शनिवार 8 जुमादा-1 1446 - 9 नवंबर 2024
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स्वर्ग और नरक मौजूद हैं, और वे अल्लाह तआला के बाक़ी रखने के कारण बाक़ी हैं

प्रश्न

क्या इस समय स्वर्ग और नरक मौजूद हैं ? या वे दोनों अभी पैदा नहीं किये गये हैं?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

अल्लाह की प्रशंसा और गुणगान के बाद : अह्ले सुन्नत और जमाअत इस बात पर एक मत हैं कि स्वर्ग और नरक पैदा किये जा चुके हैं और वे दोनों इस समय मौजूद हैं, उन में से कोई भी इस बारे में शक नहीं करता है क्योंकि इसके बारे में किताब व सुन्नत से बहुत सारे प्रमाण मौजूद हैं।

क़ुरआन करीम के प्रमाणों में से कुछ निम्नलिखित हैं :

अल्लाह तआला ने स्वर्ग के बारे में फरमाया :

"जो परहेज़गारों (ईश्भय रखने वालों) के लिए तैयार की गयी है।" (सूरत आल-इम्रान : 133)

तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :

"तुम अपने रब की बख्शिश (माफी) और उस जन्नत (स्वर्ग) की तरफ दौड़ो जिसकी चौड़ाई आकाश और धरती की चौड़ाई के बराबर है, जो अल्लाह और उसके सन्देष्टाओं (पैग़ंबरों) पर ईमान रखने वालों के लिए तैयार की गई है।" (सूरतुल हदीद : 21)

तथा अल्लाह तआला का फरमान है :

"उसे तो एक बार और भी देखा था। सिदरतुल मुन्तहा के क़रीब, उसी के पास जन्नतुल मावा है।" (सूरतुन्नज्म : 13-15)

तथा अल्लाह तआला ने जहन्नम के बारे में फरमाया :

"जो काफिरों के लिये तैयार की गई है।" (सूरतुल बक़रा : 24)

उपर्युक्त आयतें इस बात पर तर्क हैं कि वे दोनों इस समय मौजूद हैं।

सुन्नत (हदीस) के प्रमाण निम्नलिखित हैं :

चुनाँचि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सिदरतुल मुन्तहा को देखा और उस के पास जन्नतुल मावा को देखा, जैसा कि सहीह बुखारी (हदीस संख्या: 336) और सही मुस्लिम (हदीस संख्या: 237) में -और हदीस के शब्द मुस्लिम ही के हैं- अनस रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस से इस्रा के क़िस्सा में वर्णित है, और उसके अंत में ये शब्द हैं: "फिर जिब्रील मुझे लेकर चले यहाँ तक कि सिदरतुल मुन्तहा पहुँचे, तो उसे रंगों ने ढाँप लिया मुझे मालूम नहीं कि वे क्या थे। फरमाया : फिर मैं जन्नत में दाखिल हुआ तो देखा कि उसके क़ुब्बे मोती के थे और उस की मिट्टी कस्तूरी की थी।"

सहीह बुखारी (हदीस संख्या : 1290) और सहीह मुस्लिम (हदीस संख्या: 5111) में अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस में है कि अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जब तुम में से कोई मर जाता है तो सुबह और शाम उस पर उसके ठिकाने को पेश किया जाता है, अगर वह जन्नती है तो जन्नत वालों से और अगर जहन्नमी है तो जहन्नम वालों से (उसके ठिकाने को) पेश किया जाता है, कहा जाता है : यह तेरा ठिकाना है यहाँ तक कि अल्लाह तुझे क़ियामत के दिन उठायेगा।" (यानी उस दिन तू अपने इस ठिकाने पर पहुँचे गा।)

तथा बरा बिन आज़िब रज़ियल्लाहु अन्हु की लंबी हदीस में है कि : "आकाश से एक उद्घोषणा (मुनादी) करने वाला आवाज़ देता है कि मेरे बन्दे ने सच्च कहा, अत: उस के लिए स्वर्ग का बिछौना लगा दो, उसे स्वर्ग का पोशाक पहना दो और उस के लिए स्वर्ग की ओर एक द्वार खोल दो, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि फिर उसे स्वर्ग की सुगन्ध और भोजन पहुंचता रहता है।" यह एक सहीह हदीस है जिसे इब्नुल क़ैयिम ने तहज़ीबुस्सुनन (4/337) में और अल्बानी ने अहकामुल जनाईज़ (59)में सहीह कहा है।

तथा सहीह बुख़ारी (हदीस संख्या : 993) और सहीह मुस्लिम (हदीस संख्या : 1512) में अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा कि :रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में सूर्य ग्रहण लगा, -और उन्हों ने हदीस बयान की- उसी में है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया : "मैं ने जन्नत देखा और एक खोशा लेने की इच्छा की, अगर मैं उसे ले लेता, तो जब तक दुनिया बाक़ी रहती तुम उस से खाते रहते। तथा मैं ने जहन्नम को देखा, तो आज की तरह सब से भयानक दृश्य कभी नही देखा ...।"

