शुक्रवार 21 जुमादा-1 1446 - 22 नवंबर 2024
हिन्दी

सदक़ा-ए-जारिया से अभिप्राय क्या हैॽ

प्रश्न

मैं सदक़ा-ए-जारिया (निरंतर जारी रहने वाले दान) के कुछ सरल उदाहरण जानना चाहता हूँ, तथा मैं रमज़ान में या अन्य दिनों में अपना पैसा किस चीज़ में खर्च करूँ : रोज़ेदारों को इफ़्तार करवाने, या अनाथ की किफ़ालत (भरण-पोषण), या वृद्धाश्रम की देखभाल करने मेंॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सदक़ा-ए-जारिया से अभिप्राय वक़्फ़ है। और यह अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''जब मनुष्य की मृत्यु हो जाती है, तो तीन चीज़ों को छोड़कर उसके कार्य का क्रम समाप्त हो जाता है : जारी रहने वाला सदक़ा (दान), या लाभकारी ज्ञान (ऐसा ज्ञान जिससे उसकी मृत्यु के बाद लाभ उठाया जाए), या नेक संतान जो उसके लिए दुआ करे।'' इसे मुस्लिम (हदीस संख्याः 1631) ने रिवायत किया है।

नववी रहिमहुल्लाह ने इस हदीस की व्याख्या करते हुए कहा :

“सदक़ा-ए-जारिया से अभिप्राय वक़्फ़ है।”

“शर्ह मुस्लिम” (11/85)।

खतीब अश-शरबीनी रहिमहुल्लाह ने कहा :

“विद्वानों के निकट सदक़ा-ए-जारिया से अभिप्राय वक़्फ़ है, जैसा कि अर-राफेई ने कहा है। क्योंकि उसके अलावा अन्य सदक़ात (दान), जारी रहने वाले दान नहीं हैं।”

“मुग़नी अल-मुहताज” (3/522-523)।

सदक़ा-ए-जारिया वह दान है जिसका सवाब इनसान की मृत्यु के बाद भी जारी रहता है। परंतु वह दान जिसका सवाब जारी नहीं रहता है - जैसे कि गरीबों को भोजन दान करना - तो वह सदक़ा-ए-जारिया नहीं है।

इसके आधार पर : रोज़ेदारों को इफ़्तार करवाना, अनाथों की किफ़ालत करना और बुजुर्गों की देखभाल करना - भले ही ये सब दान के अंतर्गत आते हैं - लेकिन ये जारी रहने वाले दान (सदक़ा-ए-जारिया) नहीं हैं। आप अनाथालय या बुजुर्गों के लिए आश्रम निर्माण में भाग ले सकते हैं। इस तरह यह एक सदक़ा-ए-जारिया हो जाएगा, जिसका सवाब आपको तब तक मिलेगा, जब तक उस घर का उपयोग किया जाता रहेगा।

सदक़ा-ए-जारिया के प्रकार और उसके उदाहरण बहुत हैं, जिनमें : मस्जिदें बनाना, पेड़ लगाना, कुएँ खोदना, मुसहफ़ (क़ुरआन) छपवाना और उनका वितरण करना, तथा किताबें छापकर, कैसिटें रिकॉर्ड करके और उनका वितरण करके उपयोगी ज्ञान का प्रसार करना शामिल है।

अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मोमिन को उसकी मृत्यु के बाद उसके कार्यों और नेकियों में से जिन चीज़ों का सवाब पहुँचता रहता है, वे यह हैं : ज्ञान जो उसने सिखाया और फैलाया, नेक संतान जो वह छोड़ गया, मुसह़फ़ (क़ुरआन) जो वह विरासत में छोड़ गया, या वह कोई मस्जिद बना गया, या मुसाफ़िरों के लिए कोई घर (मुसाफ़िरख़ाना) बनवा दिया, या कोई नहर जारी कर गया, या अपने स्वास्थ्य और अपने जीवन के दौरान अपनी संपत्ति से कोई दान कर गया, तो उसका सवाब उसकी मृत्यु के बाद भी उसे मिलता रहेगा।” इसे इब्ने माजा (हदीस संख्या : 242) ने रिवायत किया है और अल-मुंज़िरी ने “अत-तर्ग़ीब वत-तरहीब” (1/78) में इसकी इसनाद को हसन कहा है। तथा अलबानी ने इसे “सहीह इब्ने माजा” में हसन कहा है।

मुसलमान को चाहिए कि वह अपने सदक़ात व ख़ैरात को विभिन्न जगहों में ख़र्च करे, ताकि उसे प्रत्येक आज्ञाकारिता वाले लोगों के साथ प्रतिफल का हिस्सा मिले। अतः आप अपने धन का एक हिस्सा रोज़ेदारों को इफ़्तार करवाने के लिए, एक दूसरा हिस्सा अनाथों की किफ़ालत के लिएस, एक तीसरा हिस्सा वृद्धाश्रम के लिए नियत कर दें, और एक चौथा हिस्सा मस्जिद के निर्माण में योगदान कर दें, तथा एक पाँचवाँ भाग किताबों और मुसहफ़ (क़ुरआन की प्रतियाँ) वितरित करने के लिए निर्धारित कर दें  ... और इसी तरह।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है। 

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर