हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
क़ुरआन पढ़ने की हालत में सबसे अच्छा यह है कि आदमी वह करे जिससे उसका खुशूअ (विनम्रता) बढ़ जाता है। यदि उसका खुशूअ अपनी स्मृति से पढ़ने से बढ़ता है तो वही सबसे अच्छा है, और अगर उसका खुशूअ मुसहफ़ से या मोबाइल से पढ़ने से बढ़ता है तो वही सर्वश्रेष्ठ है।
इमाम नववी रहिमहुल्लाह अपनी पुस्तक ''अल-अज़कार'' (पृष्ठः 90-91) में फरमाते हैं :
"मुसहफ़ से क़ुरआन पढ़ना अपनी याददाश्त (स्मृति) से पढ़ने की तुलना में बेहतर है। हमारे साथियों ने इसी तरह कहा है, और पूर्वजों - रज़ियल्लाहु अन्हुम - से यही प्रसिद्ध है। लेकिन सामान्यता ऐसा नहीं है, बल्कि अपनी स्मृति से पढ़नेवाले को मनन चिंतन, विचार और हृदय और दृष्टि का ध्यान उससे कहीं अधिक प्राप्त होता है जो मुसहफ़ से पढ़ने से प्राप्त होता है, तो याददाश्त से पढ़ना अफ़ज़ल है। और यदि दोनों बराबर हों तो मुसहफ़ से पढ़ना बेहतर है, पूर्वजों का यही आशय है।''
तथा पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कुछ ज़ईफ़ हदीसें रिवायत की गई हैं जिनसे मुसहफ़ (क़ुरआन) में देखने की फज़ीलत (प्रतिष्ठा) के विषय में दलील पकड़ना सही नहीं है।
शैख़ इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गा : क्या क़ुरआन को मुसहफ़ से पढ़ने और मुंह-ज़बानी (स्मृति से) पढ़ने के बीच अज्र व सवाब में कोई अंतर हैॽ अगर मैं क़ुरआन को मुसहफ़ से पढ़ूँ तो आंखों से पढ़नी काफी है या दोनों होंठों को हिलाना अनिवार्य हैॽ तथा क्या दोनों होंठों को हिलाना पर्याप्त है या आवाज़ निकालना ज़रूरी हैॽ
तो उन्होंने उत्तर दिया : "मैं कोई ऐसा प्रमाण नहीं जानता जो मुसहफ़ में पढ़ने और स्मरण शक्ति से पढ़ने के बीच अंतर करता है, बल्कि धर्मसंगत मनन चिंतन करना और दिल को उपस्थित रखना है, चाहे वह मुसहफ़ से पढ़े या स्मृति से। तथा क़िराअत (पढ़ना) उसी समय होता है जब उसे सुना जाए। आँखों से देखना या ज़बान से उच्चारण किए बिना क़िराअत को मन में उपस्थित रखना पर्याप्त नहीं है। पाठक के लिए सुन्नत यह है कि वह उच्चारण करे और मनन चिंतन करे, जैसाकि अल्लाह सर्वशक्तिमान का कथन है :
كِتَابٌ أَنْزَلْنَاهُ إِلَيْكَ مُبَارَكٌ لِيَدَّبَّرُوا آيَاتِهِ وَلِيَتَذَكَّرَ أُولُو الْأَلْبَابِ سورة ص: 29
''यह बर्कत वाली किताब है जिसे हम ने आप की ओर इसलिए अवतरित किया है ताकि लोग इसकी आयतों पर सोच-विचार करें और ताकि बुद्धि और समझवाले इससे शिक्षा ग्रहण करें।” (सूरत साद्: 29)
तथा अल्लाह सर्वशक्तिमान ने एक दूसरे स्थान पर फरमाया :
أَفَلَا يَتَدَبَّرُونَ الْقُرْآنَ أَمْ عَلَى قُلُوبٍ أَقْفَالُهَا سورة محمد: 24
''क्या ये क़ुरआन में सोच-विचार नहीं करतेॽ या उनके दिलों पर ताले लगे हैंॽ” (सूरत मुहम्मदः 24)
अगर याद दाश्त से क़ुरआन पढ़ना उसके दिल के अधिक ख़ुशूअ (विनम्रता) का कारण है और क़ुरआन में विचार करने के अधिक निकट है, तो यह सर्वश्रेष्ठ है। और अगर क़ुरआन को मुसहफ़ से देखकर पढ़ना उसके दिल के अधिक खुशूअ का कारण और उसके मनन चिंतन के लिए अधिक परिपूर्ण है तो यही बेहतर होगा। और अल्लाह तआला ही तौफीक़ प्रदान करने वाला है।''
"मजमूओ फतावा शैख इब्ने बाज़ (24/352)" से समाप्त हुआ।
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि अगर आप ने मोबाइल से विनम्रता और मनन चिंतन के साथ क़ुरआन पढ़ा है, तो इन शा अल्लाह आपका सवाब मुसहफ में देखकर पढ़ने से कम नहीं होगा। क्योंकि आधार पूर्णतया दिल के उपस्थित होने और क़ुरआन से लाभ अर्जित करने पर है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।