमी को (मेरे धन से) इतना दे दो,हालांकि इस अवस्था में वह (धन) फलाँ और फलाँ के लिए ही होने वाला है,तो अल्लाह की पनाह! इस बात का भय है कि उसके कर्म को रद्द कर दिया जाये और वह नष्ट हो जाये। अल्लाह तआला का फरमान है : "अल्लाह तआला केवल उन्ही लोगों की तौबा स्वीकार करता है जो मूर्खता में कोई बुराई कर बैठें फिर शीघ्र ही उस से बाज़ आ जायें और तौबा करें,तो अल्लाह तआला भी उनकी तौबा क़बूल करता है,अल्लाह तआला सर्वज्ञानी और सर्वबुद्धिमान (सर्वतत्वदर्शी)है। उनकी तौबा नहीं जो बुराईयाँ करते चले जायें यहाँ तक कि जब उन में से किसी के पास मौत आ जाये तो कहे कि मैं ने अब तौबा की। और उनकी तौबा भी क़बूल नहीं जो कुफ्र (नास्तिकता) पर ही मर जायें। यही लोग हैं जिनके लिए हम ने कष्टदायक यातना तैयार कर रखा है।"(सूरतुन्निसा : 17-18)

अत: संयमी (परहेज़गार) और पवित्र (शुद्ध) मुसलमान पर अनिवार्य है कि वह सर्वशक्तिमान अल्लाह का भय रखे,और उसके आज्ञापालन का लालायित हो और सदा उससे डरता रहे,और हमेशा और हर समय भलाई,अल्लाह की तरफ दावत,भलाई का आदेश देने और बुराई से रोकने का प्रयास करता रहे। क्योंकि इस संसार में मोमिन व्यक्ति के दिन और रात कोश हैं,इसलिए उसे देखना चाहिए कि वह उनके अंदर क्या जमा करता है ?यदि उसने उसके अंदर भलाई जमा किया है तो वह उसके लिए क़ियामत के दिन उसके पालनहार के पास गवाही देगी,और यदि उसने उसके अलावा कोई चीज़ जमा की है तो वह उसके लिए मुसीबत (वबाले जान) बन जायेगी। हम अल्लाह तआला से प्रार्थना करते हैं कि मुझे और आप को घाटे से मुक्ति प्रदान करे।

इसके अलावा विद्वानों (रहिमहुमुल्लाह) ने कहा है : नेक कार्य की स्वीकृति के संकेतों में से यह है कि अल्लाह तआला एक नेकी के बाद दूसरी नेकी की तौफीक़ प्रदान करता है,चुनाँचे नेकी अपनी बहन (अर्थात दूसरी नेकी) को निमंत्रण देती है,और बुराई अपनी बहन (अन्य बुराई) को बुलाती है,और अल्लाह तआला ही शरण देने वाला है। यदि अल्लाह तआला बंदे से रमज़ान को स्वीकार करले और वह इस स्कूल से लाभान्वित हो और अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की आज्ञाकारिता पर जम जाये,तो वह उन लोगों के क़ाफिले में होगा जो अल्लाह के धर्म पर जम गये और उसका आज्ञापालन किया,अल्लाह सर्वशक्तिमान फरमाता है : "जिन लोगों ने कहा हमारा पालनहार अल्लाह है फिर उसी पर सुदृढ़ रहे,उनके पास फरिश्ते (यह कहते हुए) आते हैं कि तुम कुछ भी भय और शोक ग्रस्त न हो, और उस स्वर्ग की शुभ सूचना सुन लो जिसका तुम वादा दिए गए हो। हम दुनिया के जीवन में भी तुम्हारे साथी थे और परलोक में भी रहेंगे। जिस चीज़ को तुम्हारा दिल चाहे और जो कुछ तुम मांगो सब तुम्हारे लिए जन्नत में मौजूद है।" (सूरत-फ़ुस्सलित : 30-31)

तथा अल्लाह तआला का फरमान है :

"जो व्यक्ति अल्लाह तआला से और उसके पैगंबर से और मुसलमानों से दोस्ती करे,तो वह यक़ीन माने कि अल्लाह तआला की जमाअत ही गालिब रहेगी।" (सूरतुल माइदा : 56)

तथा अल्लाह तआला का फरमान है :

"नि:संदेह जिन लोगों ने कहा कि हमारा पालनहार अल्लाह है फिर उस पर जमे रहे तो उन पर न तो कोई भय होगा और न ही वे शोक ग्रस्त होंगे।" (सूरतुल अहक़ाफ : 13)

अत: इस्तिक़ामत का कारवां एक रमज़ान से दूसरे रमज़ान तक निरंतर जारी है,क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "एक नमाज़ से दूसरी नमाज़,एक रमज़ान से दूसरा रमज़ान और एक हज्ज से दूसरा हज्ज उनके बीच होने वाले पापों का कफ्फारा (प्रायश्चित) है,यदि बड़े गुनाहों से बचा जाये।"

तथा अल्लाह तआला का फरमान है :

"यदि तुम उन बड़े गुनाहों से बचते रहो जिनसे तुम को रोका जाता है तो हम तुम्हारे (छोटे) गुनाहों को क्षमा कर देंगे और सम्मान व श्रेष्ठता के स्थान में प्रवेष करायेंगे।" (सूरतुन निसा : 31)

अत: मोमिन (विश्वासी) को चाहिए कि वह अपने जीवन को समझने की शुरूआत से लेकर अपने अंतिम सांस छोड़ने तक इस्तिक़ामत (धर्म पर स्थिरता और सुदृढ़ता) की सवारी और नजात की नौका में सवार रहे।चुनाँचे वह "ला इलाहा इल्लल्लाह" की छत्रछाया में चलता रहे और अल्लाह सर्वशक्तिमान की नेमतों से छाया प्राप्त करता है।क्योंकि मात्र यही धर्म सत्य है,और जिस अस्तित्व ने रमज़ान के महीने में इस्तिक़ामत के द्वारा हमारे ऊपर उपकार किया है,वही अल्लाह सुब्हानहु व तआला हमे अपनी बहुतायत निविदा,असीम इनाम और असंख्य उपहार और अनुकम्पा से सम्मानित करता है ताकि हम रमज़ान के महीने के बाद भी क़ियामुल्लैल और इबादतों पर निरंतर जमे रहें। अत: ऐ मेरे प्यारे भाई ! जबकि अल्लाह तआला ने एतिकाफ के द्वारा आप पर उपकार किया है,अल्लाह तआला ने सदक़ा व खै़रात के द्वारा आप पर उपकार किया है,अल्लाह तआला ने रोज़े के द्वारा आप पर एहसान किया है तथा दुआ और उसकी स्वीकृति के द्वारा आप पर उपकार किया है,तो मेरे भाई आप इन नेकियों और इस तौफीक़ की पूरी देख-रेख और निरीक्षण करना न भूलें। इसलिए आप इन्हें पापों और बुराईयों तथा बुरे कार्यों के द्वारा नष्ट न करें। आप इस बात के इच्छुक बनें कि अपने रास्ते में भलाई और सौभाग्य का निर्माण करें और इस्तिक़ामत के मार्ग पर चलें, आप का उद्देश्य अल्लाह,उसके पैगंबर और आख़िरत की जीवन हो,और उस समय आप से कहा जायेगा : उस स्वर्ग की शुभ सूचना स्वीकार कर जिसकी चौड़ाई आकाश और पृथ्वी है, जो परहेज़गारों (ईश्भय रखने वालों) के लिए तैयार की गई है, तथा आप (उस समय) अल्लाह तआला की तरफ से बुलाने वाले का उत्तर देने वाले हो जायें गे कि : ऐ भलाई के चाहने वाले (इच्छुक)!आगे बढ़ क्योंकि अल्लाह तआला के जहन्नम से मुक्त किए गये बंदे हैं, और बुराई के इच्छुक! रूक जा। तथा आप नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस फरमान का भी उत्तर देने वाला हो जायेंगे कि : "जिस व्यक्ति ने ईमान के साथ और अज्र व सवाब की नीयत से रमज़ान का रोज़ा रखा उसके पिछले पाप क्षमा कर दिये जायेंगे,और जिस व्यक्ति ने ईमान के साथ और अज्र व सवाब की नीयत से लैलतुल क़द्र (शबे क़द्र) का क़ियाम किया,तो उसके पिछले गुनाह माफ कर दिये जायेंगे।"

मैं उस अल्लाह से प्रार्थना करता हूँ जिसने हमारे ऊपर और आप के ऊपर रोज़े,एतिकाफ,उम्रा और सदक़ात व खैरात के द्वारा उपकार किया है कि वह हमारे ऊपर हिदायत (मार्गदर्शन),तक़्वा (परहेज़गारी),अमल की स्वीकृति,तथा अच्छे कार्यों पर निरंतर स्थिर रहने और उन पर सुदृढ़ रहने के द्वारा उपकार करे। क्योंकि अच्छे कामों पर निरंतर स्थिरता अल्लाह तआला की निकटता के महान कार्यों में से है। इसीलिए जब एक आदमी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और आप से कहा कि मुझे वसीयत कीजिए तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: तुम कहो कि मैं अल्लाह पर ईमान लाया,फिर इस्तिक़ामत अपनाओ (अर्थात जम जाओ)।" (सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम)

