हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
ब्याज पर आधारित बैंकों में काम करना जायज़ नहीं है, और इस काम से अर्जित धन हलाल नहीं है। सिवाय इसके कि काम करने वाला (इसके) निषेध से अनभिज्ञ हो। तो ऐसी स्थिति में जो धन वह ले चुका है, उसे क्षमा कर दिया जाएगा। इसमें सेवा के अंत में प्राप्त लाभ और वेतन से काटी गई पेंशन भी शामिल है।
लेकिन अगर उस व्यक्ति को उसके हराम (निषिद्ध) होने के बारे में पता है, तो उसके लिए उसमें से कुछ भी अनुमेय नहीं है।
यह पैसा जो सूदी बैंक में काम करने के कारण हराम है, केवल उसके लिए हराम है जो इसे कमाने वाला है। यह उसके लिए हराम नहीं है, जो इसे उस व्यक्ति से जायज़ तरीके से लेता है। अतः उसकी बेटी के लिए इस धन से खाने में कोई हर्ज नहीं है, हालाँकि इससे बचना अधिक उचित है, खासकर अगर वह नसीहत करने और सूद से तथा सूद के माध्यम से अर्जित धन से घृणित करने पर आधारित हो।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया : मेरे पिता - अल्लाह उन्हें माफ़ करे - एक सूदी बैंक में काम करते हैं। हमारे लिए उनके धन से कुछ लेने तथा उनकी आमदनी से हमारे लिए खाने और पीने का क्या हुक्म हैॽ हालाँकि, हमारे पास आय का एक और स्रोत है, जो मेरी बड़ी बहन के माध्यम से है, जो काम करती हैं। क्या हमें अपने पिता का भरण-पोषण छोड़ देना चाहिए और अपनी बड़ी बहन से अपना भरण-पोषण लेना चाहिए, जबकि हम एक बड़ा परिवार हैं, या कि मेरी बहन पर हमारे भरण-पोषण पर खर्च करने का कोई दायित्व नहीं है, इसलिए हमें अपना भरण-पोषण अपने पिता से लेना चाहिएॽ
तो उन्होंने उत्तर दिया :
मैं कहता हूँ : तुम अपना भरण-पोषण अपने पिता से लो, वह तुम्हारे लिए हर्ष और आनंद का कारण है और उनके लिए कष्ट और तकलीफ़ का कारण है; क्योंकि तुम अपने पिता से धन वैध रूप से ले रहे हो; क्योंकि उनके पास धन है और तुम्हारे पास धन नहीं है। इसलिए तुम इसे वैध रूप से ले रहे हो। यद्यपि उसका कष्ट, नुकसान और पाप आपके पिता पर है, पर तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। चुनाँचे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देख लीजिए कि आपने यहूदियों से उपहार स्वीकार किया, यहूदियों का खाना खाया और यहूदियों से सामान खरीदा। हालाँकि यहूदी सूदी कारोबार करने और हराम धन खाने के लिए मशहूर हैं। लेकिन रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक अनुमेय तरीक़े से खाते थे। इसलिए अगर कोई व्यक्ति अनुमेय तरीक़े से किसी चीज़ का मालिक हुआ है, तो इसमें कुछ भी आपत्ति की बात नहीं है। उदाहरण के लिए, आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की मुक्त की हुई दासी बरीरा को देखें : उसे दान में कुछ मांस दिया गया था, तो एक दिन नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने घर में आए, तो हाँडी को आग पर पाया। फिर आपने खाना माँगा, तो आपके पास भोजन लाया गया, लेकिन उसमें मांस नहीं था। तो आपने कहा : “क्या मैंने आग पर हाँडी को नहीं देखा हैॽ” उन्होंने कहा : क्यों नहीं, ऐ अल्लाह के रसूल! लेकिन यह मांस बरीरा को दान में दिया गया था। और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सदक़ा नहीं खाते हैं। तो आपने फरमाया : “यह उसके लिए दान है और हमारे लिए एक उपहार है।” फिर रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे खाया, हालाँकि आपके लिए सदक़ा खाना हराम है; क्योंकि आपने उसे इस रूप में नहीं लिया कि वह एक दान (सदक़ा) है, बल्कि इस रूप में लिया कि वह उपहार है।
अतः इन भाइयों से हम कहते हैं : अपने पिता के धन में से आनंद लेकर खाओ, जबकि वह तुम्हारे पिता के लिए पाप और कष्ट का कारण है, सिवाय इसके कि अल्लाह उन्हें मार्गदर्शन प्रदान कर दे और वह तौबा कर लें। क्योंकि जो कोई भी तौबा करता है, अल्लाह उसकी तौबा को स्वीकार करता है।”
“अल-लिक़ा अश-शहरी” (16/45) से उद्धरण समाप्त हुआ।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।