शुक्रवार 21 जुमादा-1 1446 - 22 नवंबर 2024
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घर के खर्च पर विवाद कर रहे जोड़े के लिए सलाह

प्रश्न

प्रश्नकर्ता महिला कहती है कि: वह कई वर्षों से सऊदी अरब में एक शिक्षिका है, उसकी शादी हो चुकी है और उसका पति उसके साथ आया है जबकि इससे पहले उसका भाई उसके साथ रहता था। वह कहती है: अल्लाह का शुक्र है कि उसने हमें एक बच्चा प्रदान किया। मेरे पति ने अपनी शैक्षिक योग्यता के अनुसार काम खोजना शुरू कर किया, परन्तु वह सफल नहीं हुए। अंत में वह पूर्वी क्षेत्र में स्थित एक दुकान में काम करने लगे जहाँ हम रहते हैं। फिर घर के खर्च पर विवाद शुरू हो गया। मेरा प्रश्न यह है किः क्या घर का खर्च उठाना मेरी ज़िम्मेदारी बनती हैॽ क्योंकि मेरे पति का कहना है कि : “यदि तुम घर के खर्च का भुगतान नहीं करोगी तो तुम बिल्कुल काम नहीं कर सकती हो।” क्या मेरे उस वेतन में मेरे पति का हक़ है जो मैं अपने काम के बदले में पाती हूँॽ यदि मेरे ऊपर घर का खर्च सहन करना अनिवार्य है तो फिर मेरे और मेरे पति के बीच का अनुपात क्या है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

“इस मुद्दे में अर्थात ऐसे पति और पत्नी जो काम करने और जीविका की खोज के लिए प्रदेश में रह रहे हैं उनके बीच घर के खर्च के मुद्दे में विवाद के बजाय आपस में समझौता होना चाहिए। रही यह बात कि घर के खर्च को उठाना किसपर अनिवार्य हैॽ तो इसका मामला अलग है और इसमें कुछ विस्तार है।

यदि पति ने आपसे यह शर्त रखी थी कि घर के खर्च की ज़िम्मेदारी आप दोनों की होगी अन्यथा वह आपको काम करने की अनुमति नहीं देगा, तो यह बात ज्ञात होना चाहिए की मुसलमान अपनी तय की हुई शर्तों पर क़ायम रहेंगे। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं : “मुसलमान अपनी शर्तों पर क़ायम रहेंगे सिवाय इसके कि वह शर्त किसी हलाल को हराम और किसी हराम को हलाल ठहरा दे।” तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “सबसे अधिक पूरी किए जाने के योग्य वे शर्तें हैं जिनके द्वारा तुमने गुप्तांगों को हलाल किया है।” (अर्थात निकाह की शर्तें). इसलिए यदि आप दोनों के बीच कुछ शर्तें थीं, तो आप दोनों अपनी शर्तों पर क़ायम रहेंगे।

लेकिन यदि आप दोनों के बीच कोई शर्त तय नहीं हुई थी, तो सभी प्रकार के खर्च की ज़िम्मेदारी पति के ऊपर है और पत्नी के ऊपर घर के खर्च की ज़िम्मेदारी नहीं है। अतः पति ही खर्च करेगा, जैसा कि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया है :

 لِيُنفِقْ ذُو سَعَةٍ مِنْ سَعَتِهِ  

[الطلاق: 7]

“सामर्थ्य वाले को अपने सामर्थ्य के अनुसार ख़र्च करना चाहिए।” (सूरतुत्-तलाक़ : 7)

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “और नियमानुसार तुम (अर्थात पति) पर उन (अर्थात पत्नी) के खाने और वस्त्र की ज़िम्मेदारी है।”

