हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
“जब वह हज्ज की इबादत में कहता है : “लब्बैका हज्जा, लब्बैका उम्रह, तो यह नीयत का आरंभ करने के अध्याय से नहीं है, क्योंकि वह इस से पहले ही नीयत कर चुका है। इसीलिए यह कहना धर्म संगत नहीं है कि : अल्लाहुम्मा इन्नी उरीदुल उम्रह (ऐ अल्लाह ! मैं उम्रा करना चाहता हूँ) या अल्लाहुम्मा इन्नी उरीदुल हज्जा (ऐ अल्लाह ! मैं हज्ज करना चाहता हूँ), बल्कि आप अपने दिल से नीयत करें और अपनी ज़ुबान से तल्बियह पुकारें। जहाँ तक हज्ज व उम्रा के अलावा में नीयत को बोलने (अर्थात ज़ुबान से नीयत करने) की बात है तो यह बात सर्व ज्ञात है कि यह धर्म संगत नहीं है, अतः मनुष्य के लिए सुन्न्त का तरीक़ा यह नहीं है कि जब वह वुज़ू करने का इरादा करे तो कहे : अल्लाहुम्मा इन्नी उरीदो अन अतवज्ज़ा, अल्लाहुम्मा इन्नी नवैतो अन अतवज़्ज़ा या नमाज़ के लिए कहे : अल्लाहुम्मा उरीदो अन उसल्लिया, अल्लाहुम्मा इन्नी नवैतो अन उसल्लिया। ये सभी चीज़ें अवैध हैं, और सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शन और तरीक़ा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का तरीक़ा है।” अंत हुआ