सहीह मुस्लिम (हदीस संख्या : 646) में अनस रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया : "उस अस्तित्व की क़सम! जिस के हाथ में मेरी जान है अगर तुम उस चीज़ को देख लो जौ मैं ने देखा है तो तुम बहुत कम हँसो गे और ज़्यादा रोओ गे।" लोगों ने कहा : ऐ अल्लाह के पैग़ंबर ! आप ने क्या देखा है ? आप ने फरमाया : मैं ने जन्नत और जहन्नम देखा।"

सुनन तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2483)वगैरा में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हैं कि आप ने फरमाया : "जब अल्लाह तआला ने स्वर्ग और नरक को पैदा किया तो जिब्रील को जन्नत की तरफ भेजा और फरमाया : जन्नत और उस में जो कुछ मैं ने उसके वासियों के लिये तैयार किया है, उसे जा कर देखो। फरमाया : जिब्रील उस में आये और उसे और उस में जो कुछ अल्लाह तआला ने उस के वासियों के लिए तैयार किया है उसे देखा। फरमाया : फिर वह अल्लाह के पास वापस गये और कहा : तेरी इज़्ज़त की क़सम ! जो भी उसके बारे में सुनेगा वह अवश्य उस में प्रवेष करेगा। तो अल्लाह तआला ने उसके बारे में हुक्म दिया और उसे नापसन्दीदा चीज़ों से घेर दिया गया। फिर अल्लाह तआला ने कहा: उस में वापस जाओ और जो कुछ मैं ने उस में उसके वासियों के लिए तैयार किया है, उसे देख कर आओ। फरमाया: वह उस में वापस गये तो देखा कि वह नापसन्दीदा चीज़ों से घेर दी गयी है। वह अल्लाह तआला के पास वापस आये और कहा : तेरी इज़्ज़त की क़सम! मुझे डर है कि कोई उस में प्रवेष नहीं कर सकेगा। अल्लाह तआला ने फरमाया : जहन्नम की तरफ जाओ और उसे और उस में उस के वासियों के लिए जो कुछ मैं ने तैयार किया है, उसे देखो। चुनाँचि उन्हों ने देखा कि उसका एक हिस्सा दूसरे पर चढ़ा जा रहा है, जिब्रील अलैहिस्सलमा अल्लाह तआला के पास वापस आये और कहा : तेरी इज़्ज़त की क़सम! जो आदमी भी उस के बारे में सुनेगा वह उस में दाखिल नहीं हो सकता, तो अल्लाह तआला ने उसके बारे में आदेश दिया और वह शह्वतों (मन को लुभाने वाली चीज़ों) से घेर दी गयी। अल्लाह तआला ने कहा : उसकी तरफ दुबारा जाओ। वह दुबारा उस में गये और वापस आकर कहा : तेरी इज़्ज़त की क़सम! मुझे भय है कोई भी उस में प्रवेष किये बिना नहीं बच सकेगा।" तिर्मिज़ी ने कहा है कि : यह एक हसन सहीह हदीस है, और हाफिज़ इब्ने हजर ने फत्हुलबारी (6/320) में कहा है कि: "इस का इसनाद मज़बूत है।"

इस अर्थ की हदीसें बहुत अधिक हैं। तथा इमाम बुखारी ने अपनी सहीह में एक अध्याय क़ायम किया है जिस में कहा है : "अध्याय : जन्नत के विशेषण के बारे में जो कुछ वर्णित हुआ है और यह कि वह पैदा की जा चुकी है" इस अध्याय के अंतरगत उन्हों ने कुछ हदीसें उल्लेख की हैं, जिन में से वह हदीस भी है जो पीछे गुज़र चुकी है कि अल्लाह तआला मृतक को उस की क़ब्र में रखे जाने के बाद जन्नत और जहन्न से उसके ठिकाने को दिखाता है।

अत: बन्दे के लिए केवल इतना बाक़ी बचा है कि वह अपने रब का आज्ञा पालन करने में भरपूर संघर्ष और मेहनत करे और उसकी अवज्ञा से बचाव करे, इस आशा के साथ कि वह उसकी जन्नत से सम्मानित हो और उसकी कष्टदायक सज़ा से मुक्ति पाये। और अल्लाह तआला ही सर्वाधिक जानने वाला है।

देखिये : शरहुल अक़ीदा अत्तहाविय्या लिल-इमाम इब्ने अबिल इज़्ज़ अल-हनफी (1/475 और उसके बाद) तथा किताबुल जन्नह वन्नार लिश्शैख/ उमर अल-अश्क़र(13-18)

स्रोत: शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद