हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
ऐसे संदेश जो लोग आमतौर पर विशेष अवसरों पर भेजते हैं, वे दो प्रकार के होते हैं :
प्रथमः एक प्रकार उन संदेशों का है जो ईदों और धर्मसंगत इस्लामी अवसरों पर उनकी बधाई देने के लिए भेजे जाते हैं, या उनके भेजने के समय से संबंधित किसी विशेष इबादत को याद दिलाने के लिए भेजे जाते हैं, जैसे कि वे संदेश जो रमज़ान में क़ियाम करने, या उसमें क़ुरआन का पाठ करने की याद दिलाने, या कुछ प्रतिष्ठित दिनों के रोज़ों, या इसी तरह की अन्य चीज़ों की याद दिलाने के लिए भेजे जाते हैं; तो इस प्रकार के संदेश में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि संदेश का विषय-सामग्री ठीक हो और शरीअत के उल्लंघन पर आधारित न हो।
द्वितीय प्रकार: वे संदेश जो विधर्मिक त्योहारों और ऐसे अवसरों पर भेजे जाते हैं जो धर्मसंगत नहीं हैं, जैसे कि वे संदेश जो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्मदिन की, या इस्रा व मेराज की रात, या वैलेंटाइन्स दिवस, या वसंत उत्सव, या नए ईसवी वर्ष, इत्यादि की बधाई देने के लिए भेजे जाते हैं; तो इस तरह के संदेश की अनुमति नहीं है, क्योंकि यह या तो एक नवीन धार्मिक त्योहार की या काफिरों के त्योहारों में से किसी त्योहार की बधाई देना है जिसमें मुसलमानों ने उनका अनुकरण किया है, और ये दोनों ही एक वर्जित और निषिद्ध कार्य हैं, जिसकी बधाई देना या उसका प्रसार और चर्चा करने में सहयोग करना जायज़ नहीं है।
इमाम मुस्लिम (हदीस संख्याः 4831) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "जिसने किसी मार्गदर्शन की ओर लोगों को आमंत्रित किया तो उसे उसका पालने करनेवालों के समान अज्र व सवाब (पुण्य) मिलेगा, इससे उनके अज्र व सवाब में कुछ भी कमी नहीं होगी। और जिसने किसी पथभ्रष्टता की ओर आमंत्रित किया तो उसके ऊपर उसका पालन करनेवाले के समान पाप होगा, इससे उनके पापों में कुछ भी कमी नहीं होगी।''
अल्लामा नववी रहिमहुल्लाह कहते हैं :
जो व्यक्ति लोगों को किसी मार्गदर्शन की ओर बुलाता है, तो उसे उसके अनुयायियों के अज्र व सवाब के समान अज्र व सवाब मिलेगा, या पथभ्रष्टता की ओर बुलाता है तो उसके ऊपर उसका पालन करनेवालों के पापों की तरह पाप होगा। चाहे वह मार्गदर्शन या पथभ्रष्टचा स्वयं उसी ने आरंभ किया हो या उससे पहले किसी ने किया हो, तथा चाहे वह ज्ञान सिखाना हो, या कोई इबादत, या शिष्टाचार हो या इसके अलावा कोई अन्य चीज़ हो।'' उद्धरण समाप्त हुआ।
''शर्ह अन-नववी अला मुस्लिम (16/227)''
विधर्मिक त्योहारों को मनाने के हुक्म का उल्लेख प्रश्न संख्याः (10070) के जवाब में किया जा चुका है। तथा प्रश्न संख्याः (70317) और प्रश्न संख्याः (125690) के उत्तर भी देखें।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।