सोमवार 22 जुमादा-2 1446 - 23 दिसंबर 2024
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शाबान के महीने में प्रत्येक जुमेरात को दो रकअत नमाज़ पढ़ने के बारे में एक मनगढ़ंत हदीस

प्रश्न

मुझे इ-मेल के द्वारा एक संदेश प्राप्त हुआ जो इस प्रकार थाः शाबान मुअज़्ज़म के महीने की हर जुमेरात को दो रकअत नमाज़ पढ़ना। अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः ''जिस व्यक्ति ने उसमें दो रकअत नमाज़ पढ़ीः वह हर रकअत में सूरतुल फातिहा और एक सौ बार ''क़ुल हुव्ल्लाहु अहद'' पढ़ता है। फिर जब सलाम फेरता है तो एक सौ बार नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद पढ़ता हैः तो अल्लाह उसके दीन और दुनिया के मामले में से हर ज़रूरत को पूरा कर देगा।'' मैं इस बात की प्रामाणिकता को सुनिश्चित करना चाहता हूँ। तथा दो रकअत नमाज़ पढ़ने का क्या तरीक़ा है। ज्ञात रहे कि इसमें ''क़ुल हुवल्लाहु अहद'' के एक सौ बार पढ़ने का उल्लेख किया गया है, तो क्या उसे दोनों रकअतों के दौरान पढ़ा जाएगा या उसके बादॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

सुन्नत (हदीस) की पुस्तकों में इस हदीस का कोई आधार नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह शाबान के महीने में नमाज़ की फ़ज़ीलत के बार में स्वरचित (मनगढ़ंत) हदीसों में से है। तथ्य यह कि शाबान के महीने और उसमें नमाज़ पढ़ने और पंद्रहवीं शाबान की रात की फज़ीलत के बारे में झूठी हदीसें गढ़ ली गई हैं। अल्लामा इब्ने हजर हैतमी रहिमहुल्लाह ने फरमाया हैः

''इस रात – अर्थात रजब के महीने के पहले जुमा की रात – और पंद्रहवीं शाबान की रात की फज़ीलतों के बारे में वर्णित सभी प्रसिद्ध हदीसें – असत्य और झूठी हैं, जिनका कोई आधार नहीं है, भले ही वे कुछ वरिष्ठ विद्वानों की किताबों में आई हैं जैसे ग़ज़ाली की 'एहयाओ-उलूमिद्दीन' वगैरह।'' समाप्त हुआ।

''अल-फतावा अल-फ़िक़्हिय्या अल-कुब्रा'' (1/184).

इसी प्रकार सप्ताह के कुछ दिनों में नमाज़ की फ़ज़ीलत में भी हदीसें गढ़ ली गई हैं।

अल्लामा शौकानी रहिमहुल्लाह ने फरमायाः

''वह नमाज़ जिसका उल्लेख इतवार और सोमवार और इनके अलावा सप्ताह के अन्य दिनों में किया जाता हैः हदीस के जानकारों के बीच इस बारे में कोई मतभेद नहीं है कि वे मनगढ़ंत (मौज़ू) हदीसें हैं, और इस नमाज़ को धर्म के इमामों में से किसी एक ने भी मुस्तहब नहीं समझा है।'' उद्धरण समाप्त हुआ।

''अल-फवाइदुल मौज़ूआ'' (1/74).

अतः इस झूठी मनगढ़ंत हदीस पर अमल करना जायज़ नहीं है। तथा अन्य सहीह हदीसों में उसके लिए पर्याप्ता है जो वास्तव में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अनुयायियों में से होना चाहता है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

इस्लाम प्रश्न और उत्तर

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर