हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
''जहाँ तक हाथ का चुंबन करने का संबंध है तो जमहूर (ज्यादातर) विद्वानों का मानना है कि यह मक्रूह (अनेच्छिक) है, खासकर यदि यह एक आदत हो। लेकिन अगर यह कभी-कभी कुछ अवसरों पर किया जाता है, एक सदाचारी व्यक्ति के साथ, एक सदाचारी शासक के साथ, पिता के साथ या इसी तरह के मामले में, तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है। लेकिन अगर यह नियमित रूप से किया जाता है (अर्थात आदत बना लिया जाता है), तो यह मक्रूह (अनेच्छिक) है।
कुछ विद्वानों का मानना है कि अगर उसने हमेशा मुलाक़ात के समय इसको आदत बना लिया है तो यह हराम है। लेकिन अगर इसे कभी-कभार किया जाए, तो इसमें कोई आपत्ति का बात नहीं है।
जहाँ तक हाथ पर सज्दा करने (माथा टेकने) का संबंध है कि वह हाथ पर सज्दा करे और अपने माथे को उसके हाथ पर रख दे, तो यह सज्दा करना हराम (वर्जित) है। विद्वान इसे छोटे सज्दा से नामित करते हैं। यह जायज़ नहीं है। वह एक व्यक्ति के हाथ पर अपना माथा रख दे उसपर सज्दा करते हुए, ऐसा करना जायज़ नहीं है। लेकिन रही बात अपने मुंह से उसका चुंबन करने की, तो अगर यह एक आदत के रूप में नहीं किया जाता है, बल्कि शायद ही कभी या कभी-कभी किया जाता है, तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बारे में वर्णित है कि कुछ सहाबा ने आपके हाथ और पैर का चुंबन किया था। अतः यह मामला गंभीर नहीं है अगर यह कभी-कभी किया जाता है, लेकिन अगर यह अभ्यस्त हो जाता है और हमेशा किया जाता है तो यह मकरूह (अनेच्छिक) या हराम (वर्जित) है।
जहाँ तक झुकने का मुद्दा है, तो यह जायज़ नहीं है। उसका रुकू करने वाले की तरह (किसी के सामने) झुकना जायज़ नहीं है; क्योंकि झुकना (रुकू) एक इबादत का कार्य है जो किसी अन्य के लिए अनुमेय नहीं है। लेकिन अगर उसका झुकना सम्मान व्यक्त करने के लिए नहीं है, बल्कि उसका झुकना इसलिए है क्योंकि वह छोटा है और सलाम करने वाला लंबा है, तो वह उसके लिए झुक जाता है ताकि उससे हाथ मिला सके। वह ऐसा सम्मान दर्शाने के लिए नहीं, बल्कि उसे सलाम करने के लिए करता है अगर वह छोटा है या लकवाग्रस्त है या बैठा हुआ है, तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है। लेकिन अगर वह उसका सम्मान करने के लिए उसके आगे झुकता है, तो यह जायज़ नहीं है और इस बात का डर है कि वह शिर्क में से हो, अगर वह उसके द्वारा उसका सम्मान करने का इरादा रखता है।
यह वर्णन किया गया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूछा गया : ऐ अल्लाह के रसूल, मैं एक आदमी से मिलता हूँ तो क्या मुझे उसके आगे झुकना चाहिएॽ आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : नहीं। उसने कहा : क्या मैं उसे गले लगा लूँ और उसका चुंबन करूँॽ आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : नहीं। उसने कहा : क्या मैं उसका हाथ पकड़ लूँ और उससे मुसाफहा करूँॽ आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : हाँ।” भले ही इस हदीस का इस्नाद कमज़ोर है, फिर भी इसका पालन किया जाना चाहिए, क्योंकि इसके अर्थ का समर्थन करने वाले सबूतों की बहुतायत है। इसी तरह, इस बात के भी बहुत-से सबूत और प्रमाण हैं कि लोगों के लिए झुकना जायज़ नहीं है।
निष्कर्ष यह है कि किसी भी व्यक्ति के लिए कदापि झुकना जायज़ नहीं है, न राजा के लिए और न अन्य लोगों के लिए। लेकिन अगर यह सम्मान व्यक्त करने के लिए नहीं किया जाता है, बल्कि उसे सलाम करने के लिए है अगर वह छोटा है या लकवाग्रस्त है या नीचे बैठा है, इसलिए वह उसके लिए झुक जाता है ताकि उसे सलाम करे, तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
आदरणीय शैख अब्दुल-अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह
“फतावा नूरुन अलद दर्ब” (1/491, 492)।