और अहमद की एक रिवायत के शब्द में है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "तुम कहो कि मैं अल्लाह पर ईमान लाया, फिर जम जाओ। उसने कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर ! इसे तो सभी लोग कहते हैं। आप ने फरमाया कि तुम से पहले कुछ लोगों ने यह कहा,फिर उस पर सुदृढ़ नहीं रहे।"

अत: मुसलमानों के लिए शोभित है कि वे अल्लाह तआला की आज्ञाकारिता पर निरंतर सुदृढ़ और स्थिर रहें। (जैसा कि अल्लाह तआला का फरमान है) :

"ईमान वालों को अल्लाह तआला पक्की बात के साथ सुदृढ़ रखता है,दुनिया के जीवन में भी और परलोक में भी,हाँ अत्याचारों और अन्याय करने वालों को अल्लाह तआला भटका देता है। और अल्लाह जो चाहे कर गुज़रता है।" (सूरत इब्राहीम : 27)

क्योंकि जो आदमी अल्लाह तआला की आज्ञाकारिता पर सुदृढ़ रहता है,वास्तव में वही अपनी उस प्रार्थना के अनुसार कार्य करने वाला है जिसे वह दिन में 25 से अधिक बार दोहराता है कि "हमें सीधा मार्ग दर्शा।" इसे हम सूरतुल फातिहा में कहते हैं। ऐसा क्यों है कि हम उसे ज़ुबान से कहते हैं और इस बात पर दृढ़ विश्वास रखते हैं कि यदि हम अल्लाह तआला की आज्ञाकारिता पर सुदृढ और जमे रहे तो अल्लाह तआला हमें क्षमा कर देगा,किन्तु हम व्यवहारिक रूप से उसे लागू करने से लापरवाही और काहिली करते हैं। अत: हमें अल्लाह तआला से डरना चाहिए और इसे अपने कर्म,कथन और विश्वास के द्वारा लागू करना चाहिए। तथा हमें "इहदिनस्सिरातल मुस्तक़ीम" (हमें सीधा रास्ता दिखा) के मार्ग पर कोशिश और संघर्षकरना चाहिए और "इहदिनस्सिरातल मुस्तक़ीम" (हमें सीधा रास्ता दिखा) के छायें में "इय्याका ना’बुदो व इय्याका नस्तईन" (हम तेरी ही उपासना करते हैं और तुझ ही से सहायता मांगते हैं) के बीच चलने वालों के पथ पर होना चाहिए जो ऐसी जन्नतों की तरफ ले जाने वाला है जिसकी चौड़ाई आकाश और धरती है और जिसकी कुंजी "ला इलाहा इल्लल्लाह" है। मैं अल्लाह तआला से प्रार्थना करता हूँ कि वह हमारा और आपका अंत भलाई पर करे।

रमज़ान के महीने के समाप्त होने के बाद लोग कई क़िस्मों में विभाजित हो जाते हैं,जिनमें सब से प्रमुख दो वर्ग हैं :

प्रथम : एक वर्ग ऐसा है जिसे आप रमज़ान के महीने में आज्ञाकारिता और नेकी के कार्यों में संघर्षकरने वाला देखते हैं।चुनांचे जब आपकी दृष्टि उसके ऊपर पड़ती है तो वह सज्दे में होता है,या क़ियाम में होता है,या क़ुर्आन की तिलावत करने वाला होता है,या रो रहा होता है यहाँ तक कि वह आपको सलफ सालेहीन के कुछ इबादतगुज़ारों की याद दिलाता है,यहाँ तक कि आप उसके कड़े परिश्रम और गतिविधि के कारण उसके ऊपर तरस खाते हैं। किन्तु रमज़ान का पवित्र महीना समाप्त होते ही वह लापरवाही और गुनाहों की तरफ लौट आता है,मानो कि वह आज्ञाकारिता के कारण बंदी बना हुआ था। अत: वह शह्वतों (इच्छाओं),गफलतों और त्रुटियों पर टूट पड़ता है यह समझते हुए कि ये उसकी चिंताओं और गमों (पीड़ाओं) का मोचन कर देंगे,जबकि यह मिस्कीन इस बात को भुला देता है कि अवज्ञा और पाप विनाश का कारण हैं। क्योंकि पाप और गुनाह घाव हैं,और कभी कभार घाव जान लेवा साबित होता है (आदमी की हत्या पर निष्कर्षित होता है)। चुनांचे कितने पाप ऐसे हैं जिन्हों ने बंदे को मृत्यु के समय "ला इलाहा इल्लल्लाह" कहने से वंचित कर दिया।

इस प्रकार वह पूरे एक महीना आस्था,क़ुर्आन और अन्य नेकियों के साथ बिताने के बाद पीछे की ओर पलट जाता है,वास्तव में अल्लाह की तौफीक़ के बिना किसी भलाई के करने की ताक़त है न किसी बुराई से बचने का सामर्थ्य है।और यही लोग मौसम के पुजारी हैं जो अल्लाह तआला को केवल मौसमों में या संकट या परेशानी के समय ही पहचानते हैं। उनकी आज्ञाकारिता पीठ फेर कर चली गई,आह! यह उनकी कितनी बुरी रीति है। नमाज़ी ने एक मक़सद के लिए नमाज़ पढ़ी जिसे वह तलाश कर रहा था। जब मक़सद पूरा हो गया तो उसने नमाज़ पढ़ी न रोजा रखा।

तो भला बतलाईये कि पूरे एक महीने उपासना करने का क्या फाइदा है यदि वह उसके बाद अपमानजनक और शर्मनाक व्यवहार की तरफ वापस पलट जाता है ?

दूसरा वर्ग : ऐसे लोगों का है जो रमज़ान की जुदाई पर दुखी होते हैं क्योंकि उन्हों ने स्वास्थ्य और कुशलता की मिठास को चख लिया तो धैर्य की कड़वाहट उन पर आसान हो गई,इसलिए कि उन्हों ने अपने अस्तित्व की वास्तविकता,उसकी कमज़ोरी और अपने स्वामी और उसकी आज्ञाकारिता की ओर अपनी आवश्यकता को पहचान लिया,क्योंकि उन्हों ने वास्तव में रोज़ा रखा और रूचि के साथ क़ियामुल्लैल किया। अत: रमज़ान के रूख्सत होने पर उनकी आंखों से आँसू प्रवाह करते हैं और उनके दिल कांपते हैं,उनमें गुनाहों का क़ैदी इस बात की आशा करता है कि उसे छोड़ दिया जाये और नरक से मुक्त कर दिया जाये,और उन लोगों के क़ाफिले से जा मिले जिनके अमल को स्वीकार कर लिया गया है। मेरे भाई ! आप अपने दिल से पूछिए कि आप दोनों वर्गों में से किस वर्ग में हैं ?

अल्लाह की क़सम! क्या ये दोनों बराबर हो सकते हैं ?सर्व प्रशंसा अल्लाह के लिए है। बल्कि अधिकांश लोग नहीं जानते। व्याख्याकारों ने अल्लाह तआला के कथन कि : "हर व्यक्ति अपने ही तरीक़ा पर कार्य करता है।" (सूरतुल इस्रा : 84)की व्याख्या में कहा है कि : हर मनुष्य अपने उसी व्यवहार के समान कार्य करता है जिसका वह आदी हो चुका है। इसमें काफिर की बुराई और मोमिन (विश्वासी) की प्रशंसा की गई है।

मेरे भाई! आप इस बात को अच्छी तरह जान लें कि अल्लाह के निकट सब से अधिक प्रिय काम वह है जिसे हमेशा (बराबर) किया जाये, भले ही वह थोड़ा हो।अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं : "ऐ लोगो,तुम वे काम करो जिसकी तुम ताक़त रखते हो,क्योंकि अल्लाह नहीं उकताता यहाँ तक कि तुम उकता जाओ,और अल्लाह तआला के निकट सबसे अधिक पसंदीदा काम वह है जिसे हमेशा किया जाये यद्यपि वह थोड़ा ही हो,और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आल (वंश) जब कोई काम करते थे तो उसे साबित और स्थिर रखते थे।" अर्थात् उसे हमेशा जारी रखते थे। (सहीह मुस्लिम)

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रश्न किया गया कि अल्लाह के निकट कौन सा अमल सब से प्यारा है ? तो आप ने फरमाया : "हमेशा और बराबर किया जाने वाला अमल यद्यपि वह थोड़ा ही क्यों न हो।"

तथा आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से पूछा गया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अमल कैसा था ? क्या आप कुछ दिन विशिष्ट करते थे ?तो उन्हों ने उत्तर दिया : नहीं,आप का अमल हमेशा जारी रहता था,और तुम में से कौन आदमी उतनी शक्ति रखता है जितनी शक्ति अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रखते थे।

चुनाँचे इबादतों की वैधता उनकी शर्तों के साथ है जैसेकि अल्लाह का ज़िक्र करना,हज्ज औरउम्रातथा उनके नवाफिल (अर्थात ऐच्छिक हज्ज व उम्रा),भलाई का आदेश करना और बुराई से मनाही करना,ज्ञान की प्राप्ति,जिहाद और इनके अतिरिक्त अन्य कार्य। अत: आप अपनी यथा शक्ति इबादत को हमेशा और बराबर करने के लालायित बनें।

तथा अल्लाह तआला हमारे पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम,आपकी संतान और आपके सहाबा पर दया और शांति अवतरित करे।

स्रोत: पत्रिका अद्दावा अंक 1774, पृष्ठ 12