अतः खर्च की ज़िम्मेदारी पति पर है; वही घर की आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा, और घर के मामले उसके और उसकी पत्नी के और उसके बच्चों के ज़िम्मे हैं, जबकि पत्नी की पेंशन उसी के लिए है और अपने वेतन की वही मालिक है; क्योंकि वह उसे अपने काम एवं मेहनत के बदले में पाती है। और जब पति ने उससे विवाह किया तो उसने पत्नी पर यह शर्त नहीं लगाई थी कि उसके ऊपर खर्च की या आधे खर्च की या इसी तरह की कोई अन्य ज़िम्मेदारी होगी। किंतु यदि उसने किसी शर्त के साथ विवाह किया था, तो मामला उसी तरह होगा जैसा ऊपर उल्लेख किया गया किः मुसलमान अपनी शर्तों पर क़ायम रहेंगे।

लेकिन यदि उसने इस स्थिति में विवाह किया था कि आप शिक्षिका हैं और यह कि आप काम कर रही है और वह इससे संतुष्ट था, तो उसके लिए ज़रूरी है कि वह इसका अनुपालन करे और उसके प्रति प्रतिबद्ध हो और इसमें से किसी भी चीज़ में विववाद न करे। तथा आपको मिलने वाला वेतन आप ही का हो, सिवाय इसके कि आप अपनी खुशी से अपने वेतन में से कुछ राशि की उसे अनुमति दे दें। क्योंकि अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है:

 فَإِنْ طِبْنَ لَكُمْ عَنْ شَيْءٍ مِنْهُ نَفْساً فَكُلُوهُ هَنِيئاً مَرِيئاً  

[النساء: 4].

“फिर यदि वे अपनी ख़ुशी से उसमें से कुछ तुम्हारे लिए छोड़ दें तो तुम उसे अच्छा और पाक समझकर खाओ।” (सूरतुन्-निसा : 4)

आपके लिए उचित है कि अपने वेतन का कुछ हिस्सा छोड़ दें। तथा मैं आपको सलाह देता हूँ कि आप वेतन का कुछ हिस्सा अपने पति के लिए छोड़ दिया करें, ताकि उसका दिल प्रसन्न हो जाए और विवाद का समाधान हो जाए तथा समस्या दूर हो जाए, ताकि आप दोनों सुख, शांति एवं संतोष के साथ जीवन यापन करें। अतः आप दोनों अपने बीच किसी एक चीज़ पर समझौता कर लें, जैसे- वेतन का आधा या एक तिहाई या एक चौथाई या इसी तरह कोई और अंश, ताकि समस्याएँ समाप्त हो जाएँ और विवाद की जगह सद्भाव, सुख और संतोष ग्रहण कर लें।

यदि यह सम्भव नहीं है, तो अदालत का सहारा लेने और इस मामले को उस देश की आदालत में, जहाँ आप दोनों रह रहे हैं, ले जाने में कोई आपत्ति की बात नहीं है, और शरई अदालत जो फैसला कर दे वह इन शा अल्लाह पर्याप्त है।

लेकिन आप दोनों के लिए मेरी सलाह सुलह (आपसी समझौता), विवाद न करने तथा मामले को अदालत तक न ले जाने की है। तथा ऐ पत्नी, तू अपने पति को कुछ पैसे देने पर सहमत हो जाए ताकि समस्या समाप्त हो जाए। अथवा पति ही उदारता से काम ले और अल्लाह ने उसके लिए जो भाग्य निर्धारित किया उससे संतुष्ट हो जाए। तथा अपनी क्षमता के अनुसार खर्च उठाए और आपका पूरा वेतन छोड़ दे और उससे उपेक्षा करे। यही आप दोनों के बीच उचित है। लेकिन मैं आपको दोबारा सलाह देता हूँ कि आप वेतन का कुछ हिस्सा पति को देने पर सहमत हो जाएँ ताकि उसका दिल प्रसन्न हो जाए, और ताकि आप दोनों भलाई के कामों पर परस्पर सहयोग कर सकें। क्योंकि घर आप दोनों का है, बच्चे आप दोनों के हैं, और मामला भी आप दोनों का है। अतः उचित यह है कि आप थोड़ा सहन करें (और उदारहृदयता से काम लें) ताकि समस्या ख़त्म हो जाए। अल्लाह सभी को तौफीक़ प्रदान करे।” समाप्त हुआ।

समाहतुश्शैख़ अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह

स्रोत: “फतावा नूरुन अलद्-दर्ब” (3/1615).