हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
जो भी मुसलमान अत्याचार व अन्याय से क़त्ल कर दिया जाता है उसके लिए परलोक में शहीद का सवाब है। रही बात दुनिया की : तो उसे स्नान कराया जायेगा और उस पर जनाज़ा की नमाज़ पढ़ी जायेगी, उसके साथ युद्ध में शहीद होने वाले व्यक्ति के समान व्यवहार नहीं किया जायेगा।
''अल-मौसूअतुल फिक्हियया'' (29/174) में आया हैः
''धर्म शास्त्री जन इस बात की ओर गए हैं कि अत्याचार का वधित व्यक्ति पर यह हुक्म लगाने में असर होता है कि वह शहीद है, और इससे अभ्रिप्राय काफिरों के साथ लड़ाई में शहीद होनेवाले के अलावा है। अत्याचार से क़त्ल किए जाने के रूपों में से : चोरों, बाग़ियों और डाकुओं के द्वारा क़त्ल कर दिया गया व्यक्ति, या जो व्यक्ति अपने आपकी रक्षा करते हुए, या अपने धन, अपने रक्त, या अपने धर्म, या अपने परिवार, या मुसलमानों, या ज़िम्मियों की रक्षा करते हुए क़त्ल कर दिया गया। या जो किसी अत्याचार के विरूद्ध संघर्ष करते हुए क़त्ल कर दिया गया, या जो जेल में मृत्यु पा गया जबकि उसे अन्याय से कारावास दिया गया था।
तथा उन्हों ने इस बाबत मतभेद किया है कि उसे दुनिया व आखिरत का शहीद समझा जायेगा, या केवल आखिरत का शहीद समझा जायेगा ?
जमहूर फुक़हा (यानी धर्म शास्त्रियों की बहुमत) इस बात की ओर गए है कि जिसे अत्याचार से क़त्ल किया गया है : उसे केवल आखिरत का शहीद समझा जायेगा, उसके लिए आखिरत में काफिरों के साथ लड़ाई में शहीद होने वाले का हुक्म (यानी सवाब) होगा। उसे दुनिया में शहीद का हुक्म नहीं हासिल होगा। अतः उसे स्नान कराया जायेगा, और उस पर जनाज़ा की नमाज़ पढ़ी जायेगी।'' अंत हुआ।
तथा शहीदों का सवाब प्राप्त करने के लिए यह शर्त नहीं कि मज़लूम (उत्पीड़ित) उन हमलावरों का सामना करे। यदि उन्हों ने उसे अचानक गफलत में क़त्ल कर दिया तो : वह इन शा अल्लह शहीदों के सवाब का हक़दार होगा।
इसका एक प्रमाण यह है कि : उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु को अबू लूलुआ मजूसी ने छुरा घोंप दिया जबकि आप मुसलमानों को फज्र की नमाज़ पढ़ा रहे थे, तथा उसमान बिन अफ्फान रज़ियल्लाहु अन्हु को खारिजियों ने अत्याचार करते हुए क़त्ल कर दिया, जबकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन दोनों सहाबियों को शहीद कहा है।
अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने फरमाया : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ‘उहुद’ पहाड़ पर चढ़े और आपके साथ अबू बक्र, उमर और उसमान भी थे, तो वह उनके साथ हिलने लगा, तो आप ने उस पर अपना पैर मारा और फरमाया : ''उहुद ठहर जा, तेरे ऊपर एक ईश्दूत, या एक सिद्दीक़ या दो शहीद हैं।'' इसे बुखारी (हदीस संख्या : 3483) ने रिवायत किया है।
शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
''ईश्दूत'' : आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं, ''सिद्दीक़'' : अबू बक्र, और ''दो शहीद'' : उमर और उसमान रज़ियल्लाहु अन्हुमा हैं और वे दोनों शहीद होकर क़त्ल किए गए। जहाँ तक उमर का संबंध है तो वह फज्र की नमाज़ के लिए मुसलमानों की इमामत कराते हुए क़त्ल किए गए, उन्हें मेहराब में क़त्ल किया गया, जबकि उसमान को उनके घर में क़त्ल किया गया। अल्लाह उन दोनों से राज़ी हो, और हमें तथा नेक मुसलमानों को सदा रहने वाली नेमत के घर में उन दोनों के साथ मिलाए।'' अंत हुआ।
''शरह रियाज़ुस्सालेहीन'' (4/129,130).
दूसरा :
जहाँ तक गज़्ज़ा में हमारे भाईयों का संबंध है जिनके ऊपर उनके घर विध्वंस हो गए, तो हम आशा करते हैं कि वे शहीद होंगे, इसके कई कारण हैं :
1- वे लोग मज़लूम मारे गए हैं।
2- नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''विध्वंस से मरनेवाला शहीद है।'' इसे बुखारी (हदीस संख्या : 2674) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1914) ने रिवायत किया।
3- वे लोग काफिर योद्धाओं के हाथों मारे गए हैं।
श्री अब्दुर्रहमान बिन गरमान बिन अब्दुल्लाह हफिज़हुल्लाह कहते हैं :
''हनफिया और हनाबिला की बहुमत, तथा मालिकिया का सही मत, और शाफेइया के निकट एक कथन, इस बात की ओर गए हैं : युद्ध के अलावा में योद्धा काफिर के द्वारा हत्या कर दिया गया व्यक्ति : सामान्य रूप से शहीद है, वह हत्या चाहे किसी भी रूप से हो, चाहे वह गाफिल हो या सोया हुआ हो, वह उससे लड़ाई कर रहा हो या उससे लड़ाई न करता हो ....
मुझे लगता है - जबकि अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है - कि जमहूर विद्धानों का कथन राजेह है, क्योंकि युद्ध में हत्या की शर्त लगाने पर कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। संक्षेप के साथ ‘‘अहकामुश शहीद फिल फिक़्हिल इस्लामी (103-106) से अंत हुआ।
हम अल्लाह से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें शहीद के रूप में स्वीकार करे, और आपदा का चक्र ज़बर्दस्ती कब्ज़ा करने वाले यहूदियों पर डाल दे।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।