हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
मज़लूम (अत्याचार से पीड़ित) व्यक्ति के लिए उसके ऊपर अत्याचार करने वाले (यानी ज़ालिम) पर बद्-दुआ करना जायज़ है परंतु वह उसके अंदर अति नहीं करेगा। अल्लाह तआला का फरमान है :
لَا يُحِبُّ اللَّهُ الْجَهْرَ بِالسُّوءِ مِنَ الْقَوْلِ إِلَّا مَنْ ظُلِمَ
[النساء : 148] .
“अल्लाह तआला बुरी बात का खुले आम प्रदर्शन करने को पसंद नही करता है सिवाय उस व्यक्ति से जिस पर अत्याचार किया गया हो।” (सूरतुन्निसा : 148).
तथा इब्ने अबी हातिम (4/416) ने हसन से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : “उसके लिए ऐसे व्यक्ति पर बद्-दुआ करने की छूट दी गयी है जिसने उसके ऊपर अत्याचार किया है परंतु वह ज़ियादती (अति) न करे।” तफसीर तबरी (9/344).
तथा तिर्मिज़ी (1905) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “तीन दुआएं बिना किसी संदेह के क़बूल होती हैं : मज़लूम (अत्याचार से पीड़ित) आदमी की दुआ, मुसाफिर की दुआ, और पिता की दुआ अपने बच्चे के खिलाफ।” अल्बानी ने इसे सहीह तिर्मिज़ी में हसन कहा है।
तथा इफ्ता की स्थायी समिति से पूछा गया कि :
क्या मेरे लिए मुसलमान पर बद-दुआ करना जायज़ है यदि वह मुझ पर ज़ुल्म करे और वह दुआ क्या है ॽ
तो उसने उत्तर दिया : “जिस व्यक्ति पर अत्याचार और ज़ियादती की गयी है उसके लिए उस व्यक्ति से अपना इंतिक़ाम लेना जायज़ है जिसने उस पर अत्याचार किया है, और इसी में से ज़ालिम पर बिना किसी ज़ियादती (अति) के बद-दुआ करना भी है। अल्लाह तआला का फरमान है:
وَلَمَنِ انْتَصَرَ بَعْدَ ظُلْمِهِ فَأُولَئِكَ مَا عَلَيْهِمْ مِنْ سَبِيلٍ
[الشورى : 41]
“और जिसने अपने ऊपर ज़ुल्म होने के बाद बदला लिया तो ऐसे लोगों के ऊपर कोई रास्ता (पाप) नहीं।” (सूरतुश्शूरा : 41). अंत हुआ। “फतावा स्थायी समिति” (24/262).
परंतु माफ कर देना तक़्वा और ईश्भय के अधिक क़रीब और अल्लाह के निकट बहुत पसंदीदा है, अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है :
وَجَزَاءُ سَيِّئَةٍ سَيِّئَةٌ مِثْلُهَا فَمَنْ عَفَا وَأَصْلَحَ فَأَجْرُهُ عَلَى اللَّهِ إِنَّهُ لَا يُحِبُّ الظَّالِمِينَ
[الشورى : 40] .
“और बुराई का बदला उसी के समान बुराई है, परंतु जो क्षमा कर दे और सुधार कर ले, तो उसका अज्र (प्रतिफल) अल्लाह के ऊपर है, निःसंदेह अल्लाह अत्याचारियों को पसंद नहीं करता।” (सूरतुश्शूरा : 40).
अल्लामा सअदी फरमाते हैं :
क्षमा करने में अल्लाह की शर्त उसके अंदर सुधार करना है, ताकि इस बात को दर्शाए कि यदि अप्राधी को माफ करना उचित नहीं है और शरई हित इस बात की अपेक्षा करता है कि उसे दंडित किया जाए, तो फिर इस हालत में उसे क्षमा करने का आदेश नहीं है।
माफ करने वाले के अज्र व सवाब को अल्लाह पर क़रार देना, माफी प्रदान करने पर उभारता है, और यह कि बंदा लोगों के साथ ऐसा व्यवहार करे जिस तरह कि वह चाहता है कि अल्लाह उसके साथ व्यवहार करे। तो जिस तरह वह यह चाहता है कि अल्लाह उसे क्षमा कर दे, तो उसे भी चाहिए कि वह लोगों को क्षमा कर दे, तथा जिस तरह कि वह यह चाहता है कि अल्लाह उसके साथ आसानी का मामला माफ करे, तो उसे भी लोगों के साथ आसानी का मामला करना चाहिए, क्योंकि बदला कार्य के वर्ग से ही मिलता है।” अंत हुआ। “तफसीर सअदी” (पृष्ठ : 760).
तथा मुस्लिम (हदीस संख्या : 2588) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “अल्लाह तआला क्षमा करने के कारण बंदे के सम्मान में वृद्धि ही करता है।”
तथा अहमद (हदीस संख्या : 6505) ने अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मिंबर पर थे कि फरमाया : “तुम दया करो, तुम पर दया की जायेगी, और क्षमा कर दिया करो अल्लाह तुम्हें क्षमा प्रदान करेगा।” इसे अल्बानी ने “सहीहुत तरगीब” (हदीस संख्या : 2465) में सही कहा है, तथा जिन लोगों के बीच संबंध, या रिश्तेदारी, या संगत . . . इत्यादि है, तो उनके बीच माफी अधिक महत्पूर्ण हो जाता है।
जो साथ और संगत पति पत्नी के बीच होता है उससे बढ़कर कोई संगत नहीं, तथा अल्लाह तआला ने पति पत्नी को तलाक़ हो जाने के समय भी माफ करने और भलाई करने का आदेश दिया है, अल्लाह तआला ने फरमाया :
وَأَنْ تَعْفُوا أَقْرَبُ لِلتَّقْوَى وَلَا تَنْسَوُا الْفَضْلَ بَيْنَكُمْ إِنَّ اللَّهَ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ
[البقرة : 237] .
“और तुम्हारा माफ कर देना तक़्वा के बहुत क़रीब है, और तुम आपस में उपकार व भलाई को न भूलो, तुम जो कुछ करते हो निःसंदेह अल्लाह उसे देखता है।” (सूरतुल बक़रा : 237).
आपका उसके लिए सुधार, बेहतरी और मार्गदर्शन की दुआ करना आपके लिए और उसके लिए अधिक लाभदायक है, अतः यह उसके ऊपर बद-दुआ या शाप करने से बेहतर है।
जहाँ तक उसके कफ्फारा (परायश्चित) की बात है तो यदि आप उसके ऊपर बद-दुआ करने में सच्ची हैं क्योंकि उसने आप के ऊपर अत्याचार किया है, तो इसमें कोई गुनाह की बात नहीं है, लेकिन यदि आप स्वयं अत्याचार करने वाली और दुआ के अंदर अति करने वाली हैं, तो अगर उसे इस दुआ की सूचना मिल गई है या उसने इसे सुन लिया है, तो आप को चाहिए कि उससे माज़रत (क्षमायाचना) करें और उससे माफी मांगे, और यदि उसे इसकी सूचना नही मिली है तो आप को उसके लिए दुआ व इस्तिगफार करना चाहिए।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।