हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति केवल अल्लाह के लिए योग्य है।नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को बुरा भला कहना (गाली देना) कुफ्र के भेदों में से एक भेद है,यदि यह किसी मुसलमान की ओर से होता है तो यह उसकी ओर से धर्म से पलट जाना (स्वधर्म त्याग) समझा जायेगा,और मुसलमान शासक के ऊपर अनिवार्य है कि बुरा भला कहने (गाली देने) वाले को क़त्ल करके अल्लाह और उसके पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का सर्मथन करे,यदि गाली देने वाला तौबा (पश्चाताप) का प्रदर्शन करता है और वह उसमें सच्चा है तो वह उसे अल्लाह के पास लाभ पहुँचायेगीलेकिन उसका तौबा करना बुरा भला कहने (गाली देने) की सज़ा को समाप्त नहीं कर सकता है, और बुरा भला कहने वाले की सज़ा क़त्ल है।
और यदि पैगंबर को बुरा भला कहने वाला व्यक्ति संधि वाला (मुआहिद) है जैसे कि ईसाई तो यह उसकी संधि को तोड़ देगा और उसको कत्ल करना अनिवार्य है, किंतु इसकी ज़िम्मेदारी शासक की है,चुनाँचे यदि मुसलमान किसी ईसाई या उसके अतिरिक्त को नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को बुरा भला कहते हुए सुने तो उसके ऊपर उसका इंकार और खंडन करना और सख्ती से पेश आना अनिवार्य है,और उसको बुरा भला कहना जाइज़ है क्योंकि वही शुरूआत करने वाला है तो फिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का पक्ष और सहयोग क्यों नहीं किया जायेगा ॽ! तथा उसके मामले से शासक को अवगत कराना अनिवार्य है ताकि वह उस पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को बुरा भला कहने वाले के दंड को लागू करे,और यदि वहाँ कोई अल्लाह के दंड को क़ायम करने वाला और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए बदला लेने वाला नहीं है,तो मुसलमान को चाहिए कि इसमें से चीज़ पर सक्षम हो उसे करे जो किसी ऐसे उपद्रव और हानि का कारण न बनता हो जो उसके अलावा दूसरे लोगों तक पहुँचती हो। किंतु मुसलमान आदमी नास्तिक को नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को बुरा भला कहते हुए सुने फिर चुप रहे, इस डर से कि वह इस अपमान और बुरा भला कहने में बढ़ जायेगा, उसका खंडन न करे, तो यह एक गतल विचार है। जहाँ तक अल्लाह तआला के इस फरमान का संबंध है :
وَلا تَسُبُّوا الَّذِينَ يَدْعُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ فَيَسُبُّوا اللَّهَ عَدْواً بِغَيْرِ عِلْمٍ [الأنعام :108]
“उन लोगों को बुरा भला न कहो जो अल्लाह को छोड़कर दूसरों को पुकारते हैं ताकि ऐसा न हो कि वे अनजाने में दुश्मनी के कारण अल्लाह को बुरा भला कहने लगें।” (सूरतुल अनआम: 180).
तो यह अल्लाह और उसके पैगंबर को बुरा भला कहने की शुरूआत करने वाले के बारे में नहीं है,बल्कि इसका उद्देश्य आरंभिक तौर पर मुशरेकीन के माबूदों को बुरा भला कहने से मनाही करना है ; ताकि वे अज्ञानता और दुश्मनी में अल्लाह को बुरा भला न कहें। परंतु जहाँ तक उस आदमी का मामला है जो अल्लाह और उसके पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को गाली देने और बुरा भला कहने की शुरूआत करता है तो उसका खंडन करना और उसको ऐसा दंड देना अनिवार्य है जो उसे उसकी नास्तिकता और आक्रामकता से रोक दे,और यदि नास्तिकों और अधर्मियों को बिना इनकार व खंडन और दंड के छोड़ दिया जाए कि वे जो चाहें कहें,तो भ्रष्टाचार और बिगाड़ बढ़ जायेगा,और यह उन चीज़ों में से हो जायेगी जिसे ये काफिर लोग पसंद करते और उस से खुश होते हैं,अतः इसकहने वाले की बात पर ध्यान नहीं दिया जायेगा कि इस बुरा भला कहने वाले को बुरा भला कहना या उसका खंडन करना उसे बुरा भला कहने पर अटल बनाने का कारण बन सकता है,अतः मुसलामन के लिए अनिवार्य है कि वह अल्लाह और उसके पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए गैरत व हमीयत और क्रोध प्रकट करें,और जो आदमी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को बुरा भला कहे जाते हुए सुनता है और उसे गैरत और क्रोध नहीं आता है तो वह ईमान वाला नहीं है। हम असहाय,कृतधनता और शैतान के पालन से अल्लाह की पनाह में आते हैं।
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।