हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
मुसलमान के लिए धर्मसंगत यह है कि वह उस पोशाक को पहनने का लालायित बने जिसे उस देश के लोग व्यवहारिक रूप से पहनते हैं जिसमें वह रहता है,ताकि वह उनके बीच सुप्रसिद्ध और उन से उत्कृष्ट न हो जाये जिस से उसे हानि पहुँच सकती है,इस शर्त के साथ कि वह पोशाक किसी शरई मुखालफत (उल्लंघन) पर आधारित न हो।
और जबकि आप एक ऐसे देश में रहते हैं जिसमें अरबी सौब पहनना विचित्र समझा जाता है और उसे पसंदीदा नहीं समझा जाता है,तो आप के लिए सर्वश्रेष्ठ यह है कि आप वह पोशाक पहनें जो आप के देश में लोगों की पहनने की आदत है। हाँ, इस बात के लालायित बनें कि पैंट कुशादा हो और शरमगाह को रेखांकित न करती हो।
शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
“अगर मुसलमान दाररूल हर्ब, या ऐसे दारूल कुफ्र में हो जो दारूल हर्ब नहीं है, तो उसे प्रत्यक्ष वेशभूषा में उनका विरोध करने का हुक्म नहीं दिया जायेगा, क्योंकि इस में उस के ऊपर हानि पहुँचने का भय है। बल्कि कभी कभार आदमी के लिए मुस्तहब होता है, या उस के ऊपर अनिवार्य होता है कि वह कभी कभी उन के ज़ाहिरी वेशभूषा में उन का साझी हो यदि उस के अंदर कोई धार्मिक हित हो, जैसे- उन्हें इस्लाम धर्म का निमंत्रण देना, और इसी तरह के अन्य अच्छे उद्देश्य।
जहाँ तक दारूल इस्लाम वल हिजरत का सेबंध है जिस में अल्लाह तआला ने अपने धर्म को सम्मान प्रदान किया है,और उसमें काफिरों पर अपमान और जिज़्या लगा दिया है,तो उसके अंदर उन का विरोध करना धर्मसंगत कर दिया गया है।” इक़्तिज़ाउस्सिरातिल मुस्तक़ीम (1/471, 472) से समाप्त हुआ।
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।